फल धारीदार क्यों होते हैं ?
आपने ध्यान दिया ही होगा कि कई फलों पर धारियां होती हैं, जहां फल थोड़ा अंदर धंसा होता है । जैसे कद्दू, पपीता, कुछ टमाटर, खरबूज वगैरह । अब वैज्ञानिकों ने इसका कारण ढूंढ निकाला है वैसे कारण बहुत महत्व तो नहीं रखता परंतु यह रोचक ज़रूर है । सवाल यह था कि ये फल वृद्धि के दौरान अच्छा सपाट गोलाकार रूप क्यों नहीं लेते, क्यों इन पर धारियां बन जाती हैं । ये धंसी इुई धारियां इन फलों पर आम तौर पर एकसिरे से दूसरे सिरे तक फैली होती है और इन्हें खंडों में बांट देती है । वैसे तो पेड़-पौधों पर तरह-तरह के पेटर्न पाए जाते हैं । इन पेटर्न में गणित की नियमितता और जटिलता का ऐसा नज़ारा होता है कि मशहूर प्रकृतिविद् चार्ल्स डारविन ने कहा था कि ये पेटर्न `` अच्छे भले इंसान को पागल कर सकते हैं ।'' मगर कई वैज्ञानिकों ने इन पैटर्न पर शोध करके स्पष्ट किया है कि ये अत्यंत सरल भौतिक सिद्धांतों के परिणाम होते हैं । जैसे फूलों की धारियों को ही लें । कोलंबिया विश्वविद्यालय के ज़ी चेन व उनके साथियों ने तरह-तरह के फलों की धारियों के पेटर्न का अध्ययन किया। उनका कहना है कि किसी गुब्बारे की आकृति गोल होती है क्योंकि जब उसे फुलाया जाता है, तो वह चारों ओर एक सा फैलता है । मगर फलों की खास बात यह है कि उनका अंदरूनी भाग मुलायम गूदे का बना है जबकि छिलका अपेक्षाकृत कठोर होता है । ऐसा होने पर अंदरूनी भाग और छिलके के गुणधर्मोंा में अंतर की वजह से फल ठीक उसी तरह से अंदर की ओर पिचकता है जैसे किसी लकड़ी पर पुते रंग में सिलवटें पड़ जाती हैं, खासकर यदि लकड़ी बार- बार फैलती - सिकुड़ती हो । चेन व उनके साथियों ने पाया कि गोलाकार या अंडाकार फलों के मामले में धारियों का विन्यास तीन बातों पर निर्भर है - छिलके की मोटाई और गोले की कुल चौड़ाई का अनुपात , छिलके व अंदरूनी भाग की कठोरता में अंतर, और गोले की आकृति (यानी वह एकदम गोलाकार है या लंबा- सा है) चेन व साथियों ने एक समीकरण बनाई और उसमें इन तीन चीजों के अलग-अग परिमाण रखकर गणनाएं की तो देखा कि इनके आधार पर ठीक प्राकृतिक आकृतियां उभर आती है । यहां तक कि धारियों की संख्या भी उतनी ही निकलीं । तो लगता है कि वनस्पतियों की आकृतियां कुछ आसान से यांत्रिक नियमों से संचलित होती हैं । इस क्षेत्र में पहले भी कई अध्ययन हो चुके हैं । जैसे पूर्व में टेक्सास विश्वविद्यालय के माइकल मार्डर ने गणनाआें के आधार पर अनुमान व्यक्त किया था कि पत्तियों के कंगूरेदार किनारे भी इसी तरह के कारणों से बनते हैं । वृद्धि के दौरान लगने वाले भौतिक बल ही आकृतियों का निर्धारण करते हैं यानी सजीव जगत में शरीर रचना की विविधता की व्याख्या सरल नियमों के आधार पर की जा सकती है । चीटियां जानती हैं भीड़भाड़ का समाधान चीटियों ने एक ऐसी बड़ी समस्या का हल निकाल लिया है जिससे मनुष्य अभी तक पार नहीं पा सके हैं । हमारी कारें जाम में फंस जाती हैं जबकि चीटियां कितनी भी संख्या में हों, एक-दूसरे की मदद से अपनी बस्ती के चारों ओर काफी कुशलता से चल पाती हैं, यह समझकर हम अपने उलझे रोड ट्रफिक का बेहतर समाधान ढूंढ सकते हैं । ड्रेसडेन यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नॉलाजी के सामूहिक व्यवहार के विशेषज्ञ ड्रिक हेलबिंग और उनके सहयोगियों ने इस बात का अध्ययन किया है कि चिटियां अपनी बस्ती के चारों तरफ कैसे भ्रमण करती हैं । इसके लिए उन्होंने चीटियों की बस्ती से लेकर शक्कर के घोल तक चींटियों के हाइवे बनाए । दो मार्ग बनाए गए- एक अधिक चौड़ा और दूसरा कम चौड़ा । जैसा कि होना था, संकरा रास्ता जल्द ही भर गया और वहां भीड़ इकट्ठी हो गई , लेकिन एक चींटी जो उसी रास्ते से बस्ती की ओर लौट रही थी, दूसरे ओर से आ रही चींटी से टकराई, उन्होंने रास्ते से ही वापस आना शुरू कर दिया । वापस आती चीटिंया नई चींटियों को चौड़े रास्ते की ओर जाने के लिए धक्का दे रही थी । इस प्रकार वापस आती चींटी ने आराम से अपना रास्ता तय किया और फिर किसी चींटी से नहीं टकराई । शोधकर्त्ताआें ने अधिक लम्बाई और जटिलता भरे रास्तों के कई कम्प्यूटर मॉडल तैयार किये और उन्होंने पाया कि कई बार चीटिंयां जाने के लिए लम्बे रास्ते का चयन करती हैं लेकिन इसके बावजूद वे भोजन तक शीघ्र और कुशलता से पहुंच जाती हैं । इसी प्रकार यदि भीड़ वाले रास्तों पर लौटते लोग भी एक दूसरे को को जाम की जानकारी देते चलें तो जाम से बचा जा सकता है ।क्या कुत्ते हमारी भावनाएं ताड़ लेते हैं ? कुत्ते पालने वाले कहते ही हैं कि उनके कुत्ते उनकी भावनाएं जान जाते हैं मगर ताज़ा अनुसंधान से पता चलता है कि कुत्ते हमारी भावनाएं ताड़ने में उसी विधि का सहारा लेते हैं जिसका हम लेते हैं । आम तौर पर देखा गया है कि जब इन्सान किसी व्यक्ति को देखते हैं , तो बाइंर् ओर से देखते हैं । यानी हम सामने वाले व्यक्ति के चेहरे के दाएं भाग को ज़्यादा घूरते हैं और संभवत: ज़्यादा समय उसी तरफ लगाते हैं । इसे `बांई बाजू झुकाव' कहते हैं । इसका कारण कोई नहीं जानता । वैसे इस संदर्भ में एक परिकल्पना यह है कि इन्सान के चेहरे का दायां भाग उसकी भावनाआें का बेहतर आईना होता है । देखा यह भी गया है कि `बाइंर् बाजू झुकाव ' उसी समय प्रभावी होता है जब हम इन्सानी चेहरों को देखते हैं , बाकी चीज़ें देखते समय ऐसा कुछ नहीं होता । हालांकि इन्सानों में `बाइंर् बाजू झुकाव' का काफी अध्ययन किया गया है मगर अभी तक जानवरों में इसका प्रमाण नहीं मिला था । अब यू.के. के लिंकन विश्वविद्यालय के कुनगुओ और उनके साियाथें ने अपने अध्ययन के आध्र पर बताया है कि पालतू कुत्तों में ऐसा झुकाव होता है । गुओ के दल ने १७ कुत्तों और बंदरों की शक्लों की तस्वीरें दिखाई । इसके अलावा कुछ निर्जीव चीज़ों के चित्र भी दिखाए गए । ऐसा करते हुए उन्होंने कुत्तों की आंखों व सिर की गतियों की फिल्म उतार ली । इन फिल्मों से पता चला कि कुत्तों में भी सशक्त ` बांई बाजू झुकाव' हाता है । मगर यह झुकाव तभी देखा गया तब उन्हें मनुष्य के चेहरे दिखाए गए। अन्य कुत्तों की तस्वीरें दिखाने पर ऐसा झुकाव नहीं देखा गया । गुओ को लगता है कि इन्सानों से हज़ारों पीढ़ियों के जुड़ाव के चलते शायद कुत्तों ने `बांई बाजू झुकाव' विकसित कर लिया होगा ताकि इन्सान के भावों को समझ सके । हाल के कुछ अध्ययनों में पता चला है कि हमारे चेहरे का दायां हिस्सा भावनाआें को ज्यादा स्पष्ट रूप से अभिव्यक्त करता है । इस मामले में इन्सानों और कुत्तों में एक महत्वपूर्ण फर्क भी पता चला है । जब कुत्तेां केा किसी इन्सान का चेहरा उल्टा (यानी सिर नीचे की ओर) दिखाया गया तब भी वे बांई ओर से ही देखते रहे। इसके विपरीत, ऐसी परिस्थिति में इन्सानों में यह झुकाव पूरी तरह नदारद हो जाता है। वैसे अन्य पालतू कुत्ता विशेषज्ञों को लगता है कि यह अध्ययन रोचक ज़रूर है मगर इससे कुछ निष्कर्ष निकालनाजल्दबाज़ी होगी । जैसे एक विशेषज्ञ का कहना है कि कुत्ते अपने मालिक का चेहरा जरूर पहचानते हैं मगर अभी तक इस बात का प्रमाण नहंी है कि वे चेहरे के भाव भी देखते हैं । बहरहाल , कुत्तों में `बांई बाजू झुकाव' तो एक हकीकत है । ***
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