११ जनस्वास्थ्य
गरीब देशों में एनिमिया
विभा वार्ष्णेय
पूरे भारत वर्ष में एनिमीया (रक्ताल्पता) बुरी तरह से फैला हुआ है। इस कुपोषण का सबसे बडा कारण भोजन में लौह तत्व की कमी होना है । हालांकि इस कमी को पूरा करने का सबसे बेहतर तरीका संतुलित भोजन है परन्तु एनीमिया की व्यापकता ने लौह तत्वों के स्थानापन्नों का एक बडा बाजार निर्मित कर दिया है। जिसमें आम तौर पर इसकी महंगी किस्में ही उपलब्ध हो पाती हैं।
कर्नाटक के एक स्वयं सेवी संस्थान - ड्रग एक्शन फोरम कर्नाटक (डी.ए.एफ.के.) ने सन् २००६ में मूल औषधियों एवं नीतियों के संदर्भ में किए गए एक बाजार सर्वेक्षण के आधार बताया कि लौह स्थापन्न के सस्ते विकल्प बाजार में उपलब्ध नहीं हैं ।
केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण की अनिवार्य दवाआं में पंजीकृत एनीमिया रोधी फेरोस फ्यूमेरट नामक २०० मिली ग्राम की गोली जिसकी कीमत मात्र १३ पैसे निर्धारित है पूरे बाजार में उपलब्ध नहीं है, क्योंकि कोई भी दवा निर्माता इसके निर्माण हेतु इच्छुक नहीं है । इसके अभाव में चिकित्सक इस हेतु मजबूर हैं कि वे अन्य कोई उपलब्ध विकल्प की अनुशंसा करें जो कि ज्यादातर अनेक दवाइयों का सम्मिश्रण ही होते हैं । मरीजों के लिए ये सम्मिश्रण अत्यधिक महंगे साबित होते हैं। उदाहरण के लिए धारवाड शहर में उपलब्ध इस सम्मिश्रण की सबसे महंगी औषधि पर प्रतिमाह का खर्च ५४० रूपये आता है । जबकि यदि यही उपचार फैरोस फ्युमरेट से किया जाए तो यह खर्च मात्र ३ रूपये ९० पैसे से ११ रूपये ७० पैसे तक आता है ।
इस संगठन द्वारा लौह कमी के ३३८ पर्चोंा के विश्लेषण से यह तथ्य उभर कर आया कि बाजार में उपलब्ध लौह स्थानापन्न इसलिए महंगे हैं क्योंकि ये मूलत: उन औषधियों के सम्मिश्रण हैं जिनकी सामान्यतया कोई आवश्यकता नहीं होती । उदाहरण के लिए अनेक गोलियां कॉपर, पायरीडोक्सीन, रिबोफ्लेविन, विटामिन बी-१२ और फॉलिक एसीड के सम्मिश्रण से बनी हैं । ये सारे सम्मिश्रण किसी आवश्यकता की उपज नहीं है । उदाहरण के लिए कॉपर की कमी तो अत्यंत दुर्लभ है क्योंकि हमारा सामान्य भोजन ही इसकी पूर्ति कर देता है । इस विषय पर 'मंथली इन्डेक्स आफ मेडिकल स्पेशिलिटी' के संपादक सी.एम. गुलाटी का कहना है कि 'इस तरह के गैर जरूरी सम्मिश्रणों पर रोक लगा देनी चाहिए ।'
गरीब देशों में एनीमिया सर्वव्यापी है । एनीमिया जन्म के दौरान होने वाली मृत्यु का एक मुख्य कारण भी है । राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के अंतर्गत प्रत्येक गर्भवती महिला को लौह स्थानापन्न (आयरन) की गोलियां उपलब्ध करवाना अनिवार्य है । ऐसे बच्च्े जो रक्ताल्पता से पीडित हैं को भी लौह स्थानापन्न की १०० गोलियां उपलब्ध कराना अनिवार्य है । सन् २००६-०७ के बजट में दवाईयों एवं औषधियों हेतु किए गए २६४.८२ करोड रूपए के प्रावधान में से ४०.८५ करोड रूपए लौह स्थानापन्न हेतु निर्धारित किए गए थे । लौह की कमी से खून में मौजूद लाल रक्त कण (आर.बी.सी.) की गुणवत्ता और संख्या दोनों में गिरावट आती है ।
लाल रक्त कण में मौजूद हीमोग्लोबीन के निर्धारण में लौह की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है । क्योंकि जब यह निम्न स्तर पर चला जाता है तो लाल रक्त कण के ऑक्सीजन ग्रहण करने की क्षमता पर विपरीत असर पडता है, जिसके परिणाम स्वरूप मनुष्य को थकान महसूस होने लगती है ।
इसका समाधान बताते हुए ड्रग एक्शन फोरम के प्रमुख के अनुसार इस हेतु आवश्यक है कि केन्द्रीय उर्वरक एवं रसायन मंत्रालय सभी दवा निर्माताआें हेतु यह निर्धारित करे कि वे इस प्रकार की सस्ती दवाईयों का निर्माण एक निश्चित मात्रा में अनिवार्य रूप से करें । साथ ही राज्य सरकारों को भी समस्त स्थानीय दवाई विक्रेताआें के लिए यह अनिवार्य घोषित कर देना चाहिए कि वे अपने यहां इन दवाईयों का भंडार अवश्य रखें ।
फोरम ने केन्द्र सरकार को लिखा है कि वह प्रभावशाली ढंग से यह सुनिश्चित करे कि सस्ते लौह विकल्प बाजार में आसानी से उपलब्ध हों । इस संबंध में सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ मीरा शिवा का कहना है कि 'एनीमिया रोकने का सर्वश्रेष्ठ तरीका यह है कि लौह से भरपूर खाद्य सामग्री उपलब्ध करवाने के निश्चित उपाय किये जाएें, वैसे अनाज, फलियों, हरी सब्जियों, गुड, मांस, मछली, अण्डों आदि में भरपूर लौह अवयव विद्यमान होते हैं ।'
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1 टिप्पणी:
मौलिक जानकारी के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद !
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