म.प्र. में पेड़ों की २०० प्रजातियों पर संकट
मध्यप्रदेश में पौधों की लगभग २०० प्रजातियाँ संकट में है । म.प्र. जैव विविधता बोर्ड ने इन प्रजातियों को रेट (दुर्लभ, लुप्त् और खतरनाक स्थिति वाली प्रजातियाँ) की श्रेणी में रखा है । ये प्रजातियाँ केंद्रीय, चंबल, विंध्य एवं मालवा क्षेत्र की है । जैव विविधता बोर्ड के अनुसार इन प्रजातियों को उनके क्षेत्र के अनुसार बाँटा गया है । इसमें केंद्रीय पर्यावरणवीय क्षेत्र में लगभग २९ पेड़ों की प्रजातियाँ ऐसी हैं, जो दुर्लभ है और उनके लुप्त् होने का खतरा है । इनमें काली रत्ती, अंकोल शतावरी, काली हल्दी, रतालू, मेरोफली, दूधी, गिलोय, बैरझारी, अडूसा, ईश्वरमूल, आल, बीजासाल, केवरी आदि हैं । ग्वालियर एवं चंबल क्षेत्र में बच, कालमेघ, गुड़सार, डाबरा, सर्पगंधा, ईश्वरमूल, झलितरी, केमचफली, दममाबूटी आदि विलुिप्त् की कगार पर हैं । विंध्य क्षेत्र में काली हल्दी एवं तेलियाकंद समािप्त् की ओर हैं । ड्रोसेरा, निलगुड़ी कंद की ३० प्रजातियाँ और बच, ब्राह्मणी, सोमवली की ४८ प्रजातियाँ खतरनाक स्थिति में है वहीं दंती, गुरमार, गिलोय की १०२ प्रजातियाँ संवेदनशील हैं । अनंतमूल, निशोथ की ४२ प्रजातियों पर कभी भी संकट आ सकता है । मालवा क्षेत्र में दुर्लभ पेड़ों, जो खतरनाक स्थिति में हैं, उनकी २८ प्रजातियाँ है । इनमें गोरख ईमली, मोरार फली, कबीट, सोन पतरी, जंगली सुरन, जंगली तंबाकू, आम्बा हल्दी, शिवलिंगी, सर्पगंधा, धवाई, हंसराज, केवड़ा, खसघास आदि ऐसी प्रजातियाँ है, जो दुर्लभ होती जा रही हैं और यदि इन्हें नहीं संभाला तो ये लुप्त् हो जाएँगी ।ग्लोबल वार्मिंग से भड़केगी अमेरिका में आग
विशेषज्ञों का कहना है कि २१वीं सदी में ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव के चलते अमेरिकी जंगलों में लगने वाली आग का प्रकोप बढ़ेगा और इस प्रकार की घटनाआें में तेजी आएगी । न्यू साइंटिस्ट पत्रिका में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार जिस प्रकार महासागरों का तापमान बढ़ रहा है उससे वातावरण में और अधिक तापमान की बढ़ोतरी होना निश्चित है । इसका सबसे अधिक असर अमेरिका जैसे देशों पर पड़ेगा जो दो तरफ से समुद्र से घिरे हैं और जिनके पास लंबी कोस्टलाइन है । ऐसे में अमेरिका के जंगलों में लगने वाली आग इस सदी में और भी भयानक रूप धारण करेगी, इस बात की आशंका बढ़ जाती है । इस बारे में यूएस डिपार्टमेंट ऑफ एग्रीकल्चर फोरेस्ट सर्विस इन एथेन्स, जार्जिया के योंगियांग ल्यू कहते हैं कि अगर प्रशांत महासागर गर्म होगा तो हम उससे भला कैसे बच सकते हैं । उसकी गर्मी हमारे देश में लपटों का सा प्रभाव पैदा करेगी । श्री ल्यू का कहना है कि उत्तर प्रशांत महासागर में गर्म होने से मौसम का चक्र परिवर्तित होगा और वो कम दबाव वाला क्षेत्र बनाएगा । इससे जेट स्ट्रीम सरक्युलेशन कनाडा की तरफ जाएगा और गर्मी का पाश अमेरिका पर कसा जाएगा। इस सरक्युलेशन से सूखी और गर्म हवाआें का चक्र पूर्वीऔर पश्चिमी क्षेत्र को घेरेगा । श्री ल्यू ने इस अध्ययन को करने के लिए १९८० से २००२ तक के मौसम संबंधी समस्त आंकड़े इकट्ठे किए हैं और दावा किया है कि पूर्वी प्रशांत क्षेत्र २०८० तक ०.६ डिग्री सेल्सियस तक गर्म हो जाएगा । श्री ल्यू का यह भी दावा है कि अगर यह स्थिति निर्मित हो जाती है तो इससे अमेरिका के २० लाख हैक्टेयर जंगली क्षेत्र में आग लगने का खतरा पैदा हो जाएगा जिससे होने वाले नुकसान का सिर्फ अनुमान ही लगाया जा सकता है ।सौ वर्षो से कार्य कर रहा है इंर्धन रहित पंप
आज जब पूरी दुनिया इंर्धन की समस्या से जूझ रही है तब कलपेट्टा (केरल) में लगा ब्रिटिशकालीन एक इंर्धन रहित हाइड्रॉलिक पंप सबके लिए आश्चर्य का विषय बना हुआ है । यह पंप पिछली एक शताब्दी से बिना रूके और बिना इंर्धन की खपत के पानी की ईमानदारी से आपूर्ति कर रहा है । केरल मेंनीलगिरी पहाड़ियों की तराई वाले क्षेत्र में बसे चोलाड़ी के एक झरने में यह पंप लगा हुआ है और लगातार काँच जैसा साफ पानी लोगों को उपलब्ध करा रहा है। यह पंप जमीन से लगभग ६०० फीट ऊपर एक बंगले में लगा हुआ है जो किसी तत्कालीन ब्रिटिश नागरिक द्वारा बनवाया गया था और उसकी रियासत का हिस्सा था । उस ब्रिटिश ने यह पंप अपनी सहूलियत के लिए लगवाया था । इस पंप पर लगी तांबे की प्लेट पर पंप को बनाने वाली कपंनी का भी नाम है । इस प्लेट पर जॉन ब्लेक इंजीनियर्स, एकरिंगटन, लैंकेस्टर, इंग्लैण्ड लिखा हुआ है । अब इस बंगले का मालिकाना हक हैरीसन मलयालम प्लांटेशन के पास है। इस कंपनी के प्रबंधक जितेन्द्र झा इस बारे में बताते हैं कि इस रियासत के मालिक ब्रिटिश नागरिक वेंटवर्थ थे और उन्होंने इस पंप को ब्रिटेन से १९वीं शताब्दीं के अंत में यहाँ बुलवाया था । पंप की देखरेख कर रहे मैकेनिक मरीमुथु के अनुसार अभी तक पंप को चुस्त-दुस्त रखने के लिए सिर्फ कुछ नट-बोल्ट ही बदले गए हैं जो मामूली सी बात थी । आज तक इस पंप में कोई बड़ी खराबी नहीं आई है। इस पंपर के बारे में मुथु बताते हैं कि यह ऊँचे झरने से पानी खींचकर एक आठ इंच पाइप के माध्यम से १०० मीटर दूर एक टैंक में पहुँचाता है । टैंक से फिर एक छ: इंच मोटे पाइप के जरिए इसका पानी १.५ किमी दूर स्थित बंगले में पहुँचता है । इस पंप में चार सिलेंडर लगे हुए हैं जो पानी के दबाव और रफ्तार को नियंत्रित कर उसे निर्धारित स्थान तक पहुँचाते हैं । इसमें कोई बिजली या इंर्धन की जरूरत नहीं पड़ती । यह पंप पूरी तरह से पर्यावरण मित्र साबित हो रहा है ।गंदी बस्तियों की जिंदगी का अध्ययन कराया जाएगा
भारत सरकार देश के स्लम इलाकों में रहने वाले लोगों की जिंदगी का गहन अध्ययन कराने की तैयारी में है। इस अध्ययन के दौरान झुग्गियों में रहने वाले करीब ६८ करोड़ लोगों की जिंदगी कैसे कट रही है और उन्हें किन समस्याआें से जूझना पड़ता है, इन सवालों का उत्तर ढूंढने की कोशिश की जाएगी । नेशनल सैंपल सर्वे आर्गनाइजेशन (एनएसएसओ) के महानिदेशक पी.के. राय के अनुसार इस राष्ट्रव्यापी सर्वेक्षण से गंदी बस्तियों में रहने वाले लोगों की जिंदगी के विभिन्न पहलुआें से अवगत होने का मौका मिलेगा । हमें इन लोगों की सामाजिक आर्थिक स्थिति और उनके मूल स्थान की जानकारी भी होगी । उन्होंने कहा कि इस सर्वेक्षण के निष्कर्ष के आधार पर इन लोगों की स्थिति में सुधार की रणनीति बनाने में आसानी होगी । श्री राय ने कहा, ``शहरीकरण की बढ़ती रफ्तार के साथ ही बड़े पैमाने पर लोग बड़े और द्वितीय स्तर के शहरों की ओर पलायन करने लगे हैं । इनमें से अधिकांश लोग स्लम इलाकों में रहते हैं। उनके रहन-सहन का अध्ययन कर सुधारात्मक कदम उठाए जाने की जरूरत है ।'' योजना आयोग के आकलन के मुताबिक वर्ष २००१ में देश के स्लम इलाकों में करीब ६ करोड़ लोग रह रहे थे । अगले पांच वर्षो में उनके लिए २५ करोड़ घरों की जरूरत पड़ेगी । श्री राय ने कहा ``आवासीय सुविधाआें की कमी हमारे लिए चिंता का विषय है । देश में बेघरों की संख्या भी बड़ी है ।'' एक साल तक चलने वाला यह सर्वेक्षण १ जुलाई से शुरू होने वाला है । इसकी रिपोर्ट अक्टूबर २००९ में जारी होगी ।अरावली पवर्त की चट्टानों पर शोध होगा
हिमालय से भी प्राचीन अरावली पर्वतमाला की चट्टानों की आयु गणना और उनके अंतर संबंधों के बारे में केंद्र सरकार के वित्तीय सहयोग से अनुसंधान कार्य किया जाएगा । यह जानकारी देते हुए राज. में श्री डूंगर कॉलेज बीकानेर के भू-विज्ञान विभाग के अध्यक्ष डॉ. सतीश कौशिक ने बताया कि केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने इसके लिए ५७ लाख रूपए की राशि मंजूर की है । इस राशि से कई विशेष उपकरण भी खरीदे जाएँगे । डॉ. कौशिक ने बताया कि अध्यापन और शोध कार्य के प्रोत्साहन के लिए प्राप्त् अनुदान राशि से विशेष उपकरण भी खरीदे जाएँगे । जिनकी मदद से महाविद्यालय में चल रहे अनुसंधान कार्य को बढ़ावा दिया जाएगा । डॉ. कौशिक के अनुसार अत्याधुनिक और स्वचलित थिन सेक्शन इकाई से चट्टानों की .०३ मिमी मोटाई की स्लाइड बनाकर माइक्रोस्कोप से चट्टानों का गहन अध्ययन एवं शोध किया जाएगा। इससे अरावली विंध्याचल पर्वत की विभिन्न चट्टानों की काल गणना को लेकर शोधकर्ताआें में उत्पन्न अंतरविरोध को सुलझाने में भी मदद मिलेगी । इसके साथ-साथ चट्टानों की मजबूती, गुणवत्ता और उनके विश्लेषण तथा खनिजों की पहचान एवं उनमें निहित तत्वों का पता लगाने संबंधी कार्य भी किए जा सकेंगे । इस शोध अध्ययन में पश्चिमी राजस्थान के मालानी क्षेत्र में उपलब्ध चट्टानों के शोध को प्राथमिकता दी जाएगी ।***
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