गुरुवार, 31 मई 2007

विकास बनाम विनाश

जनजीवन

विकास बनाम विनाश

सतनाम सिंह

पर्यावरण और मनुष्य एक दूसरे पर किस हद तक निर्भर करते है, इसको हम मछली और जल के बीच पाये जाने वाले संबंध से समझ सकते हैं। जैसे मछली जल के बिना कुछ ही मिनट जीवित रह सकती है, ठीक वैसे मनुष्य का भी अस्तित्व पर्यावरण पर ही निर्भर है।

यही कारण है कि आज पूरी दुनिया मनुष्य और पर्यावरण के बीच बिगड़ते रिश्ते से परेशान है। मगर सवाल यह है कि आखिर यह बला है क्या जो पूरे विश्व को परेशानी में डाले हुए है। इसी सवाल को खोजने तथा लोगों को इसके प्रति जागरूक बनाने के लिए दुनिया में हर साल ५ जून को पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। ५ जून १९७२ को स्वीडन के स्टाकहोम शहर में आयोजित कान्फ्रेन्स में सर्वप्रथम अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर मानव का ध्यान पर्यावरण की ओर आकृष्ट किया गया। इसी सम्मेलन में यूनाइटेड नेशन्स इनवायरमेंट प्रोग्राम (यू.एन.ई.पी.) का जन्म हुआ। इसी वर्ष संयुक्त राष्ट्र संघ महासभा ने ५ जून को विश्व पर्यावरण दिवस के रूप में प्रतिवर्ष मनाए जाने का निर्णय लिया।

पर्यावरण को सुधारने के लिए सरकार न सिर्फ लोगों को इस बारे में सक्रिय माध्यमों से जानकारी देती है, बल्कि एक सक्रिय सदस्य की तरह कार्य भी करती है। अगर दिल्ली का उदाहरण लें तो कुछ वर्ष पहलें वाहनों में सीएनजी के उपयोग के शुरू होने के बाद प्रदूषण स्तर काफी कम हो गया है। सरकार गावों में सड़कों के किनारे पेड़ लगा रही है तथा हरियाली पहुंचाने वालों को प्रोत्साहित कर रही है। गंगा एवं यमुना की सफाई पर ध्यान दिया जा रहा है। दिल्ली सरकार तो यमुना को लंदन की टेम्स की तर्ज पर सफाई करने की योजना भी बना रही है। मानव चारों ओर से प्राकृतिक दशाएं जैसे वायु जल तापमान मौसम, भूमि की बनावट, वन खनिज पदार्थ आदि तथा सामाजिक दशाएं जैसे सामाजिक समूह तथा सामाजिक मान्यताआें आदि से जुड़ा है। जब प्राकृतिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक तीनों दशाएं पूर्ण रूप से समन्वित होकर मानव को घेरती है, तो यह घेराव ही पर्यावरण का रूप ले लेता है।

मनुष्य एवं उसके पर्यावरण का अटूट रिश्ता रहा है। जिस तरह एक स्वस्थ्य तन में स्वस्थ मन का निवास होता है, ठीक उसी तरह स्वस्थ पर्यावरण में स्वस्थ जीवन का विकास होता है। लेकिन आज हमरी प्राणदायिनी वायु ही नहीं बल्कि जल भी प्रदूषित हो चुका है। औद्योगिक प्रतिष्ठानों से निकलने वाले भारी तत्व जैसे मरकरी एवं अन्य तत्व जिंक, लेड आदि सिर्फ वायु को ही नहीं बल्कि जल एवं भूमि के साथ-साथ रेडियो एक्टिव प्रदूषण भी फैलाते है। जहा। पहले प्राकृतिक रूप से ५ डिग्री तापमान वृद्धि में १० से २० हजार वर्ष लग जाते थे, वहीं आज यह गति मात्र ५० वर्षो में पूर्ण होने को है।

संयुक्त राष्ट्र संघ की जलवायु परिवर्तन और मानव स्वास्थ पर खतरा रिपोर्ट के अनुसार जलवायु परिवर्तन के चलते विश्व भर में दो लाख पचास हजार लोग वर्ष २००६ में ही काल कवलित हो गये। बढ़ता तापमान पृथ्वी के सम्पूर्ण जीवों के लिए खतरा है। ग्लेशियरों के पिघलने बर्फ की मात्रा कम होने तथा समुद्र के जल स्तर में बढ़ोत्तरी समूचे विश्व को जलमग्न बना सकती है। इस बर्फ की मोटाई में भी कमी आ रही है। इस तथ्य का उल्लेख इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज की रिपोर्ट में किया गया है।

अंतरराष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन के अध्ययन के लिए गठित इस समूह के अनुसार प्रतिवर्ष ४.६ करोड़ व्यक्ति समुद्र की ऊंची लहरों के कारण आई बाढ़ से प्रभावित होते हैं। इस रिपोर्ट के अनुसार अगली शताब्दी में पृथ्वी की सतह के तापमान में १.४ से ५.९ डिग्री सेल्सियस तक बढ़ने की संभावना है। इस पैनल ने पिछले ५० वर्षो में हुई जलवायु परिवर्तन में वृद्धि के लिए मानव जाति को जिम्मेदार बताया है। संयुक्त राष्ट्र के आंकड़े बताते है कि अमीर देशों में विश्व की कुल २२ प्रतिशत आबादी ही रहती हैपर विश्व के ६८ प्रतिशत औद्योगिक कचरे का हिस्सा इन्हीं से पैदा होता है। संसाधनों की कमी के कारण गरीब देश जलवायु परिवर्तन एवं अन्य पर्यावरणीय समस्याआें से अधिक प्रभावित होंगे, जबकि विडंबना यह है कि पर्यावरण को दूषित करने में इनका योगदान न्यूनतम हैं।

जल ही जीवन है, लेकिन अगर प्रदूषित हो तो हजारों बीमारियों को बढ़ावा मिलता है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किए गए एक ताजा सर्वेक्षण के अनुसार विश्व में इस समय लगभग ८० प्रतिशत बीमारियां शुद्ध जल की कमी के कारण उत्पन्न हो रही है। भारत में किए गए एक अध्ययन के अनुसार एक हजार नवजात शिशुआें में से लगभग १२७ बच्चे हैजा, डायरिया तथा प्रदूषित जल से उत्पन्न रोगों से मर जाते है। राजस्थान के बड़े क्षेत्र में क्लोराइड युक्त दूषित जल पीने से यहां के निवासी पीढ़ी दर पीढ़ी ऐसे भयानक अस्थि रोगों का शिकार हो रहे हैं, जिनका उपचार संभव नहीं है।

इन सब पर्यावरणीय समस्याआें से बचने का एक ही तरीका है कि जंगलों को नष्ट होने से बचाया जाए, ओजोन पर्त को नष्ट करने वाली ग्रीन हाउस गैसों का उत्पादन और उपयोग बंद किया जाना चाहिए। अब यह अत्यन्त आवश्यक हो गया है कि विद्यमान वन सम्पदा की सुरक्षा की जावे। वनावरण तथा वृक्षावरण में वृद्धि हेतु बहुत अधिक कार्य करने की आवश्यकता है। पौधारोपण में जनसहयोग प्राप्त कर, पौधारोपण को जनान्दोलन बनाकर ही हम देश को वनावरण का अपेक्षित लक्ष्य प्राप्त करने में सफल हो सकते हैं।

आइये विश्व पर्यावरण दिवस पर संकल्प लें कि विश्व से पर्यावरण प्रदूषण दूर करने के लिए मेघों को आकर्षित कर वर्षा करवाने वाले, उद्योगों का धुआं रूपी हलाहल पीने वाले, शरीर के प्रत्येक अंग प्रत्यंग का उपयोग मानव सेवा में करने वाले, इन वृक्षों का अधिकाधिक रोपण व संरक्षण कर पर्यावरण प्रदूषण दूर कर पर्यावरण असंतुलन के फलस्वरूप मानव अस्तित्व पर आए संकट को दूर करेंगे।

धूल, धुआं, बढ़ता शोर

प्रकृति चली विनाश की ओर।

तीर्थ, हज कर वापस आओ

भोज के बदले वृक्ष लगाओ।।

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