सोमवार, 23 जुलाई 2007

३ जीवन शैली

पारंपरिक खाद्य तेल और सेहत
विभा वार्ष्णेय/सौरव मिश्रा
यंत्रीकृत खाद्य तेल उद्योग घी, मक्खन और सरसों के तेल जैसे पारंपरिक खाद्य तेलों पर श्रेष्ठता दर्शाने के लिए विभिन्न तकनीकी शब्दावलियों का इस्तेमाल किया जाता है । जैसे - सेचुरेटेड फैट्स (संतृप्त् वसीय अम्ल), अनसेचुरेटेड फैट्स (असंतृप्त् वसीय अम्ल), ट्रांसफेटी ऐस्डि्स आदि । हमें यह बताया जाता है कि वनस्पति तेल कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम कर दिल की सुरक्षा करते हैं लेकिन वैज्ञानिक सर्वसम्मति से इस निष्कर्ष पर पहुँच रहे हैं कि ये दावे अत्यंत ही भ्रामक हैं । उनकी राय है कि भोजन में केवल पौष्टिक तेलों का उपयोग किया जाना चाहिए । खाद्य तेल मुख्यत: तीन प्रकार के वसीय अम्लों से निर्मित होते हैं - सेचुरेटेड फैटी एसिड्स (एसएफए), मोनोअनसेचुरेटेड फैटी एसिड्स (एमयूएफए) और पॉलीअनसेचुरेटेड फैटी एसिड्स । इन वसाआं और तेलों की यह विशेषता श्रृंखलाबद्ब अनिश्चित कार्बन परमाणुआ के बीच बनने वाले बंध के कारण होती हैं। सेचुरेटेड फैटी एसिड्स में निकटतम कार्बन परमाणुआ के बीच एकल बंध होता है । एमयूएफए में एकल दोहरा बंध होता है । जबकि पीयूएफए के कार्बन परमाणुआ के बीच एकल बंध होता है । कुछ अम्लीय श्रृंखलाआं जैसे पार्निटिक अम्ल एलडीएल (एक प्रकार का हानिकारक कोलेस्ट्रॉल) के स्तर को बढ़ाता है । ओमेगा ३ और ओमेगा ६ जैसे अम्ल ह्रदय के लिए अच्छे और प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने वाले होते हैं । पारंपरिक भारतीय खाद्य तेल जैसे सरसों और नारियल के तेल में यह गुण भरपूर है । खाद्य तेल उद्योग द्वारा किए जा रहे आक्रामक विज्ञापन के कारण पारंपरिक तेलों का भविष्य खतरे में हैं । १९७० के आरंभ में एसएफए से भरपूर पाम ऑइल को पारंपरिक तेलों के सस्ते विकल्प के रूप में प्रोत्साहित किया गया था और फिर ८० के दशक में असंतृप्त् वसा युक्त कुछ तेलों के प्रति उद्योगों का रूझान बढ़ा । इस बात का जबरदस्त प्रचार किया गया कि केनोला तेल ह्रदय के लिए लाभदायक है इसके पक्ष में यह दलील दी गई कि यह तेल जैतून केतेल के समान है । इन दोनों में एमयूएफए अत्यधिक मात्रा में होता है । जैतून तेल में ह्रदय के लिए मौजूद स्वास्थ्यवर्धक गुणों की जानकारी रखने वाले लोगों को इस पक्ष ने काफी आकर्षित किया । इसके बाद पीयूएफए से भरपूर सूरजमुखी और सोयाबीन तेलों को ह्रदय के लिए सेहतमंद बताया गया । लेकिन वैज्ञानिक समुदाय इन तर्कोंा की तह तक पहुँच चुका है । उदाहरण के लिए, अमेरिकन जर्नल ऑफ न्यूट्रिशियन के १९९७ के अंक में प्रकाशित लेख में, अमेरिकी शोधकर्ता हेनड्रिक, व्हाइट और कुक ने यह दर्शाया कि सोयाबीन तेल का सेवन मानव शरीर के अच्छे कोलेस्ट्राल के उच्च् घनत्व वाले लिपोप्रोटिन (एचडीएल) स्तर को घटता है । यह भी प्रतिपादित किया गया कि सोयाबीन तेल में मौजूद कार्बन गंध पीयूएफए युक्त तेलों को सेचुरेटेड तेलों की तुलना में अधिक क्रियाशील बनाती है । अत: ये वसा ऊतकों में जमा होकर उनके कार्यो को बाधित कर सकती है । केनोला जैसे एमयूएफए युक्त अपारंपरिक तेलों के पक्षकारों के लिए भी यह एक बुरी खबर थी । वर्ष १९९१ में अमेरिका स्थित बॉस्टन युनिवर्सिटी ऑफ पब्लिक हेल्थ के शोधकर्ताआें ने यह प्रमाणित किया कि इस तेल का अत्यधिक उपयोग दिल की बीमारी का कारण है । संसाधित भोज्य पदार्थो में इन नए असंतृप्त् वसा युक्त तेलों का उपयोग इसके दुष्पभावों को कई गुना बढ़ता है । वास्तव में इन तेलों का उपयोग संसाधित भोजन निर्माण के लिए अनुकूल नहीं है । लेकिन अधिकांश असंतृप्त् वसा युक्त तेलों के संतृप्त् वसा युक्त तेलों से कई गुना सस्ते होने के कारण संसाधित खाद्य उद्योग के बजट में आसानी से समा जाते हैं। लेकिन वास्तव में असंतृप्त् वसा युक्त तेलों को हाइड्रोजिनेशन प्रक्रिया के द्वारा खाने योग्य बनाया जाता है । इस प्रक्रिया में हाईड्रोजन के द्वारा असंतृप्त् वसा के दोहरे कार्बन बंध को तोड़ दिया जाता है । इससे रासायनिक युक्त ट्रांसफेटी एस्डि्स बनते हैं जिनके कई दुष्प्रभाव हैं । वे मानव शरीर के प्रतिरोधक प्रणाली को बाधित करते हैं,ऊर्जा चयापचय को कम करते हैं और इंसुलियन के स्तर में वृद्धि करते हैं । ये ट्रांसफैट्स उच्च् घनत्व वाले कोलेस्ट्रॉल के स्तर में भी बढ़ोतरी करते हैं । सामान्यत एमयूएफए एचडीएल के निम्न स्तर को बढ़ाते हैं लेकिन हाइड्रोजिनेशन से एमयूएफए युक्त तेलों का यह गुण नष्ट हो जाता है। निष्कर्षण तकनीकों से भी खाद्य तेलों की गुणवत्ता प्रभावित होती हैं । आमतौर पर खाद्य उद्योग द्वारा बीजों में से तेल निकालने के लिए हेक्सजेन जैसे सॉलवेंट्स का इस्तेमाल किया जाता है । यह तकनीक सस्ती है, उत्पादकता और संग्रहित करके रखे जा सकते की अवधि को बढ़ाती है और उसमें से सभी प्रकार की गंध और स्वाद को भी खत्म कर देती है लेकिन तेल को उबालकर सॉल्वेंट को निष्कासित करना आवश्यक हैं । इससे सभी पौष्टिक तत्व भी नष्ट हो जाते हैं । इसके विपरीत पारंपरिक तेल पीसकर निकाले जाते हैं । ऐसे तेलों में खूशबु और पौष्टिकता बनी रहती है । तेल निकालने की विधियों और उनके घटकों से खाद्य तेलों की गुणवत्ता प्रभावित होती है इस बारे में जागरूकता विकसित देशों में तेजी से बढ़ रही है । मसलन, अमेरिकी नागरिकों के लिए जारी भोजन संबंधी नवीनतम दिशानिर्देशों के अनुसार ट्रांसफैटी एसिड्स देशों में इस विषय में जागरूकता अधिक नहीं है । भारत में आहार शारीरिक गतिविधियों और स्वास्थ्य संबंधी विश्व स्वास्थ्य संगठन की भू-मण्डलीय नीति पर विमर्श हेतु २६ अप्रैल ०६ को नई दिल्ली मं संपन्न सम्मेलन में सरकार को स्वास्थ्य संगठन की भोजन, शारीरिक गतिविधि और स्वास्थ्य पर अंतर्राष्ट्रीय नीति पर संपन्न सम्मेलन में सरकार को स्वास्थ्यकर खाद्य तेलों के प्रति जागरूकता पैदा करने और उन्हें अधिक किफायती बनाने की सलाह दी गई थी । क्या सरकार इसके लिए तैयार है ?

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