शनिवार, 21 जुलाई 2007

१३ पर्यावरण समाचार

१३ पर्यावरण समाचार

भू-जल उपयोग के लिये नया कानून बनेगा
कोई भी व्यक्ति जिस जमीन का मालिक है, उसके नीचे के (भूमिगत) पानी पर उसी का अधिकार रहा है । व्यक्ति को यह कानूनी हक लगभग सवा सौ साल से मिला हुआ है, लेकिन केंद्र सरकार की अब इस १२२ साल पुराने `इजमेंट एक्ट १८८५' में संशोधन करने की योजना है। केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय और योजना आयोग इस कवायद में जुटे हैं ।
इस संशोधन के बाद जमीन के नीचे से जल पर उसका कानूनी हक समाप्त् हो जाएगा । यह सब इसलिए किया जा रहा है कि भू-जल के अंधाधँुध दुरूपयोग को रोका जा सके ।
इसलिए माना जा रहा है कि शीतल पेय और बोतलबंद पानी से लेकर खेती के लिए भू-जल के मुफ्त और अंधाधँुध इस्तेमाल को रोकने के लिए केंद्र सरकार संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में इस प्रस्तावित विधेयक को पेश कर देगी । हालाँकि इस विधेयक को तैयार करने में जुटे जल संसाधन मंत्रालय को यह भी आशंका है कि भू-जल की कीमत तय कर लेने से आम उपभोक्ता की जेब पर भार पड़ेगा, क्योंकि कंपनियाँ तो शीतलपेय और बोतलबंद जल की कीमतें बढ़ाकर पूरा बोझ लोगों की जेब पर डाल देंगी । इसलिए मंत्रालय इस विधेयक के राजनीतिक तौर पर भी नफा और नुकसान का आकलन लगा रहा है ।
केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय और योजना आयोग इस मामले में सक्रिय है । व्यावसायिक उपयोग के लिए भू-जल की मुफ्तखोरी बंद कराने के लिए योजना आयोग से हरी झंडी मिल जाने के बाद जल संसाधन मंत्रालय इस मामले को कैबिनेट के सामने ले जाने की तैयारी में जुटा है । सूत्रों के मुताबिक जल संसाधन मंत्रालय शीघ्र ही राज्यों को यह हिदायत देने जा रहा है कि वे अपनी तैयारी कर लें, क्योंकि केंद्र सरकार भू-जल की कीमतें तय करने के लिए भी जल्द ही कानून बनाने जा रही हैं ।
सैटेलाइट से मिलेगी सुनामी की सूचना
तीन साल पहले आई विनाशक सुनामी लहरों से सबक लेते हुए केंद्र सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने सुनामी की चेतावनी देने वाला अत्याधुनिक सिस्टम लगाने का निर्णय लिया है । इससे दो घंटे पहले सुनामी आने की सूचना मिल जाएगी ।
वैज्ञानिक सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार भारत में जल्द ही सुनामी की चेतावनी देने वाले अत्याधुनिक पाँच सेंसर लगाए जाएँगे । ये सेंसर गुजरात के तटीय इलाकों में समुद्र के भीतर स्थापित किए जाएँगे, जो किसी भी प्रकार की अस्वाभाविक हलचलों की जानकारी दो घंटों पहले मुहैया करवा देंगे । केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री कपिल सिब्बल ने बताया कि हमारा मौसम विभाग और प्राकृतिक आपदाआें की पूर्व सूचना देने वाला सिस्टम पहले से काफी बेहतर हुआ है । फिलहाल हमें २० और ऐसे सेंसरों की जरूरत है जो समुद्र की सतह पर पड़ने वाले दबावों और हलचलों को माप सकें। इसके अलावा समुद्र के अत्यंत नीचे होने वाले बदलावों को भाँपने वाले १२ सेंसरों की जरूरत है । इसी क्रम में गुजरात के तटीय इलाकों में पाँच सेंसर लगाए जाएँगे।
ये सभी पाँच सेंसर सुनामी डिटेक्शन नेटवर्क का हिस्सा हैं । इन सेंसरों को अरब सागर में स्थापित किया जाएगा। सैटेलाइट के जरिए जुड़े होने के कारण इनसे समुद्र के भीतर होने वाली हलचलों, पानी के दबाव में परिवर्ततन, बहाव में उतार-चढ़ाव की पल-पल जानकारी मिलेगी ।
साथ ही भूकम्प पैदा करने के लिए जिम्मेदार मानी जाने वाली प्लेटों की स्थिति में बदलाव को भी सेंसर मापेंगे । सैटेलाइट के जरिए यह जानकारी हैदराबाद स्थित राष्ट्रीय समुद्र सूचना सेवा केंद्र तक पहुँचेगी जहाँ लगे सुपर कम्प्यूटर सुनामी लहरें या समुद्री भूकम्प आने का समय बताएँगे ।
राजेश पटेल न्यूजीलंैड में वृक्ष को जहर देने का दोषी
न्यूजीलैंड में एक खुराफाती भारतीय को एक संरक्षित पेड़ की जड़ में जहर डालने का दोषी करार दिया गया है। इस भारतीय पर अदालत ने ५ हजार डॉलर का आर्थिक दंड लगाया है ।
ऑकलैंड में रहने वाले राजेश कुमार लल्लूभाई पटेल को अदालत ने यह सजा सुनाई है । भारतीय मूल के राजेश कुमार ने यह स्वीकार किया है कि उन्होंने माउंट अलबर्ट स्थित हॉर्टीकल्चर एंड फूड रिसर्च इंस्टीट्यूट में गिंकगो प्रजाति के एक वृक्ष की जड़ खोदकर उस पर जहर डाला था । उसने न सिर्फ जड़ में बल्कि पेड़ की मुख्य शाखा में छेद कर जहर डाला । अभियोजन पक्ष के मुताबिक राजेशकुमार ने जहर से भीगी रूई इन छेदों मे डाल दिया । जांच अधिकारियों ने अदालत को बताया कि पेड़ को जहर दिए जाने से इसे नुकसान पहुंचा है । पेड़ में कई तरह की आंशिक विकृतियां आ गयी है ।
अगर इस पेड़ को अधिक गंभीर नुकसान पहुंचा तो राजेश को १० हजार डॉलर से १५ हजार डॉलर का आर्थिक दंड भुगतना पड़ सकता है । गिंकगो का पेड़ करीब ३० मीटर तक बड़ा होता है । न्यूजीलैंड में इसे संरक्षित पेड़ों की सूची में शामिल किया गया है । इन पेड़ों की कटाई या उनके साथ छेड़छाड़ करना आपराधिक गतिविधियों में आता है ।

वर्ष २००७ अब तक का दूसरा सबसे गर्म वर्ष
ग्लोबल वार्मिंग के प्रभावों से वर्ष २००७ अब तक का दूसरा सबसे गर्म वर्ष साबित हो सकता है । संयुक्त राष्ट्र के अंतरराष्ट्रीय मौसम संगठन को आँकड़े उपलब्ध कराने वाले ब्रिटेन के पूर्व में एंजलिया स्थित विश्वविद्यालय की जलवायु शोध इकाई के प्रमुख फिल जोंस ने कहा है कि १९९८ के बाद वर्ष २००७ अब तक का दूसरा सबसे गर्म वर्ष साबित हो सकता है । उन्होंने गत वर्ष के अंतिम दौर में ही वर्ष २००७ के दूसरे सबसे गर्म होने की भविष्यवाणी की थी । ग्लोबल वार्मिंग का प्रमुख कारण जीवाश्म इंर्धनों को जलाया जाना तथा प्रशांत क्षेत्र में अलनीनो तूफान के कारण उत्पन्न ग्रीन गैंसे हैं ।
ज्यादातर मौसम विशेषज्ञों का मानना है कि मानसून में आए इन बदलावों से सूखा, बाढ़, लू और शक्तिशाली चक्रवाती तूफानों की आशंका बढ़ गई है । हालॉकि उनका यह भी कहना है कि किसी एक प्राकृतिक आपदा को हमेशा ग्लोबल वार्मिंग से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए, क्योंकि कुछ बदलाव अचानक ही हो जाते हैं ।
गत डेढ़ सौ सालों में सबसे गर्म दस साल १९९० के दशक के बाद के ही रहे हैं । अंतरराष्ट्रीय मौसम संगठन के मुताबिक पिछला साल अब तक का छठा सर्वाधिक गर्म वर्ष रहा है, जबकि अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के मुताबिक १९९८ के बाद वर्ष २००५ सबसे गर्म साल रहा ।
दवा करेगी भूख को नियंत्रित
इटली के वैज्ञानिक ने एक ऐसी दवा विकसित करने का दावा किया है जिसके सेवन से कुछ घंटो के लिए भूख को काबू में रखा जा सकता है । उनका दावा है कि ऐसी गोली मोटापे के शिकार लोगों के लिए वरदान साबित हो सकती है । अभी तक इस दवा का नाम नहीं रखा गया है । इसका निर्माण हाइड्रोजेल से किया गया है । पाउडर से बनी यह दवा पेट में जाते ही जेली का रूप धारण कर लेती है और घंटों भूख को नियंत्रित रखती है । यह दवा कार्बनिक तत्व सेल्युलोज से बनी है । इस दवा का कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता है । इसकी बदौलत न सिर्फ कई घंटों तक भूख को टाला जा सकता है बल्कि अपने आपको तरोताजा भी महसूस किया जा सकता है ।
पुरूषों की तुलना में तीन गुना ज्यादा बोलती है महिलाएँ
दुनिया मानती है कि भले ही महिलाएँ इंकार करें, लेकिन वे पुरूषों की तुलना में कुछ नहीं बहुत ज्यादा ही बोलती हैं । ख्यात लेखिका लुआन ब्रिजेन्डाइन ने अपनी पुस्तक `द फिमेल माइंड' में कहा है कि इस व्यवहार का कारण निश्चित ही स्त्री और पुरूषों के मस्तिष्क की संरचना का अंतर है ।
हाल ही में इस तरह का प्रयोग अमेरिका और मैक्सिको की ४०० यूनिवर्सिटी में भी हुआ । इसमें यह पाया गया कि महिलाएँ एक दिन में १६,००० से २०,००० शब्दों का उच्चरण करती हैं व पुरूष ७,००० शब्दों तक ही सीमित रहते हैं ।
अमेरिका के ऑस्टिन शहर की यूनिवर्सिटी टैक्सास के मनोविज्ञान विभाग के प्रमुख जेम्स पेनेबेकर ने अध्ययन भी किया था उनकी टीम ने अपने नतीजे ६ जुलाई के सांइस के अंक में प्रकाशित कराए हैं ।
आर्कटिक के जलाशय सूखे
अमेरिका में धरती के निरंतर बढ़ते तापमान के कारण आर्कटिक सागर के कुछ प्राचीन जलाशय भी अब सूखते जा रहे हैं । कनाडा के शोधकर्ताआें ने जानकारी देते हुए बताया कि ग्लोबल वॉर्मिंक के कारण आर्कटिक सागर के हजारों साल पुराने कुछ जलाशय सूखने लगे है और इसका असर यहाँ के जीव-जंतुआें के जीवन-चक्र पर भी पड़ रहा है ।
दल के प्रमुख मेरियाने डगलस ने बताया कि पिछले साल इन जलाशयों का दौरा करने पर पता चला कि इनमें से कुछ जलाशय सूख चूके हैं या सूखना शुरू हो गए हैं । इनमें कुछ जलाशय तो छ: हजार साल पुराने हैं और इनको सूखता देख पूरा दल आश्चर्यचकित रह गया । इतने कम समय में इन जलाशयों का सूखना वास्तव में न सिर्फ आश्चर्य की बात है, बल्कि इससे ग्लोबल वार्मिंग के त्वरित असर का भी अंदाजा लगाया जा सकता है । यह दल पिछले वर्ष जुलाई के शुरू में इस इलाके में गया था ।

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2 टिप्‍पणियां:

मैथिली गुप्त ने कहा…

आपका प्रयास वाकई सराहनीय है.

Sanjay Tiwari ने कहा…

पानी को निजी हाथों में गिरवी रखने की कोशिश तो चल ही रही है. यह प्रयास उसी दिशा में उठाया गया कदम लगता है. लेकिन इसे रोकने के लिए हम सब प्रयास करेंगे. आपने अच्छी जानकारी दी.