गुरुवार, 31 मई 2007

इस अंक में

इस अंक में

पर्यावरण डाइजेस्ट के इस अंक में लोक चेतना पर विशेष सामग्री दी गयी है।

पहले लेख संकट में है, भूमिगत जल में सुप्रसिद्ध पर्यावरणविद् सुश्री सुनीता नारायण का कहना है कि सिंचाई एवं अन्य कार्यो में भूमिगत जल का जिस अनियमित तरीके से दोहन हो रहा है, उसके चलते आने वाले समय में जल की समस्या विकराल होगी। सुप्रसिद्ध पर्यावरण लेखक कुशपालसिंह यादव के लेख गंदगी से फैलता जहर में कोची नगर निगम द्वारा अपने अपशिष्ट निपटान में गंदगी फैलाने वाले तरीके की विस्तार से जानकारी दी है। म.प्र. के वनवासी अंचल झाबुआ के सामाजिक कार्यकर्ता शंकर तड़वाल ने अपने लेख आदिवासियों की अस्थिता का संकट में लिखा है कि आदिवासियों को सुधारने और संस्कारित करने के बहुविध प्रयास स्वयं आदिवासियों की अस्मिता का संकट पैदा कर रहे हैं।

म.प्र. के वरिष्ठ साहित्यकार राजेन्द्र जोशी के लेख पेड़ हमारे संस्कृति वाहक में अरण्य संस्कृति की चर्चा की गयी हैं। म.प्र. के प्रसिद्ध कृषि वैज्ञानिक डॉ. विनोद श्राफ के लेख म.प्र. जल समस्या का तात्कालिक उपाय में भूजल पुर्नभरण की तकनीकी पक्षों पर प्रकाश डाला गया है।

शाहजहांपुर उ.प्र. के महाविद्यालयीन विद्यार्थी सतनामसिंह ने अपने लेख विकास बनाम विनाश में पर्यावरण संरक्षण की आवश्यकता प्रतिपादित की है।

आगामी ५ जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जायेगा। इसी अवसर पर डॉ. खुशालसिंह पुरोहित के लेख पर्यावरण रक्षा हमारा सामाजिक दायित्व में पर्यावरण संरक्षण के लोक चेतना पर बल दिया गया हैऔर इसी से जुड़े कुछ सवाल उठाये गये है।

पत्रिका स्थायी स्तंभ पर्यावरण परिक्रमा, ज्ञान विज्ञान एवं पर्यावरण समाचार में आप देश दुनिया में पर्यावरण और विज्ञान के क्षेत्र में चल रही हलचलों से अवगत होते है।

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-कुमार सिद्धार्थ

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