मंगलवार, 26 जून 2007

२ विशेष लेख

२ विशेष लेख
गर्म हवायें और बदलती जलवायु
डॉ. लक्ष्मीकांत दाधीच
जलवायु प्रणाली एक जटिल विषय है । इसका नियंत्रण मात्र वायुमंडल में होने वाली घटनाआें से नहंी होता । महासागरों , हिममंडल, भूमंडल और जीवमंडल में होने वाली हलचल भी इसे नियंत्रित करती है ।सौरमंडल में सौर विकिरण से होेने वाली गरमाहट की मात्रा भी अंशत: धरती के स्वरूप पर निर्भर करती है । सागर व भूमि तल अलग- अलग गति से गरमाते हैं और हरी भरी धरती का सौर ऊर्जा को अवशोषित व परावर्तित करने का ढंग भी रेगिस्तानी या बर्फीली भूमि से अलग होता है । इस प्रकार सतहों की विविधता , सतहों पर ऊर्जा वितरण की एक जटिल बानगी प्रस्तुत करती है ।
विज्ञान ने आज यह स्पष्ट कर दिया है कि गहरे सागर तल पर बहने वाली धराएं दूरगामी जलवायु परिवर्तनों को लाती है । अधिकांश महासागरों पर सतह का पानी गर्म रहता है और इसीलिए अपने नीचे वाले पानी से हल्का होता है । इससे सतह का पानी गहरे सागर तल की ओर बढने को प्रवृत्त नहंी होता है परंतु उत्तर पश्चिम अटलांटिक सागर मे वाष्पीकरण और सर्दियो की ठंडक के मिश्रित दबाव मे सतह का पानी नीचे बैठने के लिए समुचित सघनता प्राप्त् कर लेता है । इसी मूल प्रक्रिया के कारण् उष्मा और सतह के पानी में घुला कार्बन सागर की गइराईयों में हजारों वर्षोंा तक पडा रहकर सागरीय धाराआें के परिवर्तन का कारण बना है । अतिरिक्त कार्बन का यह भंडारण या इसकी विमुक्ति मानव जनित जलवायु परिवर्तन को स्पष्ट करती है। जलवायु परिवर्तन के अंतर शासकीय पैनल (आईपीसीसी) के अनुसार, पूर्वानुमान क्षमता बढाने के लिए हमें जलवायु संबंधी प्रक्रियाआें के अंतर्गत बादलों, महासागरों व कार्बन चक्र से जुडे वैज्ञानिक विष्लेषणों पर अंतर्राष्ट्रीय विनिमय को सुविधाजनक बनाना ही होगा ।
आज धरती के गरमाने को समस्या न मानकर इसे जलवायु परिवर्तन का लक्षण माना जाता है । यह हमारे ध्यान दिए जाने वाला एक महत्वपूर्ण बिन्दु है जिसे लक्षण के रूप में बीमारी समझलेना एक भारी भूल साबित हो सकती है । मूल समस्या यह है कि मानवीय क्रिया कलाप वायुमंडल की ऊर्जा को सोखने व उत्सर्जित करने के तरीके को बदल रहा है । इस परिवर्तन के कुछ संभावित परिणाम जैसे समुद्रतल का ऊपर उठना इस बात पर सीधे तौर पर निर्भर करेगा कि इससे प्रति सतह का तापमान क्या क्रिया करता है । लेकिन सर्वाधिक महत्वपूर्ण प्रभावों में से अनेक, जैसे वर्षण और मिट्टी की नमी की मात्रा में बदलाव, किसी पता लग सकने वाली तापमान वृद्धि से काफी पहले ही आ धमेंकगें ।
आज की प्रावस्था में यदि कोई वैज्ञानिक यह तर्क प्रस्तुत करता है कि तापमान वृद्धि , मॉडलों के पूर्वानुमानों जितनी बडी या तेज नहीं होगी तो उसका यह तात्पर्य कदापि नहीं हो सकता कि समस्या की अनदेखी की जाये । सवाल सिर्फ यह है कि यह विशेष लक्षण यानि धरती का औसत तापमान अविश्वसनीय हो सकते हैं । हम जानते हैं कि वायु के विकरणी गुण बदल रहे हैं । साथ ही हमें यह भी पता है कि इस बदलाव के जलवायवी प्रभावी काफी गंभीर होंगें । सभी जलवायु मॉडलों के अनुसार सबसे महत्वपूर्ण बदलाव होगा धरती का गरमाना, किन्तु अगर यह बात नहंी भी है तो दूसरे इतने ही गंभीर बदलाव अवश्यंभावी है । हम जलवायु प्रणाली के जलवायु के ऊर्जा स्त्रोत में हेरफेर कर रहे हैं । इस प्रघात को आत्मसात करने के लिए कुछ को तो बदलना ही होगा ।
मानव जनित जलवायु परिवर्तन निश्चित ही मानव की कृषि को प्रभावित कर मानव जीवन को संकट में डाल सकता है । वर्षण घट सकता है, मिट्टी में नमी की मात्रा कम हो सकती है तथा अतिरिक्त गर्मी के जोर से उष्ण कटिबंधी क्षेत्रों की फसलें और विशेषकर पशुधन को नुकसान हो सकता है । कुछ तटीय क्षेत्रों में भूजल और ज्यादा खारा हो सकता है । बाढ, तूफान और उष्ण कटिबंधी चक्रवातों से होने वाली हानि की मात्रा बढ सकती है तथ बदलते तरंग पेटर्न कुछ क्षेत्रों में और ज्यादा महातरंगे तथा ज्वारीय तरंगे पैदा कर सकते हैं ।
जलवायु परिवर्तन के पूर्वानुमानित प्रभावों से विश्व में भूख और गरीबी के पनपने का अनुमान है । नए और अस्थिर जलवायुक्रमोंका आथ्र्ािक स्थिति पर भारी दुष्प्रभाव हो सकता है, विशेषतौर से प्राकृतिक संसाधनों के क्षेत्र में । जो लोग कृषि, मछलीपालन या वानिकी पर निर्भर हैं उनकी आजीविका कम वर्षा, विकृत मिट्टी और क्षीण हुए जंगलों व मछली क्षेत्रों के कारण खतरे में पड सकती है । यदि तापमान बढता है और ओजोन की घटती परत पराबैंगनी किरणों को अधिक मात्रा में प्रवेश होने देती है तो विषाक्त जीवाणु पनपने लगेंगें और शरीर की रोगनिरोधक क्षमता घटने लगेगी । स्वास्थ्य के बढते खतरे कुपोषित बच्चें, बीमार बूढों और बेघरों को अपना निशाना बनायेंगें ।
यह भी कहा जाता है कि जलवायु परिवर्तन से विकासशील देशों पर सर्वाधिक प्रभाव पडने से संघर्ष और बढेगा। इन कुप्रभावों से महत्वपूर्ण स्त्रोत जैसे भोजन और पानी के सापेक्ष वितरण में बदलाव आ सकता है । जिन क्षेत्रों में जनसंख्या वृद्धिके कारण इन स्त्रोतों की पहले ही तंगी है , जलवायु परिवर्तन के कारण भूखमरी फैलने और विस्थापितों की समस्या पैदा होने का खतरा है । सामर्थ्यवान देशों की तरह गरीब देशों के पास कम प्रभावित देशों से इन स्त्रोतों को खरीदने की सामर्थ्य नहीं होगी , और न ही वे खाद़्य पदार्थोंा व अन्य आवश्यक स्त्रोतों में फिर से आत्मनिर्भरता पैदा कर पायेंगें । यदि जलवायु परिवर्तन के परिणाम भयंकर हुए तो समर्थ देश, कमजोर देशों के मुकाबले अपने स्त्रोतों व सीमाआें की बेहतर सुरक्षा कर सकेंगें । यदि हमारे प्रयासों के बावजूद भी जलवायु परिवर्तन के प्रभाव महसूस होते हैं तो हमें पर्यावरण को हुई क्षति के परिणाम भुगतने ही पडेंगें । विश्व जलवायु परिवर्तन का आर्थिक पहलू मुख्यतया गरमाती धरती के साथ मानव द्वारा किये जाने वाले त्याग के बीच संतुलन में निहित होगा ।
आगामी कुछ दशक निर्णायक ह्ै जब प्रत्येक व्यक्ति को यह सोचना पडेगा कि पर्यावरण संरक्षण प्रकृति संरक्षण का प्रश्न अंतर्राष्ट्रीय मंच का प्रश्न है और इसका एक ही उत्तर है भावी पीढी के हितों पर कुठाराघात किए बिना पर्यावरण के सभी घटकों का ईमानदारी से संरक्षण जिसमें नियोजित दोहन तो हो पर शोषण नहीं । अत: जलवायु परिवर्तन के क्रम को बदलने के लिए तत्काल कदम उठाना आज समय की आवश्यकता है ।
आज सारी दुनिया में राजनेताआें, समाजसेवियों, वैज्ञानिकों और पर्यावरणविदों के बीच मुख्य चर्चा है कि जलवायु परिवर्तन जैसे महत्वपूर्ण पर्यावरणीय संकट का विकल्प कैसे खोजा जाए ।
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