उत्तरी ध्रुव पर भारतीय अनुसंधान केन्द्र
भारत ने उत्तरी ध्रुव पर अपना स्थायी अनुसंधान केन्द्र स्थापित किया, जो वैज्ञानिकों को धरती के सबसे स्वच्छ वातावरणों में से एक में जलवायु परिवर्तन सहित बहुत से अन्य विषयों पर अध्ययन करने के योग्य बनाएगा । स्पिट्सबर्जन के पश्चिमी तट नी एलेसुंड में अनुसंधान केन्द्र हिमाद्री का उद्घाटन पृथ्वी विज्ञान मंत्री कपिल सिब्बल ने किया । स्पिटसबर्जन नार्वे के स्वैलवार्ड द्वीप समूहों में सबसे बड़ा द्वीप है । उत्तरी ध्रुव से १२०० किलोमीटर की दूरी पर स्थित नी एलेसुंड सुदूर उत्तर स्थित अंतरराष्ट्रीय अनुसंधान गांव है, जिसका प्रबंधन नार्वे सरकार की कंपनी किंग्सवे द्वारा किया जाता है । नी एलेसुंड में पिछले ११ महीने में भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा चलाए गए दो अभियानों के बाद इस अनुसंधान केंद्र की स्थापना हुई है । राष्ट्रीय ध्रुव एवं सागर अनुसंधान केन्द्र गोवा के निदेशक रसिक रवींद्र के नेतृत्व में ध्रुव संबंधी अभियान गत वर्ष अगस्त में शुरू किया गया था । इसके बाद बरकतुल्ला विश्व विद्यालय भोपाल के प्रोफेसर एके ग्वाल के नेतृत्व में सात वैज्ञानिक की एक और टीम इस काम में शामिल हुई । उत्तरी ध्रुव पर अनुसंधान केन्द्र स्थापित किए जाने से तीन दशक पहले भारत ने अंटार्कटिका की दक्षिण गंगोत्री में स्थायी अध्ययन केंद्र स्थापित किया था । स्वैलवार्ड तक भारत की पहुंच नार्वे के साथ हुई एक संधि की वजह से है । इस क्षेत्र के संप्रभु अधिकार नार्वे के पास हैं । नी एलेसुंड में अनुसंधान केन्द्र स्थापित करने वाला भारत विश्व का ११वां देश है । इस जगह अनुसंधान केन्द्र रखने वालों में नार्वे, जर्मनी, ब्रिटेन, इटली, फ्रांस, जापान, दक्षिण कोरिया, चीन, नीदरलैंड्स और स्वीडन शामिल हैं । ६३ हजार वर्ग किलोमीटर में फैले नी एलेसुंड का दो तिहाई हिस्सा हमेशा बर्फ से ढंका रहता है । भारत का अंटार्कटिका में मैत्री नाम का एक संचालन केंद्र भी है और इस साल के अंत में दूसरे केंद्र की स्थापना करने की प्रक्रिया चल रही हैं ।प्राचीनतम बीज के उगने का कीर्तिमान
एक पुराना बीज राजा हेरोड की ऐशगाह के मलवे से मिला । इसे बोकर देखा गया और आश्चर्य की बात यह कि यह उगा, पत्तियाँ फूटीं और एक लहलहाता पौधा खड़ा हो गया । आश्चर्य की बात यह है कि हेरोड के जमाने का बीज २००० वर्ष बाद भी जीवित है। हेरोड राजवंश ईसा के समकालीन है जिसने फिलिस्तीन पर राज किया और इसके ९ सदस्यों का उल्लेख न्यू टेस्टामेंट में है । मृत सागर से लगे जूडीयन मरूस्थल में एक पहाड़ी पर बने २०४४ वर्ष पुराने मसादा महल के कचरे में यह पाम का बीज पड़ा मिला था । तीन वर्ष पहले इसका हार्मोन उर्वरकों से उपचार कर बोया गया और यह उग आया। इसके पौधे को मैथूसेला वृक्ष नाम दिया है क्योंकि यह बाइबल के सबसे बूढ़े पात्र का नाम है । पाम खजूर प्राचीन जूड़िया का महत्वपूर्ण निर्यात था । इसके चित्र सिक्कों पर बने मिलते हैं और मृत सागर में गैलिली के सागर तक इसके बगीचे लगाए जाते थे । ***
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