सोमवार, 23 जुलाई 2007

२ तेल प्रदूषण

तेल प्रदूषण पेट्रोलियम का उपयोग वरदान या अभिशाप ?
डॉ. वाई.पी.गुप्त
यह बात आजकल बहुत गंभीरता से विचारणीय है कि जिस पेट्रोलियम को अधुनिक सभ्यता का अग्रदूत कहा जाता है, वह वरदान है अथवा अभिशाप है, क्योंकि इसके उपयोग से भारी प्रदूषण हो रहा है जिससे इस धरती पर जीवन चुनौतीपूर्ण हो गया । आज पेट्रोलियम और औद्योगिक कचरा समुद्रों का प्रदूषण बढ़ा रहा है, तेल के रिसाव-फैलाव नई मुसीबतें हैं । इस तेल फैलाव और तेल टैंक टूटने ने समुद्री इकोसिस्टम्स को बुरी तरह हानि पहुंचाई हैं । इससे सागर तटों पर सुविधाआें को क्षतिग्रस्त किया है और पानी की गुणवत्ता को प्रभावित किया हैं। वर्ष में शायद ही कोई ऐसा सप्तह निकलता हो, जब विश्व के किसी न किसी भाग से २००० मीट्रिक टन से अधिक तेल समुद्र में फैलने की घटना का समाचार न आता हो । ऐसा दुर्घटना के कारण भी होता है या बड़े टैंकरों को धोने से अथवा बंदरगाहों पर तेल को भरते समय भी होता रहता हे । भारत सरकार ने हाल में भारतीय समुद्र क्षेत्र में व्यापार परिवहन में लगे जहाजों पर गहरी चिंता जताई है, जो देश के तटीय जल में तेल का कचरा फैलाते हैं, अन्य तरह का प्रदूषण फैलाते हैं, पर्यावरण की क्षति करते हैं और जीवन तथा सम्पत्ति दोनों को खतरे में डालते हैं। राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान की रिपोर्ट के अनुसार भारत के केरल के तटीय क्षेत्रों में प्रदूषण के कारण झींगा, चिंगट और मछली उत्पादन २५ प्रतिशत घट गया है । सर्वोच्च् न्यायालय ने पहले आदेश दिया था कि प्रदूषण फैलाने वाले जल कृषि (एक्वाकल्चर) फार्म्स को तटीय राज्यों में बंद कर देना चाहिए, क्योंकि ये पर्यावरण संदूषण के साथ भूमि क्षरण भी करते हैं । अदालत ने यह भी आदेश दिया था कि पूरे देश में तटीय क्षेत्रों से ५०० मीटर तक कोई भी निर्माण न किया जाए, क्योंकि औद्योगिकरण और शहरीकरण ने इन क्षेत्रों के पारिस्थिकीय संतुलन को खतरे में डाल दिया है । हाल ही में लगभग १९०० टन तेल के फैलाव से डेनमार्क के बाल्टिक तट पर प्रदूषण की चुनौती उपस्थित हुई थी । इक्वाडोर के गैलापेगोस द्वीपसमूह के पास समुद्र के पानी में लगभग ६,५५,००० लीटर डीज़ल और भारी तेल के रिसाव ने वहां की भूमि, दुर्लभ समुद्री जीवों और पक्षियों को जोखिम में डाल दिया । भूकम्प के बाद गुजरात में कांडला बंदरगाह पर भंडारण टैंक से लगभग २००० मीट्रिक टन हानिकारक रसायन एकोनाइट्रिल (एसीएन) रिस जाने से उस क्षेत्र के आसपास के निवासियों का जीवन जोखिम से घिर गया है । इससे पहले कांडला बंदरगाह पर समुद्र में फैलेलगभग तीन लाख लीटर तेल से जामनगर तट रेखा से परे कच्छ की खाड़ी के उथले पानी में समुद्री नेशनल पार्क (जामनगर) के नज़दीक अनेक समुद्री जीव जोखिम में आ गए थे । टोकियो के पश्चिम में ३१७ कि.मी. दूरी पर तेल फैलाव ने जापान के तटवर्ती शहरों को हानि पहुंचाई थी । बेलाय नदी के किनारे डले एक तेल पाइप से लगभग १५० मीट्रिक टन तेल फैलाव ने भी रूस में यूराल पर्वत में दऱ्जनों गांवों के पीने के पानी को संदूषित किया है । एक आमोद-प्रमोद जहाज़ के सैनज़ुआन (पोर्टोरीको) की कोरल रीफ में घुस जाने के कारण अटलांटिक तट पर रिसे २८.५ लाख लीटर तेल से रिसोर्ट बीच संदूषित हुआ । बम्बई हाई से लगभग १६०० मीट्रिक टन तेल फैलाव (जो शहरी तेल पाइप लाइन खराब होने से हुआ था) ने मछलियों, पक्षी जीवन और जनजीवन की गुणवत्ता को हानि पहुंचाई । ठीक इसी प्रकार बंगाल की खाड़ी में क्षतिग्रस्त तेल टेंकर से रिसे तेल ने निकोबार द्वीप समूह और अन्य क्षेत्रों में मानव और समुद्री जीवन को नुकसान पहुंचाया । लाइबेरिया आधारित एक टेंकर से रिसे ८५,००० मीट्रिक टन कच्च् तेल ने स्कॉटलैण्ड को गंभीर रूप से प्रदूषित किया और द्वीप समूह के पक्षी जीवन को घातक हानि पहुंचाई। सबसे बुरा तेल फैलाव यू.एस.ए. के अलास्का में प्रिंसबिलियम साउण्ड में एक्सन वाल्डेज टेंकर से हुआ था । अनुमान है कि एक्सन वाल्डेज तेल फैलाव के बाद प्रथम ६ महीनों की अवधि में ३५,००० पक्षी, १०,००० औटर और १५ व्हेल मर गई थीं । मगर यह इराक द्वारा खाड़ी युद्ध में पम्प किए गए तेल और अमरीका द्वारा तेल टेंकरों पर की गई बमबारी से फैले तेल की मात्रा के सामने बौना है । एक आकलन के अनुसार ११० लाख बैरल कच्च तेल फारस की खाड़ी में प्रवेश कर गया है और कई पक्षी किस्में विलुप्त् हो गई हैं । प्रदूषणसे मानव पर भी प्रभाव पड़ता है । विश्व में ६३ करोड़ से अधिक वाहनों में पेट्रोलियम का उपयोग प्रदूषण का मुख्य कारण है । विकसित देशों में प्रदूषण रोकने के नियम होने के बावजूद १५० लाख टन कार्बन मोनोऑक्साइड, १० लाख टन नाइट्रोजन ऑक्साइड और १५ लाख टन हाइड्रोकार्बन्स प्रति वर्ष वायुमंडल में बढ़ जाते हैं । जीवाश्म इंर्धन के जलने से वायुमंडल प्रति वर्ष करोड़ों टन कार्बन डाइऑक्साइड आती है । विकसित देश वायुमंडल प्रदूषण के लिए ७० प्रतिशत ज़िम्मेदार हैं । भारत प्रति वर्ष कुछ लाख टन सल्फर डाइड्रोकार्बन्स, कार्बन मोनोऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड और हाइड्रोकार्बन्स वायुमंडल में पहुंचाता है । इन प्रदूषकों से अनेक बीमारियां, जैसे फेफड़े का कैंसर, दमा, ब्रोंकाइटिस, टी.बी. आदि हो जाती हैं । वायुमंडल में विषैले रसायनों के कारण कैंसर के ८० प्रतिशत मामले होते हैं । मुम्बई में अनेक लोग इन बीमारियों से पीड़ित हैं । दिल्ली में फेफड़ों के मरीज़ों की संख्या देश में सर्वाधिक है । इसकी ३० प्रतिशत आबादी इसका शिकार है । दिल्ली में सांस और गले की बीमारियां १२ गुना अधिक हैं । इराक के विरूद्ब २००३ के युद्ध ने इराक और उसके आसपास के क्षेत्र को बुरी तरह विषैला कर दिया है जिससे पानी, हवा और मिट्टी बहुत प्रदूषित हुए और लोगों का जीवन खतरे में पड़ गया । इससे पहले १९९१ के खाड़ी युद्ध ने संसार में पर्यावरण संतुलन को विनाश में धकेल दिया। वहां जो मानव और पर्यावरण की हानि हुई, वह संसार में हुए हिरोशिमा, भोपाल और चेरनोबिल से मिलकर हुई बरबादी से कम नहीं है । कुवैत के तेल कुआं, पेट्रोल रिफाइनरी के जलने तथा तेल के फैलने से कुवैत के आसपास का विशाल क्षेत्र धूल, गैसों और अन्य विषैले पदार्थो से प्रदूषित हुआ है । इराक ज़हरीला रेगिस्तान बन गया है, जहां एक बड़े क्षेत्र में महामारी फैली है । पेट्रोलियम अपशिष्ट ने समुद्री खाद्य पदार्थो को भी बुरी तरह प्रभावित किया है। प्रदूषित पानी से ओस्टर (शेल फिश) कैंसरकारी हो जाती है । समुद्री खाद्य पदार्थो का मनुष्य द्वारा उपयोग करने पर उनमें होठों, ठोड़ी, गालों, उंगलियों के सिरों में सुन्नता, सुस्ती, चक्कर आना, बोलने में असंगति और जठर आंत्रीय विकार होने लगते हैं । विश्व के सामने अपने वायुमंडल को बचाने की कड़ी चुनौती खड़ी है । सबक है कि पेट्रोलियम की भयंकर तबाही के परिणामों के मद्दे नज़र कम विकसित देशों को अपनी औद्योगिक प्रगति के लिए अन्य सुरक्षित ऊर्जा स्त्रोत विकसित करने चाहिए ।

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