मंगलवार, 24 जुलाई 2007

आवरण



दिल्ली के पेड़ों की व्यथा-कथा
श्री रेशमा भारती
हम दिल्ली के पेड़ मूक, बेजुबान जीव आज आपसे कुछ कहना चाहते हैं। क्या आप हमें सुन सकते हैं ? क्या आपने कभी हवा के झौंको से होती हमारे पत्तों की सरसराहट, हमपर बैठे तरह-तरह के पक्षियों की चहचहाहट, हमपर फुदकती गिलहरियों की चिक-पिक या हम पर गिरती बारिश की बूंदों की टपटपाहट को सुना है ? क्या आपने कभी पानी को छूकर हमारी मिट्टी से उठती सौंधी महक, हमपर लदे फल-फूलों की खुशबू को महसूस किया है ? क्या आप हमारी धड़कती सांसों को महसूस कर सकते हैं? और कुछ नहीं तो हमारे तने को छूकर देखिए .... हमारे अस्तित्व का अहसास हैं यहाँ । पर शायद आप ज्यादा जरूरी कामों में व्यस्त हैं । अपने-अपने जीवन-संघर्षो में उलझे हैं । तरक्की का दौर है । रूकने, सोचने या महसूस करने का समय ही कहाँ है ? पर हमें मनुष्य का ख्याल बराबर रहता है । जिस भगवान ने मनुष्य को रचा है, उसी ने पेड़ों को भी रचा है। इसलिए हम तो आपको अपना भाई-बहन और मित्र समझते हैं । आपके सुख की हम कामना करते है । आपको सुख पहुँचाने का प्रयास करते हैं। आपके दुख का अहसास भी है और आपके भविष्य की चिंता भी हम करते हैं । चूंकि मनुष्य हमारा बंधु है, मित्र ह़ै; इसलिए हम उसके हितैषी हैं । अपने हित की बात तो सुनेंगे न आप ? सड़कों पर दौड़ते तरह-तरह के वाहनों को हम रोजाना देखते हैं । उनसे होते प्रदूषण को झेलते भी हैं । चमचमाती मेट्रो गाड़ी भी हमने देखी है । ये सब आपकी सुविधाएँ है, आपका आराम हैं । हमें भी आपके आराम का ख्याल है । अपनी छाया और हरियाली से हम भी आपको सुकून पहुंॅचाना चाहते हैं । हम आपके मित्र जो हैं । क्या आप जानते हैं कि दिल्ली मेट्रो रेल प्रोजेक्ट के पहले चरण के लिए कई हजार पेड़ों को मौत के घाट उतारा जा चुका है । क्या आपको पता है कि हाई कैपेसिटी बस सर्विस (एच.सी.बी.एस.) कॉरिडोर के पहले चरण के लिए दो हजार से भी अधिक पेड़ काटे जाने की योजना है । इन परियोजनाआे के आगे और भी चरण है, यह कल्पना ही हममें सिहरन पैदा कर रही हैं । क्या आप जानते हैं कि कुल मिलाकर मेट्रो रेल प्रोजेक्ट के प्रथम चरण, राष्ट्रीय राजमार्ग प्रोजेक्ट, एच.सी.बी.एस कॉरिडोर, फ्लाई ओवर, सब वे, भूमिगत पैदल पथ अथवा सामान्यत: सड़क चौड़ी करने के लिए दिल्ली में लगभग तीस हजार पेड़ों को मौत के घाट उतारा जा चुका है और हजारों अन्य काटे जाने के लिए चिह्न्त किए जा चुके हैं ! यह कैसी इंसानियत है दोस्त ! यह कैसी सुविधा, कैसी तरक्की है आपकी; जो हमारी मौत पर फल रही है! हमें यह समझ नहीं आता कि एक ओर आप सार्वजनिक वाहनों के रास्ते निकालने के नाम पर हमारी बलि तक देने को तैयार हो जाते हैं; दूसरी ओर आपकी सड़कों पर निजी वाहन निरन्तर बढ़ते जाते है ! हम नहीं जान पाते कि प्राकृतिक संतुलन बनाए रखने वाले हम हरे भरे जीवंत पेड़; कैसे सड़कों पर दौड़ते लोहे के डिब्बों से कम महत्वपूर्ण हो जाते हैं ? कैसे आपको हमारा सौन्दर्य नहीं दिखता; निर्जीव लोहे के चमचमाते डिब्बे आकर्षक लगते हैं ! आपकी सड़कों पर ग्रीन हाऊस गैसे छोड़ते मोटर वाहन बढ़ते जाते हैं कि पैदल चलने वाले, रिक्शे और साईकिल वाले उपेक्षित व सहमे नजर आते हैं । हम समझ नहीं पाते कि आप बढ़ते प्रदूषण, बढ़ते ट्रैफिक, बढ़ते तापमान का सामना आखिर किस प्रकार करेंगे ? हमें आपकी चिंता होती है ! हम आपके मित्र हैं । पर आप जाने-अनजाने हमारे जीवन को कैसे उपेक्षित कर देते हैं ? हम रोज-रोज कई कष्ट झेलते हैं । आपके कंक्रीट-सीमेंट के मार्ग और सड़कें हमारे ऊपर तक चली आती हैं और हमारे आधार जड़ों तक को ढक देती हैं । हमारे ईद-गिर्द मिट्टी ही नहीं बचती कि हम सांस ले पाएं । हम पानी तक ठीक से नहीं पी पाते ! ईद-गिर्द जगह ही नहीं छूटती कि पानी अंदर रिसे । अरे, यह पानी सोखकर हम आप लोगों के लिए ही तो धरती माँ की कोख में पहुँचाते हैं । हम जानते हैं कि यह शहर जल की कमी झेलता है । हम नहीं समझ पाते कि भूमिगत जल को बढ़ा्न्ने में आप हमें अपनी मदद क्यों नहीं करने देते ? सीमेंट-कंक्रीट से ढक जाने पर हमारा सांस घुटती है ! जब कभी हमारी जड़ों के पास आप कूड़ा फैंक देते हैं; तब हमें बहुत कष्ट पहुँचता है । कूड़े में मौजूद खतरनाक रसायन हमें दर्द पहुँचाते हैं ! कूड़ा सड़ता जाता हैं और हम सूखते जाते हैं ! कुछ लोग हमारे तने को पेंट कर देते हैं । पता नहीं कृत्रिम रंगों को हमपर पोतकर उन्हें कैसासौन्दर्य नज़र आता है? इस पेंट से हमारी त्वचा हर पल जलती है! आपका शहर तारों के जाल से घिरा है । कई तारें हमसे होकर गुजरती हैं । उनके करंट से हमारी टहनियां दर्द से सिहर उठती हैं ! जब आपके यहां कोई शादी- ब्याह होता है या कोई उत्सव तो आपकी खुशी में हम भी खुश हो लेते हैं । आप यदि मधुर संगीत बजाए तो उसमें हमारी टहनियां भी नाच उठती हैं, हमारे पत्ते भी थिरकने लगते हैं । पर जब कभी इन अवसरों पर आप हमपर ढेरों बल्ब लाद देते हैं; तो उनके करंट और गर्मी से हम झुलस जाते हैं ! कुछ लोग हम पर कुछ न कुछ ठोंकते भी रहते हैं । जब कील हमें चुभती हैं तो हम दर्द से कराहते है ! आपको शायद हमारी ये दर्द भरी आहें सुनायी न देती हों । आपकी नजर में तो हम बेजुबान है न ! अपने बच्चें की तो चिंता करते हैं न आप ? सच, चहकते हुए स्वस्थ बच्च्े कितने प्यारे लगते हैं । हम भी उनकी चिंता करते हैं, उनके भविष्य का ख्याल करते हैं । उनके लिए हम ऑक्सीजन, पानी, फल-फूल, हरियाली, औषधियां सब जुटाते हैं । हम वह जीती-जागती प्राकृतिक विरासत है, जिन्हें आपको नई पीढ़ी को सौंपना है । हमें मार देंगे, तो अपने बच्चें के लिए क्या छोड़कर जाएंगे आप ? हममें से कई बुजुर्ग पेड़ों ने कई वर्षो से आपके समाजों को बनते-बिगड़ते देखा है । कई सत्ताएं पलटती देखी हैं । आपके अतीत के साक्षी रहे हैं हम । वर्षो से आपकी सेवा करते आए हैं । अपनी इस ऐतिहासिक विरासत को कैसे भुला सकते हैं आप ? क्या आप जानते हैं कि एच.सी.बी.एस कॉरिडोर के लिए काटे जाने वाले कुछ पेड़ ७० साल से भी अधिक पुराने हैं ? क्या आपका समाज बुजुर्गो को यँू मरने देगा ? गर्मी, प्रदूषण, ट्रैफिक और शोर- शराबे से भरे इस शहर में जहाँ-जहाँ बहुत-से घने पेड़ हैं; वहाँ-वहाँ आप ठंडक, शांति, सुकून, पा सकते हैंं। पार्को में भी तो स्वास्थ्य लाभ करने जाते हैं न आप । वहां आपको ताजी ऑक्सीजन देने के लिए हम मौजूद रहते हैं । पर कई पार्को में भी हमारी उपेक्षा हो रही है, हमें मारा जा रहा है ! आपका शहर बहुत से गरीब-बेसहारा लोगों को छत नहीं देता, भरपेट भोजन नहीं देता, खड़े होने की ठीक जगह नहीं देता । उन्हें भी हम अपनी छाया तले आश्रय देते हैं । खाने को फल भी देते हैं। हमारी जिंदगी को महसूस किया आपने ? यह जिंदगी केवलहमारी नहीं है। प्रकृति के कई अवयवों का समावेश है इसमें । मिट्टी, पानी, हवा, धूप ने हमें वर्षोंा तक सींचा है । धरती माँ ने अपनी कोख में हमारी जड़ों को समेटा है । धीरे-धीरे हमारी टहनियां पनपी हैं । अंकुर फूटे हैं, नन्हीं कोपलें पनपी हैं । धीरे-धीरे हर पत्ता बड़ा हुआ है । फिर सूखकर, झरा भी है। पत्तों का यह आना-जाना लगा रहता है । उम्र के बोझ से दबे कई बुजुर्ग पेड़ों को धरती की कोख से बाहर आकर उनकी जड़ों ने सहारा दिया है; ठीक वैसे ही जैसे बुढ़ापे में कई मनुष्य भी अपनी जड़ों-बचपन की ओर लौटते हैं । इस पूरे जीवन चक्र, इस समूची प्रकृति जिसमें हम पले-बढ़े हैं... इसको भला आप हमसे कैसे छीन सकते हैं ? क्या आप मिट्टी, हवा, धूप, पानी, हरियाली सब कुछ खत्म कर देंगे...! जरा सोचिए, इसके बाद आप खुद कैसे जिएंगे? हमारे नहीं तो अपने अस्तित्व की खातिर ही सोचिए । अपने नहीं तो अपने बच्चें के भविष्य की खातिर ही सोचिए । जब हवा, पानी मिट्टी में जहर मिलें हो; जब पेड़ पर्याप्त् न बचे हों, जब धूप भी शरीर को झुलसा देने वाली हो ... जब पक्षी नहीं चहकते हों, जब फूल नहीं महकते हों ... तो सोचिए यह जिंदगी भला कैसी जिन्दगी है ! यह तो जिंदगी का अंत और मौत की आहट हैं ! जनता के प्रतिनिधि शहर को बहुत हरा-भरा बनाने का दावा करते हैं । `क्लीन सिटी और ग्रीन सिटी' के दावे कई जगह लिखे देखे हैं हमने । हम समझ नहीं पाते कि हजारों की तादाद में हम हरे-भरे पेड़ों को काटकर आप कैसी `ग्रीन सिटी' बनाएंगे ? जनता के प्रतिनिधि शहर को सजाने, संुदर बनाने को प्रतिबद्ध हैं । सड़कों-फ्लाइओवरों के किनारे और चंद पार्कों के समतल-मुलायम घास लगायी जाती है, तरह-तरह के फूल लगाए जाते हैं । विदेशी पौधे लगाए जाते हैं । बोनसाई पौधे सजाए जाते हैं । इनकी देखरेख का समूचा प्रबंध होता है । लोग अपने घरों में गमलों में कई पौधे सजाते हैं । ऐसा लगता हैं यह शहर `नेचर लवर' है, पौधों से प्यार करता है पर बरसों से प्रकृति जिन्हें सहज रूप से पालती-पोसती आयी है, उन मित्र पेड़ों में क्या सहज सौन्दर्य नहीं दिखता ? हमारे सौन्दर्य में प्रकृति का सहज अहसास है । इसमें कृत्रिमता नहीं है, दिखावट नहीं है । सहज ताजगी है । सरकार दावा करती है कि अगर एक पेड़ काटा जाएगा तो उसके स्थान पर दस पौधे लगाए जाएंगे । अजीब दावा है यह ! बच्चें के आगमन का तो सब स्वागत करते हैं । पर क्या बच्चें के आने के साथ ही बड़ों को मार डाला जाता है? क्या आपके समाज में एक बड़े व्यक्ति की हत्या को यह कहकर जायज ठहरा दिया जाता है कि दस नए बच्चें भी तो जन्म ले रहे हैं । बच्चें तो धीरे-धीरे ही बड़े होंगे न । तब तक आपकी धरती न जाने कितना प्राकृतिक विनाश झेल चुकी होगी ! इतने समय तक पर्याप्त् ऑक्सीजन, पानी, हरियाली - यह सब कहां से लाएंगे आप ? सच, आपके भविष्य का सोचकर दुख होता है हमें ! कुछ सजग-संवेदनशील लोग हमें बचाने की दौड़-धूप करते रहे हैं । हमें उनसे उम्मीद है । हमें तो, सच मानिए, आप सभी से उम्मीद है । उम्मीद के बल पर ही तो मित्रता टिकी है । आशा और उम्मीद पर ही तो रिश्ते फलते हैं। मरते दम तक हम यह उम्मीद रखेंगे कि आप हमें बचा लें । हम आपके मित्र हैं, आपके बंधु हैं, आपके जीवन का अहम आधार हैं, आपके बच्चेंका भविष्य हैं । क्या आपको हमारी दर्द भरी आहें, हमारी चीखें, हम पर दिन-रात मंडराती मौत की आहटें सुनायी दे रही हैं? क्या आप हमें बचाएंगे ? आप हमारे मित्र हैं। जिस भगवान ने हमें रचा है, उसी ने आपको भी रचा है । आप हमारे अपने हैं । हम तो अपकी अंतिम सांस तक आपकी सलामती की दुआएं मांगते रहेंगे ।


आपके व्यथित मित्र
पेड़

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