पिघलती बर्फ, एक ज्वलंत विषय
जलवायु परिवर्तन को गंभीर प्रश्न बताते हुए संयुक्त राष्ट्र ने कहा है कि प्राकृतिक बर्फ और ग्लेशियरों के पिघलने से करोड़ों लोगो पर असर पड़ेगा । इसी को ध्यान में रखते हुए वर्ष २००७ के लिए विश्व पर्यावरण दिवस पर नारा दिया गया है । पिघलती बर्फ, एक ज्वलंत विषय इस वर्ष विश्व पर्यावरण दिवस पर सबसे ज्यादा ध्यान ध्रुवीय पारितंत्र में हो रहे बदलाव और इसके लोगों पर पड़ने वाले असर पर दुनियाभर के ७० पर्यावरणविदों और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) की मदद से एक विशेष रिपोर्ट जारी की है जिसमें कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण पेयजल और सिंचाई के लिए उपलब्ध होने वाले पानी पर भी बुरा असर पड़ेगा जिससे संकट और बढ़ेगा । यह भी कहा गया है कि तेजी से पिघलती बर्फ उन क्षेत्रों और द्वीपों के लिए खासतौर पर चिंता का विषय है जो कि निचले स्तर पर स्थित हैं क्योंकि बर्फ के पिघलने के साथ ही समुद्र स्तर में बढ़ोत्तरी भी होती जाएगी । रिपोर्ट के मुताबिक केवल एशियाई पर्वतों पर जमी बर्फ और ग्लेशियरों के पिघलने से दुनियाभर की ४० प्रतिशत आबादी प्रभावित होगी । नई दिल्ली में पर्यावरण एवं वन मंत्रालय द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार नदियों में जल के प्रमुख स्त्रोत हिमालय के ग्लेशियरों में बड़ी दरारें पड़ने लगी है। भारतीय भूगर्भ सर्वेक्षण द्वारा तैयार की गई इस रिपोर्ट के मुताबिक हालांकि हिमालय के ग्लेशियरों की सघनता और उसके क्षेत्रफल दोनों में गिरावट आई है लेकिन इससे यह अनुमान लगाना गलत होगा कि आने वाले दिनों में हिमालय से निकलने वाली नदियों में जलापूर्ति कम हो जाएगी। रिपोर्ट के मुताबिक जलवायु परिवर्तन के प्रति बेहद संवेदनशील हिमालय के ये ग्लेशियर एक प्राकृतिक चक्र के तहत पिघलते रहते हैं । ताजा अध्ययनों से पता चला है कि तकरीबन एक सदी से इन ग्लेशियरों में यह प्रवृत्ति देखी जा रही है । जलवायु परिवर्तन के कारण अगले ५० सालों मे हिमालय के ग्लेशियरों का अस्तित्व समाप्त् हो जाएगा, जिससे इस क्षेत्र में रह रहे करोड़ों लोग प्रभावित होंगे । इंटरनेशनल सेंटर फार इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट (आईसीआईमलओडी) द्वारा जलवायु परिवर्तन पर बुलाए गए सम्मेलन में विशेषज्ञों ने यह चेतावनी दी्र। विशेषज्ञों के अनुसार पिछले १०० सालों से पृथ्वी का तापमान ०.७४ डिग्री सेल्सियस के औसत से बढ़ा है ।`ग्लोबल वार्मिंग' ने हिमालय का तापमान पिछले ३० सालों में ०.६ डिग्री सेल्सियस बढ़ा दिया है । एशिया की ९ बड़ी नदियों के जल का स्त्रोत हिमालय के हजारों ग्लेशियर हैं । इन नदियों के बेसिन में पाकिस्तान, म्यांमार, भारत और चीन के १०.३ करोड़ लोग निवास करते हैं । आईसीआईएमओडी के महानिदेशक एड्रियाज शील्ड ने कहा कि ग्लेशियरों के गायब हो जाने का मतलब है पर्वतों की प्राकृतिक जल भंडारण क्षमता में कमी । श्री शील्ड ने कहा कि इसका मतलब जल का प्रवाह बाधित होगा । ग्लेशियरों के पिघलने से जैव विविधता, हाइड्रो विद्युत, उद्योग और कृषि पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा और यह क्षेत्र में रहने वाले के लिए खतरनाक होगा । बर्फ पिघलने से ग्लेशियरों के किनारे झील का निर्माण होगा । जोकि तापमान बढ़ने से अपने किनारों को तोड़कर तबाही बचा सकती है ।
नशे से करोड़ों लोग तबाही की ओर
मादक पदार्थो के सेवन को रोकने के अंतरराष्ट्रीय प्रयासों से इनके उत्पादन में कमी जरूर आई है, पर २२ करोड़ से भी ज्यादा लोग अब भी इनकी लत से तबाही की राह पर है । नशीले पदार्थ एवं अपराध पर संयुक्त राष्ट्र की २००७ की रिपोर्ट के अनुसार पिछले दशक तक मादक पदार्थो का अड्डा माने जाने वाले दक्षिण एशिया में यह समस्या कम हो रही है । अब योरपीय देशों में इसका प्रभाव बढ़ गया है । मादक पदार्थो के सेवन, इनका अवैध उत्पादन, तस्करी और अंडरवर्ल्ड एवं आतंकवादियों के फलने-फूलने की उत्तरोत्तर गंभीर होती समस्या के मद्देनजर संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष १९९८ में इस विषय पर विशेष सत्र आयोजित किया था। जिसमें वर्ष २००८ तक नशीले पदार्थो की माँग एवं आपूर्ति में भारी कमी लाने का लक्ष्य निर्धारित किया था । वर्ष २००७ में मादक पदार्थो का दुरूपयोग रोकने, वर्ष २००८ में इनकी खेती और उत्पादन तथा वर्ष २००९ में इनके अवैध व्यापार को नियंत्रित करने पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा । रिपोर्ट के अनुसार दुनियाभर में करीब २२ करोड़ ६० लाख लोग अवैध नशीले पदार्थो की लत के शिकार हैं । सबसे ज्यादा १६ करोड़ २० लाख लोग गाँजा, हशीश तथा टीएचसी जैसे पदार्थो का नशा करते हैं । इसके बाद करीब तीन करोड़ पाँच लाख लोग एेंफेटेमाइन टाइप स्टिमुलैंट्स आदि का नशा करते हैं । एक करोड़ ६० लाख लोग अफीम की श्रेणी में आने वाले हेरोइन, सिन्थेटिक अफीम और करीब एक करोड़ ३० लाख लोग कोकीन का नशा करते हैं । यूएनओडीसी और सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय द्वारा २००१ में कराए गए संयुक्त सर्वेक्षण के मुताबिक देश में छ: करोड़ २५ लाख लोग शराब का, ८७ लाख लोग भाँग तथा २० लाख लोग अफीम का नशा करते हैं । इनमें नशा करने वाली महिलाआें का प्रतिशत आठ हैं । नशीले पदार्थो का केंद्र माने जाने वाले दक्षिण एशियाई क्षेत्र में पिछले एक दशक में इसमें ८० प्रतिशत की कमी आ गई है । उन्नीस सौ अस्सी के दशक के मध्य तक लाओस में सर्वाधिक गैर कानूनी अफीम का उत्पादन किया जाता था लेकिन २००५ तक इसमें ७२ प्रतिशत तक की कमी आ गई । चीन माउंट एवरेस्ट तक हाइवे बनायेगा चीन एवरेस्ट के बेस कैंप तक १०८ किलोमीटर लंबी सड़क बनायेगा । चीन के सांस्कृतिक मंत्री सून जियाझोंग ने पिछले दिनों नई दिल्ली में कहा कि तिब्बत की तरफ से ५२५० मीटर की ऊंचाई पर चीन एक सड़क बनाएगा । एवरेस्ट के बेस कैम्प तक बनने वाली इस सड़क का काम चार महीने में पूर्ण हो जाएगा और १०८ किलोमीटर लंबी मल्टेड हाइवे ओलंपिक टार्च को यहां लाने में मददगार होगी । माउंट एवरेस्ट के बेस कैम्प तक सड़क निर्माण की चीन की योजना पर पर्यावरणविदों ने गंभीर चिंता प्रकट की है। प्रत्यक्ष रूप से चीन की यह महत्वाकांक्षी परियोजना अगले साल आयोजित होने वाले बीजिंग ओलंपिक से जुड़ी है । इस परियोजना के तहत ५,२०० मीटर पहाड़ की खुदाई कर १०८ किलोमीटर लम्बी सड़क का निर्माण किया जाना है । परियोजना को ओलंपिक टार्च रूट विस्तार के रूप में चित्रित किया जा रहा है । चीन एक तरफ तो बीजिंग ओलंपिक को 'ग्रीन ओलंपिक' के रूप में प्रचारित कर रहा है, वहीं दूसरी ओर ओलंपिक खेलों के लिए ऐसी परियोजना पर काम करने जा रहा है जिसके कारण 'माउंट एवरेस्ट' जैसे प्राकृतिक क्षेत्र के पर्यावरण को गंभीर क्षति हो सकती है । चीन की परियोजना के अगले चरण में पर्यटकों के लिए रिसॉर्ट विकसित करने की योजना है । इसके बाद यह हाइवे माउंट एवरेस्ट पर बड़ी संख्या में आने वाले पर्यटकों और पर्वतारोहियों के लिए कूड़ा कचरा फेंकने की जगह बन जाएगी। महत्वपूर्ण तथ्य है, इस परियोजना की घोषणा होने से पहले ही विश्व की सबसे ऊँची चोटी 'माउंट एवरेस्ट' के पर्यावरण को लेकर विशेषज्ञ चिंतित है । माउंट एवरेस्ट तेजी से पर्वतारोहियोंद्वारा छोड़े गए कूड़ा करकट के कारण कूड़ा घर में तब्दील हो गया है। पर्वतारोहियों और पर्यटकों की बढ़ती संख्या से एवरेस्ट के पर्यावरण को और अधिक नुकसान होगा । वास्तव में इस समस्या से निपटने के लिए ऐसे भी सुझाव दिए गए हैं कि कुछ समय के लिए माउंट एवरेस्ट को 'विजिटर्स' के लिए बंद कर दिया जाए । 'ग्लोबल वार्मिंग' के कारण ग्लेशियरों के पिघलने से माउंट एवरेस्ट का अस्तित्व पहले से ही खतरे में है । चीन की हाइवे परियोजना इस क्षेत्र के 'इको सिस्टम' को और बिगाड़ देगी । ढांचागत सुविधाआें के विकास से क्षेत्र का प्राकृतिक स्वरूप खतरे मेंपड़ जाएगा, यह कल्पना की जा सकती है कि पर्यटक पहाड़ों के किनारे क्या कर सकते हैं ? पर्यावरण की कीमत पर विकास चीन के लिए नया नहीं है । पर्यावरण संरक्षण के मुद्दे पर चीन का रिकॉर्ड बेहद खराब रहा है । चीन के तीव्र आर्थिक विकास की कीमत उसके पर्यावरण को चुकानी पड़ी है । खतरनाक हो सकती है कड़कड़ाती बिजली बजली आमतौर से गरजदार तूफान के दौरान पैदा होती है । बादल जब काफी ऊंचाई पर पहुंच जाते हैं तो वहां तापमान बहुत कम होता हैं । उस समय आधे जमे पानी के कणों का घनात्मक और ऋणात्मक चार्ज बदलने लगता है । इस बदलाव की प्रक्रिया में ये कण आपस में टकराते हैं और चिंगारी पैदा होती है । ये १० करोड़ वोल्ट तक की हो सकती है । ये बिजली बादलों की बीच में पैदा हो सकती है, बादलों और हवा के बीच या फिर बादलों और जमीन में बीच । इस बिजली का तापमान ५० हजार डिग्री फैरनहाइट तक का हो सकता है । जो सूर्य की सतह के तापमान से भी अधिक है । इसलिए अगर यह जमीन पर किसी से टकरा जाए तो उसे तुरंत भस्म कर देती है । बिजली बहुत तेजी से हवा को गर्म करती है जिससे वह अचानक फैलती है और फिर सिकुडती है । इससे विस्फोट होता है अैर ध्वनि तरंग पैदा होती हैं । इसी को हम बादलों के गर्जन के रूप में सुनते हैं । प्रकाश एक लाख ८६ हजार मील प्रति सेकण्ड की रफ्तार से चलता है जबकि ध्वनि एक सैकण्ड में ३५२ गज की गति से इसलिए हमें बिजली कड़कती पहले दिखाई देती है और गरज उसके बाद सुनाई देती है ।
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