गुरुवार, 31 मई 2007

प्रकाश व्यवस्था सुधारकर दस हजार करोड़ रु. बचा सकते हैं

पर्यावरण परिक्रमा

प्रकाश व्यवस्था सुधारकर दस हजार करोड़ रु. बचा सकते हैं

अगर देश में स्ट्रीट लाइट का कुशल प्रबंधन किया जाए तो १० हजार करोड़ रुपए से अधिक की राशि बचाई जा सकती है। इस राशि से १ हजार मेगावाट क्षमता वाले तीन बिजलीघर लगाए जा सकते है।

चण्डीगढ़ के प्रबुद्ध नागरिकों के समूह ने स्ट्रीट लाइट को लेकर अध्ययन के बाद एक रपट तैयार की है। नागरिकों की इस परिषद का सुझाव है कि मध्य रात्रि के बाद एक-एक पोल छोड़कर लाइट जलानी चाहिए अर्थात पचास मीटर के फासले की अपेक्षा सौ मीटर के फासले पर लाइट जलाई जाए। आधी रात के बाद सड़कों पर आवागमन कम हो जाता है। ऐसी हालत में सड़कों को अनावश्यक प्रकाशित करने के लिए कीमती बिजली बर्बाद नहीं की जानी चाहिए। यह बिजली बचाकर उद्योगों और खेतों की सिंचाई के लिए दी जा सकती है।

अगर समूचे चंडीगढ़ में नई प्रकाश व्यवस्था की जाए तो करीब आठ लाख रुपए खर्च आएगा। यह राशि सिर्फ १८ दिन में ही बिजली की बचत से वसूल हो जाएगी।

पिछली जनगणना के अनुसार भारत में ५१६१ कस्बे हैं। कुछ चंडीगढ़ से बड़े हैं और कुछ छोटे। चंडीगढ़ में नई व्यवस्था से प्रतिवर्ष २ करोड़ रुपए की बचत हो सकती है। इस तरह अन्य कस्बों में भी बिजली बचाई जा सकती हैं अर्थात कुल १० हजार करोड़ रु. की बचत होगी। इस राशि से एक हजार मेगावाट क्षमता के कम से कम तीन बिजलीघर बन सकते हैं।

इस नागरिक परिषद में चंडीगढ़ के प्रथम शिल्पज्ञ एमएन शर्मा, पंजाब के पूर्व मुख्य अभियंता एके उम्मठ के अलावा शिक्षाविद्, खिलाड़ी, वित्त विशेषज्ञ और अन्य सेवानिवृत्त वरिष्ठजन शामिल थे।

अभयारण्य में आग से शेरों की पुनर्वास योजना संकट में

एशियाई सिंहो के पुनर्वास के लिए आबाद की गई कूनो-पालपुर अभयारण्य परियोजना में आग से लगभग सौ वर्ग किमी का जंगल खाक हो चुका है। अभयारण्य में रहने वाले वन्यप्राणियों और वन संपदा के भारी तादाद में नष्ट होने की आशंका है।

गुजरात गिर के एशियाई सिंहो का पुनर्वास करने के उद्देश्य से वर्ष १९९५ में केन्द्र सरकार द्वारा प्रारंभ की गई १४ करोड़ की कूनो-पालपुर अभयारण्य परियोजना श्योपुर जिले में कूनो नदी किनारे एवं पालपुर वन क्षेत्र के १२४० वर्ग किमी क्षेत्र में अधिसूचित है। यहाँ गुजरात के सिंहो की अगवानी के लिए २४ ग्रामों को विस्थापित कर आवश्यक तैयारी पूर्ण कर ली गई है।

इसी कूनो नदी के किनारे का जंगल अभयारण्य का बफर जोन है, जिसमें पैदा होने वाली घास की फसल तथा महुआ व गोंद, चीड़ के वृक्षों की संख्या इतनी अधिक है कि कभी वह इस क्षेत्र में रहने वाले सैकड़ों परिवारों की आजीविका पूरे वर्ष चलाती थी। वर्तमान में इस जंगल में प्रवेश पाना बाहरी व्यक्तियों के लिए पूरी तरह से प्रतिबंधित है, लेकिन चोरी-छिपे वन संपदाआें से लाभ कमाने का क्रम बरकरार है।

पिछले दिनों प्रदेश के वन अभयारण्यों से जुड़े मामलों को लेकर भोपाल में बैठक संपन्न हुई। मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान की अध्यक्षता में बोर्ड ने निर्णय लिया था कि गुजरात से सिंह लाने के संबंध में बोर्ड भारत सरकार से पहल करेगा। मगर आग ने फिर इस योजना को खटाई में डाल दिया है।

चन्द्रयान अगले वर्ष अंतरिक्ष में जायेगा

चाँद पर भारत के पहले मानव रहित मिशन चंद्रयान एक के वैज्ञानिक उपकरणों और यान के विकास का काम अंतिम चरण मंे है। इसे अगले वर्ष निर्धारित समय पर अंतरिक्ष में छोड़ दिया जाएगा।

अंतरिक्ष विभाग ने संसद की स्थायी समिति को बताया कि चंद्रयान-एक को धरती से नियंत्रित करने के लिए बंगलोर में डीप स्पेस नेटवर्क स्थापित कर दिया गया है । अंतरिक्ष यान २००८ तक पूरी तरह तैयार हो जाएगा। समिति की संसद में पेश रिपोर्ट में कहा गया कि इस मिशन का मूल मकसद चाँद की पूरी सतह की त्रिआयामी तस्वीरें लेने के अलावा वहाँ मौजूद खनिजों एवं रसायनों का पता लगाना है।

चंद्रयान-एक को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के ध्रुवीय उपग्रह यान पीएसएलवी से प्रक्षेपित किया जाएगा। पीएसएलवी इसे पृथ्वी की २४० किलोमीटर गुणा २४०० किलोमीटर की कक्षा में स्थापित करेगा। बाद में यान खुद की प्रणोदक प्रणाली के बल पर चाँद से १०० किलोमीटर दूरी की ध्रुवीय कक्षा में पहुँच जाएगा।

प्रकृति प्रेमी ने बनाया पेड़ पर मकान

राजस्थान के उदयपुर मंे एक प्रकृति प्रेमी ने पेड़ पर सभी सुविधाआें से युक्त आलीशान मकान बनाकर सबको अचरज में डाल दिया है।

उदयपुर में नेशनल हाईवे से सटी चित्रकूटनगर कॉलोनी में बना यह मकान आम के पेड़ पर छ: वर्ष पूर्व केपी सिंह ने बनवाया था। आम का ७० वर्ष पुराना यह पेड़ कई शाखा-प्रशाखाआें से युक्त है। इसका तना ही ९ फुट की ठोस गोलाई लिए है इस पर सिंथेटिक फाइबर से बना तीन मंजिला मकान २८०० वर्गफुट में है। जिस जगह यह मकान बना है वहाँ पहले कुंजड़ों की विशाल बाड़ी थी। उस बाड़ी में चार हजार पेड़ थे। उन्हें कटवाने का २० लाख का ठेका था। श्री सिंह को जब इसका पता चला तो उन्होंने केवल पेड़ बचाने की सोची अपितु पेड़ और प्राणी के सनातन संबंध को चिरस्थायी बनाए रखने के लिए ट्री हाउस बनवाया। मकान बनाते समय पेड़ की टहनियों की किसी तरह काँट-छाँट नहीं की गई और न ही पत्तियों को ही क्षति पहुँचाई गई। यही कारण है कि आज भी इस पेड़ पर तोतों, गिलहरिया, कोयल, गिरगिटों तथा चिड़ियों के घोंसले हैं।

पेड़ पर बने इस मकान पर चढ़ने के लिए एक दस फुट ऊँची रिमोट चलित सीढ़ी का इस्तेमाल किया जाता है। रसोई में वृक्ष की डाल के सहारे काँच रखकर डाइनिंग टेबल बनाई गई है जिस पर पाँच व्यक्ति एक साथ भोजन कर सकते हैं। दूसरी मंजिल पर शयन कक्ष और पुस्तकालय है। इसमें एक ओर रस्सी का बना झूला है और पुस्तकें रखने की रेक की जगह है। तीसरी मंजिल पूर्णत: प्रकृति को आत्मसात किए है। इसमें पेड़ का सबसे ऊपरी सिरा हरीतिमा का आँचल ओढ़े है। छोटी-छोटी डालियाँ और उनके पत्तों की हवाखोरी की रौनक सर्वथा नए वातावरण का निर्माण करती है। इससे जुड़ा एक छोटा का कक्ष भी है। यह पूरा मकान वास्तु के अनुरूप बनाया हुआ है।

त्रिफला से हो सकेगा कैंसर का इलाज

वैज्ञानिकों ने आशा जताई है कि एक दिन भारतीय आयुर्वेदिक औषधि त्रिफला से पाचन ग्रंथी के कैंसर का इलाज किया जा सकेगा। पिटसबर्ग विश्वविद्यालय के कैंसर, संस्थान की एक टीम ने चूहों पर किए एक प्रयोग में पाया कि त्रिफला चूर्ण के इस्तेमाल से पैनक्रियाज यानी पाचन ग्रंथी में होने वाले कैंसर का बढ़ना कम हो जाता हैं।

अमेरिकन एसोसिएशन फॉर कैंसर रिसर्च में पेश अध्ययन से आशा जगी है कि एक दिन त्रिफला से इस रोग का इलाज भी हो पाएगा। लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि अभी शोध अपनी प्रारंभिक अवस्था में ही है। त्रिफला चूर्ण का भारत में सदियों से इस्तेमाल होता रहा है, यह आंवला, हरड़े और बहेड़ा नाम के तीन फलों को सुखाकर बनाया जाता है इसलिए इसे त्रिफला कहा जाता है।

आयुर्वेद के सिद्धांतो के अनुसार त्रिफला में जो तीन फल हैं वे शरीर में तीन अहम चीजों का संतुलन बनाए रखते हैं, ये तीन चीजें है - कफ, वात और पीत। त्रिफला का प्रयोग भारत में एक आम स्वास्थ्यवर्द्धक की तरह होता रहा है और इसे रोजमर्रा की बीमारियों के लिए बहुत प्रभावशाली औषधि माना जाता रहा है।

अध्ययनों में पाया गया है कि कोशिकाआें में त्रिफला कैंसर रोधी का काम करता है और अब चूहों पर किए अध्ययन से पता चलता है कि अग्नाशय को नुकसान पहुंचाए बिना त्रिफला बहुत ही असरदार है। मानव अग्नाशय के ट्यूमरों को चूहों में स्थापित किया गया और फिर हर हफ्ते में पांच दिन तक उन्हें त्रिफला खिलाया गया। चार हफ्तों बाद इन चूहों के ट्यूमर के आकार और प्रोटीन की मात्रा की ऐसे चूहों के साथ तुलना की गई जिन्हें त्रिफला नहीं दिया जा रहा था।

शोधकर्ताआें ने पाया कि त्रिफला दिए जाने वाले चूहों में ट्यूमर का आकार आधा हो गया अध्ययन टीम में शामिल प्रोफेसर संजय श्रीवास्तव का कहना था त्रिफला ने खराब हो चुकी कोशिकाआें को समाप्त कर दिया और कोई जहरीला प्रभाव छोड़े बिना ट्यूमर का आकार आधा कर दिया।

ब्रिटेन मंे कैंसर अनुसंधान के विज्ञान सूचना अधिकारी डॉ. एलसिन रॉस का कहना था, अग्नाशय कैंसर का इलाज बहुत कठिन है इसलिए इलाज के नए तरीके खोजने की जरूरत है, ये सब अभी तक प्राथमिक प्रयोग हैं त्रिफला को लेकर भविष्य में बहुत कुछ किए जाने की जरूरत हैं। ऐसा देखा गया है कि इलाज शुरू होने और मौत के बीच मात्र छह महीनें का फासला होता है। त्रिफला से शायद इस स्थिति को बदला जा सकेगा।

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