इंदिरा गाँधी नहर से क्या सबक ले ?
अशोक माथुर
इंदिरा गांधी नहर परियोजना देश की बडी सिंचाई परियोजना में से एक हैं। चीन के तिब्बत प्रांत की मानसरोवर झील का पानी लेकर यह नहर थार के रेगिस्तान की प्यास बुझाती है ।
हिमालय का यह पानी राजस्थान के रेगिस्तान के लिए अमूल्य अमृत है । गंगा, भाखडा तथा इंदिरा गांधी नहर ने पूरे देश में आशाआें के सपने जगाए थे । सतजल नदी के पानी पर मनुष्य द्वारा निर्मित यह नहर गंगानगर, हनुमानगढ, बीकानेर, चुरू, जैसलमेर क्षेत्र में सिंचाई तथ बीकानेर, जोधपुर जैस रेगिस्तानी बडे शहरों के लिए पेयजल का स्त्रोत बनी है । नहर का निर्माण तथा तकनीकी मामलों पर प्राय: अनेक प्रश्न उठते रहे हैं । लेकिन यहां हम तकनीकी और प्रशसनियक दोषों को नहीं गिना रहे है क्योंकि उन अपराधों का दण्ड तो हमें भोगना पड रहा है । सन् १९९२ में कई तकनीकी विशेषज्ञ, कृषि वैज्ञानिकों, समाजशास्त्री तथा किसान संगठनों के साथ लेकन ने तलवाडा झील से जैसलमेर तक नहर यात्रा की थी । यह यात्रा पर्यटन के दृष्टिकोण से नहीं थी । यात्रा के दौरान पाया कि तकनीकी दोषों ने हजारों बीघा जमीन को वाटर लोगिंग (सेम) के कारण बंजर व बेकार कर दिया।
नहरी क्षेत्रों में जो विकास का मॉडल अपनाया गया उसने धन व सम्पत्ति की अंधी दौड आरंभ कर दी । नहर के साथ-साथ शराब का दरिया भी बह चला सामाजिक, सांस्कृतिक मूल्यों पर ध्यान देने की कोई जरूरत नहीं समझी गई । शिक्षा के नाम पर हिंदी अंग्रेजी में शब्द ज्ञान तो बहुत हुआ । लेकिन सामाजिक गठबंधन व लोक चेतना लुप्त् हो गई । सरकारी आंदोलन कागजों में दौडा लेकिन संयुक्त परिवार प्रथा चकनाचूर हो गई । व्यवहार रूप में ग्राम समुदाय पारस्परिक सहयोग व सरकार को भूल गए । पैसे की अंधी दौड व वैभव प्रदर्शन ने पूरे इलाके में ट्रेक्टर, जीप, कार, मोटर साईकलों की भीड बढा दी ।
इस सारी तरक्की के पीछे झांकने की कोशिश राजनीतिज्ञों की कभी नहीं थी । वोट के गोरखध्ंाधे में नहर व नहरी पानी एक सुनहरा चैक है । लेकिन एक बडी सच्चई जो इस प्रकार के विकास के मॉडल के रूप में उभर कर आई वो यह थी कि पूरे इलाके में किसान कर्जदार बन गया । बैंको, निजी ऋण-संस्थाआें और आडतियाँ का बंधुआ मजदूर बना किसान शराब के नशे में मुस्कुराता हुआ दिखता तो है लेकिन अंदर से वो खोखला हो गया है । जिस खेती व किसान के नाम पर पानी रेगिस्तान में लाया गया, वे आज दुखी व परेशान हैं । पूरे क्षेत्र में पशु पालन समाप्त् हो गया । साथ ही पशु पालन व कृषि का संतुलन भी बिगड गया है । इस संतुलन के बिगडने का सीधा असर पर्यावरणीय संकट का पैदा होना है। जो चारागाह थ्ेा, वे कृषि भूमि के रूप में सरकार द्वारा बेच दिए गए ।
ओरण, जोहड, ताल-तलैया व बावडिया तक बिक गयीं । यह एक जबरदस्त सच्चई है कि सरकार ने नहरी सिंचाई का प्रलोभन देकर रेगिस्तान के अकृषि योग्य भूमि को बेचकर अरबों रूपया कमाया । नहर से सबसे ज्यादा लाभ विश्व बैंक जैसी विदेशी संस्थाआें को हुआ। ऋण और ब्याज उनकी कमाई का अच्छा जरिया है । पानी के स्त्रोत कैसे हैं ? हिमालय में पानी कितना है ? क्या भविष्य में भी चीन मानसरोवर का पानी सतलज और इंदिरा गांधी नहर तक पहुंचने देगा ? इसका कोई जवाब अभी हमारे पास नहीं हैं ।
भारत सरकार और चीन के बीच में आज की त्तारीख तक इस पानी को लेकर कोई समझौता नहीं है । जबकि चीन ने सतलज तथा ब्रह्मपुत्र का पानी नील नदी और गोबी के रेगिस्तान में ले जाने की पूरी तैयारी कर ली है । यदि ऐसा होता है तो पूरा इंदिरा गांधी नहर क्षेत्र एक बार फिर उजड जायेगा । विकास का यह मॉडल आम आवाम के हक में नहीं जा रहा । नहर के निर्माण और रखरखाव के कारोबार से चंद नौकरशाह व ठेकेदार जरूर मालामाल बन रहे हैं । भूमि के असमान वितरण व सीलिग एक्ट की अवहेलना के परिणाम स्वरूप छोटा, मंझला व सीमांत किसान अपनी जमीन से उखड गया है । पोंग बांध के विस्थापित भी अपनी जमीन पर खेती नहीं कर पाये । दलितों की जमीन भी दलित जातियों में उभरे नव धनिक व नव सामंतों के कब्जे में चली गई है । कमोवेश पाकिस्तान से आने वाले विस्थापितों के भी यही हालात हैं । अनेक क्षेत्रों में जायज-नाजायज तरीकों से जमीन पर कब्जा जमाए भू-पतियों का वर्चस्व अब स्पष्ट दिखाई दे रहा है । जो पूरे क्षेत्र में वर्गीय विभाजन की रेखा बन गया है । खनिज पदार्थो का क्षरण भी इंदिरा गांधी नहर क्षेत्र की एक समस्या है । जिप्सम के विशाल मैदान के ऊपर पूरे क्षेत्र में जो सिंचाई क्षेत्र बिछाया गया है वो सेम की समस्या का मुख्य कारण है । इससे जिप्सम भी खराब हुआ और खेत भी खराब हुए ।
इस बर्बादी के लिए करोडों रूपये सरकारी तंत्र ने खर्च किए लेकिन आज इसकी जिम्मेदारी कोई नहीं ले रहा । इंदिरा गांधी नहर के निर्माण, सिंचाई प्रबंधन, कृषि चक्र और बाजार तंत्र के जो परिणाम हमारे सामने आए है उनकी वकालत तो नहीं की जा सकती परंतु उनसे सबक लेकर हमें आगे बढना होगा । अब राज्य में यमुना और गंगा का पानी हडपने की तैयारी चल रही है । झुंझूनू, चुरू, नागौर, बीकानेर, जैसलमेर, जोधपुर व बाडमेर इस नई सिंचाई परियोजना के क्षेत्र में हैं । जबकि नर्मदा नदी का पानी भी जालौर, सिरोही व बाडमेर में आने वाला है । इंदिरा गांधी नहर हमारे लिए एक अच्छा सबक है । यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि नहरी परियोजनाआें को उनकी क्षमता व डिजाईन के मुताबिक नदियों व जल स्त्रोतों से पानी मिलें ।
अगर पानी की आवक नहीं है तो राजनैतिक वाही-वाही के लिए और भू-राजस्व और भूमि की कीमत वसूलने के लिए अनावश्यक सिंचाई क्षेत्र घोषित किया जाए । भूमि की संरचना को भली प्रकार जांचा जाए कठोर चट्टानों और जिप्सम क्षेत्रों को सिंचित क्षेत्रों में बदलने की कोशिश नहीं की जानी चाहिए । पशु पालन व कृषि में बराबर का संतुलन होना चाहिए । चारागाह तथा पुराने जोहड, ताल-तलैया व झीलों को यथास्वरूप सुरक्षित कर उन्हें नहरी पानी से भरा जाना चाहिए ताकि जल का पुर्नभरण होता रहे। विशेष वन क्षेत्र ग्राम समुदाय के सहयोग से विकसित किये जाने चाहिए । कृषि भूमि का वितरण, सीलिंग प्रबंधन, कृषि विशेषज्ञों व किसानों के वास्तविक प्रतिनिधियों द्वारा किया जाना चाहिए ।
पुराने अनुभव के आधार पर उपरोक्त सुझाव हो सकते है । जो नए खतरे पैदा हो गए हैं उन पर भी चर्चा बहुत आवश्यक है । विश्व बैंक ने केन्द्र व राज्यों की सरकारों को पानी के कारोबार से मुनाफा कमाने की सलाह दी हैं । विश्व बैंक तथा एशियाई विकास बैंक की मानसिकता सूदखोर महाजन की है । प्राकृतिक संसाधन किसी राज्य, सरकार, व्यक्ति या कंपनी की बपौती नही हो सकते। पानी हमारे जिंदा रहने की पहली शर्त है और अगर पानी पर पहरे बैठें अथवा नदियों व नहरों पर कंपनी व सरकारों का कब्जा होकर पानी बेचने का गोरखधंधा आरंभ हो गया तो इस धरती पर कोहराम मच जाएगा । इंदिरा गांधी नहर क्षेत्र में एशियाई विकास बैंक के दबाव से पेयजल योजनाआें का निजीकरण हो रहा हैं ।
चुरू समेत अनेक स्थानों पर पेयजल योजनाआें पर सीधी दखल प्रारंभ भी हो गई है जिससे पानी का निजीकरण होगा । यह दुर्भाग्य की बात है कि जनता से वोट लेने वाली तमाम राजनैतिक पार्टियां इस अहम मुद्दे पर पूरी तरह खामोश हैं । जाहिर है पानी के निजीकरण व व्यापारीकरण के कायदे बनाने वाली विधानसभा के सदस्य अगर इस मुद्दे पर खामोश रहते हैं तो वे अपने मतदाता के साथ गद्दारी करते हैं। पानी बेचने के कारोबार के साथ एक ऐसा नेटवर्क तैयार है जो शहरों में पेयजल योजनाआें के नाम पर तथा उद्योग व व्यवसाय के नाम पर ज्यादा पानी व ज्यादा मुनाफा और आसान वसूली के इंतजार में हैं । इसलिए राज्य की समस्त सिंचाई परियोजनाआें का लक्ष्य अब शहर व उद्योग हो गए हैं ।
ऐसी रणनीति कृषि व सिंचाई के लिए पानी की मात्र को कम कर देगी और धडसाना, सोहल व राजसमंद जैसे अनेक संघर्षो को आमंत्रण देगी । आदमी से आदमी को लडाया जा रहा है । इंदिरा गाधी नहर क्षेत्र में प्रथम चरण व द्वितीय चरण के किसानों में टकराहट है । पानी का गोरखधंधा हमें नहर के मूल उद्देश्य से भटका देगा । समय रहते भ्रष्टाचार के इस अंधकूप से नहरी तंत्र को बाहर आना पडेगा । इंदिरा गांधी नहर से सबक लेकर हमें राजस्थान एवं पूरे देश के लिए सिंचाई तंत्र को सुदृढ करना चाहिए ।
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