जल
कुंवर कुसुमेश
विषमय हो जा रहा, सरिताआं का नीर ।
लेकिन सुनता नहीं, कोई इनकी पीर ।।
नदियां पर्वत की बहें, हर पल सिल्ट समेट ।
यहां सिल्ट का अर्थ है, पत्थर, बजरी, रेत ।।
यही सिल्ट मैदान में, बाधित करे बहाव ।
दूषित जल का मुख्य है, कारण जल ठहराव ।।
दूषित जल से यदि मरे, नित्य समुद्री जीव ।
पूरे पर्यावरण की, हिल जायेगी नींव ।।
झीलों, नदियों, सागरों, का लेकर आकार ।
इकहत्तर प्रतिशत दिखे, भू पर जल-विस्तार ।।
धरती से जल वाष्प बन, चले गगन की ओर ।
फिर वर्षा के रूप में, छुए धरा का छोर ।।
कहीं पड़ा सूखा कभी, कहीं आ गई बाढ़ ।
ज़रा सोचिए प्रकृति क्यों, करती ये खिलवाड़ ।
भारी वर्षा तो कहीं, भीषण है तूफान ।
अरबों की सम्पत्ति को, पहुंचाये नुकसान ।।
जलाभाव से मच रहा, चहुं दिशि हाहाकार ।
लगातार घटने लगा, भू का जल भंडार ।।
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