बुधवार, 2 जुलाई 2008

१२ कविता

आंगणे रो दरखत
छोगसिंह राजपुरोहित `पथिक'
आंगणे रो दरखत बूढ़ो व्है गयो,
पानड़ा खिर गया अर ठूंठ रेह गयो,
पण थे इणने काटो मत,
आ थारी ओळखाण है
फूलीया फळीया परवार री निसाण है ।
एक दिन ओ दरखतकांची कूंळी कूपल थी,
आंगणा री तुलसी
अर ओखद री जड़ी बूटी थी
घणा लाड़ कोड़ा सू उच्छैर्यो,
हालरीयो गायो थो,
काजळ, टीकी अर गोरबन्द
सघला रो टोटको ताण्यो थो,
रातां री नींद बिगाड़ी,
भूखा रैय इणने धंपायो,
तद ओ दरखत बण्यो
टेम रे सागे फूल फळ लागा,
डाला फूटा रूवाळा जागा,
बेलड़ीया लिपटी,
तितलिया फरूकी,
भंवरा री गंुजन,
गिरजड़ा री धमकार,
सावण री रिमझिम,
काळजो धूजावतो मावठो,
बळती लू री रणकार,
इण सघला रे पाछै,
मन मोवणो बसंत आयो,
फरज निभायोअर आसरो बण्यो,
सबरो आम
किणिरो नी खास
पण अबै अवस्था पाकी
गौरी चामड़ी व्है गी खाकी
बंद ढीला अर जड़ा कमजोर
कुदरत रे आगे चाले नी जोर ।
इण रूखड़ा को मरम
नि:स्वार्थ साधना बिन नी जाण सके
गैरी छाया रो महेत्तव
लू में पतीयोड़ा पथिक जाण सके,
जीवता माईतां रो कोई महेत्तव नी,
माईता रो महेत्तव तो
बिन माईत रे बाळ री
सूनी आख्यां ईज बता सके
पण चेतजा मानखा
थारी अर दरखत री सरखामणी एक है
तू चाल फिर सकेअर ओ अडिग है
ओ हळ हालरीयो वळो बणैला,
म्यांळ बण कणी रो भार झेलेला,
ओ आसी खूंटा रे काम
थू सोवेला खूंटी ताण
पण कुदरत सू मत जाजे उब
जुवानी में मत जाजे डूब
आगे पाछे रो ध्यान कर
थारो कांई होवेला जतन कर
काया रो मद
अर माया रो घमण्ड
दौन्यू उतर जावेला
`पथिक' थूं याद राख,
रूखड़ा अर माईत सरीखा है
भले बूढ़ा व्है जावे तो
गरड़ा गहरणा सरीखा है । ***

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