गुरुवार, 31 मई 2007

पत्र, संपादक के नाम

पत्र, संपादक के नाम

पेड़ों की कमी कैंसर को बढ़ाएगी

महोदय,

शहरों में विकास के नाम पर काफी पेड़ काटे गए एवं बगीचे उजाड़े गए। शहरों में हो रही पेड़ों की कमी कैंसर को बढ़ावा देगी। हाल ही में पुरड्यू विवि के वैज्ञानिकों ने डॉ. रिचर्ड ग्रांट के नेतृत्व से एक त्रिआयामी मॉडल की सहायता से अध्ययन कर बताया है कि पेड़ हमें खतरनाक पराबैंगनी-बी किरणें के प्रभाव से बचाते हैं। पराबैंगनी-बी (यूवी-बी) किरणें पराबैंगनी किरणों के तीन प्रकारों (ए,बी एवं सी) में सर्वाधिक घातक होती हैं एवं कैंसर पैदा करने की क्षमता रखती है। वायुमंडल में २०-२२ किलोमीटर की ऊँचाई पर स्थित ओजोन परत सूर्य प्रकाश के साथ आई पराबैंगनी किरणों का अवशोषण करती हैं। वर्तमान में ओजोन परत के क्षरण से ये किरणें अधिक मात्रा में पृथ्वी पर पहुँच रही है।

डॉ. रिचर्ड ग्रांट द्वारा विकसित त्रिआयामी मॉडल की सहायता से किसी पेड़ के नीचे तक कितनी पराबैंगनी-बी किरणें पहुँच रही हैं, यह ज्ञात किया जा सकता है। पराबैंगनी बी किरणों की कितनी मात्रा धरती तक पहुँचेगी, यह किसी स्थान की भूमध्य रेखा से दूरी, समुद्र तल से ऊँचाई, दिन का प्रहर व पेड़ों के आच्छादन पर निर्भर रहता है। उदाहरण के लिए यदि एक व्यक्ति सीधे ही धूप में खड़ा है तो वह पेड़ की छांव में खड़े व्यक्ति की तुलना में दो गुनी मात्रा में पराबैंगनी-बी किरणों को ग्रहण कर रहा होता है।

विवि के वैज्ञानिकों ने अपने मॉडल की सहायता से यह भी पता लगाया है कि रहवासी क्षेत्रों, धूप तथा पेड़ों की छांव में खेल रहे बच्चों तक कितनी मात्रा में पराबैंगनी-बी किरणें पहँुचती है।

पराबैंगनी-बी किरणों के प्रभाव से लम्बे समय में त्वचा का कैंसर पैदा होता है, जिसे मेलेनोमा कहा जाता है। दिल्ली विश्वविद्यालय के बायोटेक्नॉलोजी विभाग ने आकलन कर बताया है कि मुम्बई, दिल्ली तथा कोलकाता में उपरोक्त त्वचा कैंसर के प्रकरण बढ़ रहे हैं। पर्यावरण वैज्ञानिकों की गणना के अनुसार ओजोन परत में १% की कमी से २% त्वचा कैंसर एवं ०.५% मोतियाबिन्द (केटरेट्स) के प्रकरण बढ़ जाते हैं। पराबैंगनी किरणें समग्र रुप से रोग प्रतिरोध क्षमता भी घटाती है। डॉ. रिचर्ड ग्रांट के अनुसार वायुमण्डल में जो भूमिका ओजोन की रहती है लगभग वैसा ही कार्य पेड़ों द्वारा धरती पर किया जाता है इसलिए ओजोन परत की सुरक्षा के प्रयासों के साथ-साथ पेड़ों का बचना भी आवश्यक है।

डॉ. ओ. पी. जोशी, डॉ. जयश्री सिक्का,

गुजराती साइंस कॉलेज, इन्दौर (म.प्र.)

कोई टिप्पणी नहीं: