और कितने भोपाल ?
सुश्री रावलीन कौर
सुप्रसिद्ध साहित्यकार स्व. कमलेश्वर के उपन्यास का शीर्षक `और कितने पाकिस्तान' उस मानसिकता को उधेड़ता था जिसने पाकिस्तान का निर्माण किया है । भोपाल गैस त्रासदी भी एक ऐसी मानसिकता की द्योतक है जिसका एकमात्र लक्ष्य लाभ अर्जित करना है । विशेषज्ञों द्वारा यह माना जा रहा है कि हाल ही में गुजरात के भरूच में रासायनिक अपशिष्ट भंडार में लगी आग भोपाल गैस त्रासदी से भयावह रूप ले सकती थी । भरूच एन्वायरो इन्फ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड (बी.इ.आय.एल.), अंकलेश्वर (गुजरात) जिसमें कीटनाशक क्षेत्र के महाकाय यूनाइटेड फास्फोरस की बड़ी हिस्सेदारी है, में गत ३ अप्रैल को लगी आग ने सिद्ध कर दिया है कि खतरनाक रासायनिक अपशिष्ट प्रबंधन के मामले में हमारा रवैया भोपाल गैस त्रासदी से भी सबक नहीं ले पाया है । भस्मक की प्रतिदिन उपचार क्षमता के विरूद्ध उस दिन यहां कुल १२,८०० टन खतरनाक रासायनिक तरल और अपशिष्ट तेल का भंडारण था जिसमें से २५० टन अपशिष्ट खतरनाक जहरीले कीटनाशकों का था । वह तो किस्मत अच्छी थी कि आग लगने के दस मिनट में ही हवा ने रूख बदल लिया वर्ना आग का फैलाव वहां स्थित अन्य कारखानों और गांवों में भी हो जाता और इसके फलस्वरूप होने वाले हादसे का आकार भोपाल त्रासदी से काफी बड़ा होता । आग पर भले ही २४ घंटे में काबू पा लिया गया हो लेकिन `डाउन टू अर्थ' की पड़ताल ने गया कि आसपास के गांवो के निवासियों में जहरीली गैस का असर आँखों और नाक की जलन, सांस की तकलीफ और कुछ मामलों में तो त्वचा पर चकत्ते और ज्वर के रूप में अब भी मौजूद है । आग के कारणोंका ठीक से खुलासा तो नहीं हुआ है किंतु गुजरात प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और स्थानीय प्रशासन के प्रारंभिक आकलन के अनुसार यहां उपचार, भंडारण और अपशिष्ट प्रबंध सेवा (टीएसडीएफ) के कार्य में पर्यावरण और सुरक्षा नियमों की गंभीर अनदेखी की गई थी । टीएसडीएफ यूनियन कार्बाइड, भोपाल के अपशिष्ट उपचार का दस लाख डॉलर का ठेका भी हासिल करने का प्रयास कर रही है । औद्योगिक स्वास्थ्य एवं सुरक्षा विभाग ने गुजरात कारखाना अधिनियम १९४८ के अंतर्गत बीइआयएल के विरूद्ध खतरनाक अपशिष्ट भंडारण के लिए दो शेडस की अनुमति के विरूद्ध सात शेडस बनाने का प्रकरण दर्ज किया है । प्रसंगवश यही वह सातवां शेड था जहां दुर्घटना हुई । मामले में और छानबीन जारी है । दुर्घटनास्थल, जहां पीपो में अपशिष्ट भंडारण किया जाता है से पहली बार शाम ५.३० बजे काला धुंआ उठता देखा गया था जिसकी सूचना प्रबंधन को तुरंत दी गई थी फिर भी महज दो किलोमीटर दूर स्थित आपदा सुरक्षा और प्रबंधन केन्द्र को इसकी सूचना ६ बजे मिल पाई । बीइआयएल से एक किलोमीटर दूर स्थित जिताली गांव के निवासियों ने पीपे हवा में उड़ते देखे लेकिन पंचायत भवन में कंपनी द्वारा स्थापित खतरे की सूचना देने वाला अलार्म नहीं बजा । बाद में जांच में पता लगा कि मूल प्रणाली को तार द्वारा जोड़ा ही नहीं गया था । अपने मोबाईल पर खींची दुर्घटना की तस्वीरें दिखाते हुए जिताली के रहवासी निलेश पटेल ने डाउन टू अर्थ को बताया कि जल्द ही अंधेरा छाने लगा एवं हवा इतनी कसैली हो गई थी कि सांस लेना मुश्किल हो रहा था । जिताली के पास के दो गांव सारंगपुर और ढढाल इनाम को भी खाली करने के आदेश दे दिए गए थे । चारों तरफ राख ही दिखाई दे रही थी । लोगों के घर की छत पर पत्थरों जैसी भारी वस्तुएं आ गिरी थीं वे सुबह तक जल रही थीं और उनमें से दुर्गन्ध निकल रही थी । हवा के रूख की ओर होने की वजह से जिताली सर्वाधिक प्रभावित रहा। अंकलेश्वर स्थित आपदा सुरक्षा एवं प्रबंधन केन्द्र के अग्नि एवं सुरक्षा प्रबंधक मनोज कोटड़िया का कहना था कि बीस किलोमीटर की गति से चलती हवा की वजह से धुंआ ठहर नहीं पाया और खाली जमीन की ओर इसके रूख की वजह से चारों ओर पड़े पीपों में आग नहीं लग पाई वर्ना बड़ा हादसा हो जाता । ढढाल इनाम में शाम को मदरसे से लौटते बच्चें ने जब धमाके की आवाज सुनी तो वे उत्सुकतावश उसी ओर भागे और धुएं की चपेट में आ गए । प्रदूषण के असर की जांच के लिए हवा में मौजूद जहरीली गैसों की पहचान आवश्यक होती है किंतु बीइआयएल अभी तक जलने वाले रसायनों के नामों का खुलासा नहीं कर पाया है । जबकि प्रबंधन केन्द्र के लिए अपेन यहां उपचार के लिए अपने वाले अपशिष्ट के प्रकार का रिकॉर्ड रखना और लेने से पहले उसकी जांच कर तस्दीक कर लेना कानूनन आवश्यक है । दुर्घटना के अगले दिन गुजरात प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने हवा की जांच के लिए जिताली, बीइआयएल और एवेंटिस नामक दवा फैक्ट्री में मशीनें लगा दी थी। अधिकारियों ने बताया कि स्थिति आमतौर पर नियंत्रण में है । लेकिन जब उनका ध्यान डायोक्सिन, फ्यूरॉन और अन्य अत्यंत खतरनाक रसायनों के नमूने एकत्र न करने की ओर आकृष्ट किया गया तो गुजरात प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पर्यावरण यंत्री आर.जी. शाह का जवाब था `इसका क्या फायदा ? हमारे देश में किसी भी प्रयोगशाला ने इनकी जांच की व्यवस्था ही नहीं है ।' हाँ धातुकणों के नमूने जरूर ४ अप्रैल को मुम्बई स्थित नेटेल इण्डिया लेब को भेज दिए हैं । डाउन टू अर्थ ने जब ८ अप्रैल की शाम को नेटेल से सम्पर्क किया तो पता चला कि नमूने अभी भी उन तक नहीं पहुंचे थे । यह भस्मक अपशिष्ट को बहुत ऊँचे तापमान पर जलाता है जिससे इसका जहर हवा में घुल नहीं पाता, जबकि दुर्घटना में यह काफी कम तापमान पर जला जिससे हवा दूषित होने और फलस्वरूप भूमि और जल के भी दूषित होने की निश्चित संभावना है । नियमों के मुताबिक कोई भी औद्योगिक ईकाई अपने परिसर में ९० दिनों से ज्यादा अपशिष्ट संग्रहित नहीं रख सकती है किंतु बीइआयएल ने ५० टन प्रतिदिन उपचार क्षमता के विरूद्ध १२,८२५ टन अपशिष्ट संग्रहित कर रखा था । बीइआयएल की अपशिष्ट उपचार की दर १५ रू. प्रति किलो है और वह इसे अग्रिम लेता है, इस तरह उसके यहां कुल भंडारित अपशिष्ट का उपचार मूल्य १९ करोड़ रूपया जो वह प्राप्त् कर चुका है फिर भी उसने उपचार नहीं किया है । बल्कि दुर्घटना ने तो उसे २५० टन अपशिष्ट जलाकर ३७.५० लाख रूपयों का फायदा करा दिया है । बीइआयएल अधिकारियों, पुलिस और जिला प्रशासन अधिकारियों ने आग के कारणों पर चुप्पी साथ ली । जिला आपदा दल के शीर्ष अधिकारी जिलाधिकारी द्वारा संयोजित तीन सदस्यीय समिति ने अपनी रपट ९ अप्रैल को सौंप दी जिसमें उन्होंने दुर्घटना का निश्चित कारण जान सकने में असफलता स्वीकार की और संभावित कारण अपशिष्ट और लोहे के पीपों की बीच पायरोफोरिक रासायनिक क्रिया माना । रपट में अपर्याप्त् सुरक्षा उपायों की ओर भी ध्यान आकृष्ट किया गया । जिसमें गैस रिसाव से आग टकराने वाले सेंसरों का कार्यरत न होना, खतरनाक रसायनों की पहचान न किया जाना, उन्हें अलग-अलग संग्रह न किया जाना, आग से बचाव के लिए समुचित उपकरण न होना आदि शामिल हैं । गुजरात प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य सचिव संजीव त्यागी ने कहा कि कंपनी के विरूद्ध प्राथमिकी दर्ज करवाना हमारे क्षेत्राधिकार में नही है । जबकि मामाल निश्चित रूप से लापरवाही का है और आग मानव द्वारा लगाई गई प्रतीत होती है । एक बार निश्चित कारणों का पता लगने पर हम पर्यावरण नियमों के तहत कार्यवाही करेंगे । दुर्घटनास्थल पर कुछ और जानकारियां भी मिली हैं । जैसे कंपनी की ओर से फायर हाइड्रेंट की कोई अवस्था नहीं थी । दमकल कर्मचारियों को आग बुझाने में बड़ी मशक्कत करना पड़ी । सड़क बहुत सकरी होने और गहरे धुंए के कारण दमकल पहुंचने के लिए परिसर की पिछली दीवार का एक हिस्सा तोड़ना पड़ा । स्थानीय चिकित्सक के मुताबिक अगर मजदूर अंदर फंसे होते तो स्थित और खराब होती क्योंकि बाहर निकलने के लिए वहां कोई आकस्मिक दरवाजा भी नहीं है । दुर्घटना की अगली सुबह यहां लोगों को तेल और कीचड़ से सना पाया गया । यह सब कुछ जमीन के अंदर रिसेगा। यहां के कर्मचारी भी मास्क की कमी और थकान की शिकायत करते हैं । इस तरह के उपचार स्थलों पर तो सामान्य से ज्यादा निरीक्षण और सुरक्षा उपायों की दरकार होती हैं किन्तु इस मामले में तो ठीक इसका उल्टा हो रहा है । ***
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