मंगलवार, 26 जून 2007

संपादकीय

बड़े बांधों से बढ़ता पर्यावरणीय असंतुलन
नवीनतम वैज्ञानिक अध्ययन बताते है कि भारत में बड़े बांध देश के ग्लोबल वार्मिंग कुल असर के पांचवे हिस्से के लिए जिम्मेदार हैं। ये आकलन यह भी उजागर करते हैं कि दूसरे देशों के मुकाबले भारत में बांध ग्लोबल वार्मिंग में सबसे ज्यादा योगदान करते हैं । ब्राजील के नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर रिसर्च (आईएनपीई) के इवान लीमा एवं उनके सहयोगियों द्वारा किये गये आकलन से यह जानकारी मिली है । इस अध्ययन के अनुसार भारत के बड़े बांधों से कुल मीथेन उत्सर्जन ३.३५ करोड़ टन प्रति वर्ष है, जिसमें जलाशयों से (११ लाख टन), स्पिलवे से (१.३२ करोड़ टन) एवं पनबिजली परियोजनाआें के टरबाईन से (१.९२ करोड़ टन) उत्सर्जन शामिल है । भारत के जलाशयों से कुल मीथेन का उत्पादन ४.५८ करोड़ टन है। अध्ययन का यह भी आकलन है कि विश्व के समस्त जलाशयों से मीथेन का उत्सर्जन १२ करोड़ टन प्रति वर्ष तक हो सकता है । इसका मतलब हुआ कि समस्त मानवीय गतिविधियों से मीथेन के कुल वैश्विक उत्सर्जन में अकेले बड़े बांधों का योगदान २४ प्रतिशत है । इस अध्ययन में बड़े बांधों से उत्सर्जित होने वाले नाइट्रस आक्साइड एवं कार्बन डाई ऑक्साइड शामिल नहीं है । यदि इन सबको शामिल किया जाता है तो बड़े जलाशयों से होने वाले ग्लोबल वार्मिंग का असर और भी ज्यादा हो जाएगा । भारत के बांधों से मीथेन का उत्सर्जन पूरे विश्व के बड़े बांधों के मीथेन उत्सर्जन का करीब २७.८६ प्रतिशत अनुमानित है , जो कि विश्व के किसी भी देश के हिस्से से ज्यादा है । ब्राजील के जलाशय मीथेन उत्सर्जन के मामले में दूसरे नंबर पर आते हैं, जो २.१८ करोड़ टन प्रतिवर्ष मीथेन उत्सर्जन करते हैं एवं वह पूरे विश्व के मीथेन उत्सर्जन का १८.१३ प्रतिशत है । अध्ययन से इस विश्वास से भी लोगों की आंखें खुलेगी कि बड़ी पनबिजली परियोजनाआें से पैदा होने वाली बिजली स्वच्छ होती है । भारत की पनबिजली परियोजनाएं पहले से ही समुदायों एवं पर्यावरण पर गंभीर सामाजिक एवं पर्यावरणीय असर के कारण जानी जाती हैं । इस वास्तविकता के बाद कि ये परियोजनाएं बड़ी मात्रा में ग्लोबल वार्मिंग गैस का उत्सर्जन भी करती हैं , परियोजनाआें का इस दृष्टि से भी अध्ययन होगा ।

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