मंगलवार, 20 मई 2008

१२ पर्यावरण समाचार


मोक्ष दिलाने वाली गंगा को मोक्ष की तलाश

लोगों को तारने वाली गंगा का अस्तित्व संकट में है । धार्मिक नगरी काशी में पानी का बहाव कम होने एवं प्रदूषण के चलते गंगा की स्थिति काफी खराब हो गई है । दूसरों को मोक्ष दिलाने वाली गंगा अब स्वयं मोक्ष को तरस रही है । अब तो वाराणसी में गंगा में जहां तहां बालू के टीले दिखाई देने लगे हैं । कई पक्के घाटों को गंगा छोड़ चुकी है । केवल मिट्टी का टीला नजर आ रहा है । रामनगर से राजघाट के बीच बालू खनन पर रोक लगने के कारण रेत का मैदान बढ़ता जा रहा है और गंगा सिमटती जा रही है । स्थिति यह है कि काशी के विश्व प्रसिद्ध घाटों पर पानी कम होने से स्नानार्थी घुटने भर या उससे भी कम एवं प्रदूषणयुक्त पानी में डुबकी लगाने को बाध्य है । गंगा में व्याप्त् प्रदूषण का तो यह हाल है कि स्थानीय लोगों ने गंगा स्नान करना लगभग छोड़ ही दिया है । काशी के घाटों पर बैठने वाले पंडों को डर हैं कि कहीं गंगा का भी वही हाल न हो जो यमुना, गोमती तथा अन्य नदियों का हुआ हैं । प्रयाग, इलाहाबाद में तो गंगा इन दिनों नदी की जगह नाला बन गई है । वहां पर गंगा एवं यमुना का जलस्तर १० प्रतिशत के हिसाब से हर साल गिरता जा रहा है । पाप नाशिनी गंगा अब कानपुर एवं इलाहाबाद में गंदे नाले के रूप में परिवर्तित हो दीन हीन बन गई है । इलाहाबाद से समाजवादी पार्टी सांसद कुंवर रेवती रमणसिंह ने गंगा की दुर्दशा पर संसद में सवाल उठाते हुए चेतावनी दी थी कि यही हाल रहा तो वर्ष २०३० तक गंगा मृत नदी बन जायेगी । वाराणसी में लोगों का मानना है कि उनकी इस इस आशंका को दरकिनार नहीं किया जा सकता । आगरा तथा दिल्ली में यमुना, लखनऊ में गोमती वाराणसी एवं इलाहाबाद में वरूणा और जौनपुर में सई एवं पीली नदियों का क्या हश्र हुआ है यह किसी से छिपा नहीं है । पर्यटन से जुड़े लोगों का मानना है कि प्रतिवर्ष लाखों विदेशी पर्यटक अन्य स्थानों को देखने के साथ ही साथ वाराणसी में गंगा के सुप्रसिद्ध घाटों को देखने आते हैं । दुनिया में किसी भी नदी के किनारे इतने सुन्दर घाट देखने को नहीं मिलते देश को इससे अरबों रूपये की विदेशी मुद्रा अर्जित होती है । इन घाटों का अस्तित्व गंगा के अस्तित्व से जुड़ा है । बिना गंगा के इन घाटों का कोई अर्थ ही नहीं रह जायेगा । सबसे ज्यादा चिंतित गंगा के किनारे रहने वाले नाविक है जिनकी जीविका का साधन गंगा है । कानपुर, इलाहाबाद एवं वाराणसी में नालों का पानी बेरोकटोक गंगा में गिर रहा है । वाराणसी में प्रदूषण के चलते गंगा का पानी काला पड़ गया है । गंगा सेवा निधि के संस्थापक अध्यक्ष सत्येन्द्र मिश्रा का कहना है कि गंगा की आज जो स्थिति है वैसी पहले कभी नहीं थी । पानी का बहाव कम होने से गंगा का फैलाव दिनों दिन घटता जा रहा है । बहाव न होने से प्रदूषण बढ़ता जा रहा है। जब तक टिहरी बांध से पर्याप्त् पानी नहीं छोड़ा जायेगा गंगा का न तो जलस्तर बढ़ेगा और न ही बहाव । बाढ़ नियंत्रण के अधिशासी अभियंता उमेश शर्मा का कहना है कि अगर आने वाले समय में पर्याप्त् वर्षा न हुई तो दोनों पवित्र नदियों गंगा एवं यमुना का अस्तित्व खतरे में पड़ जायेगा । दोनों नदियों का जलस्तर १० प्रतिशत के हिसाब से प्रतिवर्ष घट रहा है । दो दशक पहले तत्कालीन प्रधान मंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी द्वारा गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के लिए गंगा एक्सन प्लान शुरू किया गया था । इस पर सरकार ने ५० करोड़ से ज्यादा रूपये खर्च किये थे लेकिन गंगा के जल में सुधार होने के बजाय स्थिति बद से बदतर हुई है ।

नए भूमि अधिग्रहण कानूनों के खिलाफ `संघर्ष` प्रारंभ

नई दिल्ली में जंतर-मंतर पर भारतीय संसद के समक्ष देशभर के जनसंगठनों के एक झंडे तले `संघर्ष` की घोषणा की। इस के साथ तीन दिवसीय धरना भी ३० अप्रेल को समाप्त् होगया । इसी दौरान विस्थापन भू-अधिग्रहण व पुनर्वास पर जन संसद का आयोजन भी किया गया । इस मुद्दे पर सक्रिय ४५ संगठन व जनसंगठनों ने इसमें भागीदारी करते हुए सरकारों के अतिवादी रवैये की चर्चा करते हुए सरकार द्वारा किये जा रहे अत्याचारों की चर्चा की। वक्ताआें का कहना था कि १०० वर्ष पूर्व बने बांधो के विस्थापितो का भी पुनर्वास अभी तक नही हुआ है। साथ ही विशेष आर्थिक क्षेत्र, खदानों, जल व ऊर्जा परियोजनाआें की वजह से लाखों लोग अभी भी विस्थापित हो रहे हैं । इस संबंध में झारखंड, छत्तीसगढ़ और उड़ीसा के प्रतिनिधियों ने बताया कि किस तरह आदिवासियों की भूमि व संसाधनों की लूट चल रही है । दिल्ली मुम्बई व अन्य शहरों की गंदी बस्ती में रहने वालों की ओर से भी बात रखी गई । एक प्रस्ताव में कहा गया कि चुनावी वर्ष में कांग्रेस व यूपीए को आम जनता के साथ रहना चाहिए न कि निगमों और भूमि हथियाने वालों के साथ । अब जनता अत्याचार सहन नहीं करेगी । ***

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