सोमवार, 23 जुलाई 2007

लघुकथा

लघुकथा
आत्मव्यथा
दिलीप भाटिया
मैं एक नन्हा पौधा हँू । पर्यावरण दिवस पर एक बहुत बड़े साहब ने मुझे लगाया था । उनके नाम की तख्ती भी लगी हुई है । फोटो भी खिंचे थे । अगले दिन समाचार पत्र में साहब के साथ मेरी भी फोटो प्रकाशति हुई थी पर अब मैं सूख रहा हँू । उस दिन के बाद मुझे किसी ने पानी के लिए भी नहीं पूछा। मैं मुरझा रहा हँू, सूख रहा हँू, मेरी सुध लेने वाला कोई नहीं । कुछ दिनों में सम्पूर्णतया नष्ट हो जाऊँगा । अगले वर्ष मेरे जैसे किसी और पौधे के साथ भी यही होगा । फिर किसी और पौधे के साथ । यह सिलसिला चलता रहेगा । पर्यावरण प्रदूषण बढ़ता रहेगा । फोटो खिंचती रहेंगी । मैं एवं मेरे भाई इन उद्घाटन एवं जलसों के लिए अपना बलिदान देते रहेंगे । शहीद होते रहेंगे ।

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