शुक्रवार, 15 मई 2009

५ वन्य प्राणी

प्राणी हैं अनमोल
अरनब प्रतीम दत्ता
राष्ट्रीय वन्य जीव बोर्ड (एन.बी.डब्ल्यू.एल.) ने राजस्थान सरकार के उस प्रस्ताव को ठुकरा दिया है जिसमें उसने चम्बल नदी पर चार जल विद्युत परियोजनाआें के निर्माण का अनुरोध किया था । बोर्ड ने अपने दो सदस्यीय दल की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा है कि बांध घड़ियाल और डॉल्फिन के अंतिम आश्रयस्थली को भी समाप्त् कर देंगें । ये चारो परियोजनाएं राष्ट्रीय चंबल जल अभ्यारण्य के अंतर्गत संरक्षित ४२४ कि.मी. लम्बे हिस्से में आ रही हैं । वन्य जीव बोर्ड के दल का कहना है कि बांध के फलस्वरूप एक ऐसे ठहरे जलाशय का निर्माण होगा जो कि घड़ियाल व डॉल्फिन के निवास हेतु अनुपयुक्त है । घड़ियालों और डॉल्फिनों के लिए बहते पानी की आवश्यकता होती है, जबकि मगरमच्छर रूके पानी में भी रह लेते हैं । ये बांध मध्यप्रदेश और राजस्थान की सीमा प स्थित मध्यप्रदेश के मुरैना के निकट निर्मित होना थे । चंबल विकास योजना -खख कहलाने वाली ये परियोजनाएं वर्ष २००५ में मध्यप्रदेश व राजस्थान के मध्य हुए साझा समझौते का हिस्सा है। इन जल विद्युत परियोजनाआें की संयुक्त क्षमता २७० मेगावाट है । वन्य जीव बोर्ड की स्थायी समिति ने १९ फरवरी ०८ को पहली बार इन परियोजनाआें पर चर्चा की थी । राजस्थान के मुख्य वन्य जीव संरक्षक ने परियोजना निर्माण स्थल हेतु पर्यावरण प्रभाव आकलन के लिए सर्वेक्षण एवं निगरानी के वास्ते आवेदन किया था । समिति ने इस प्रार्थना को स्वीकार करते हुए कहा कि वह तब तक इस मसले पर गौर नहीं करेगी तब तक कि यह पूर्व अध्ययन नहीं किया जाएगा कि पर्यावरणीय स्वास्थ्य हेतु कितने न्यूनतम जलप्रवाह की आवश्यकता है एवं इसपरियोजना से जलचरों के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ेगा ? दिस.०७ एवं फरवरी ०८ के मध्य हुई ९० घड़ियालों की मौत ने भी समिति के निर्णय को प्रभावित किया है । चंबल में हाल ही में घड़ियालों की बड़े पैमाने पर हुई मौतों के मद्द्न्ेनजर समिति ने प्रस्ताव को नामंजूर कर दिया है । राजस्थान ने राजस्थान राज्य विद्युत प्रसारण निगम लिमिटेड के माध्यम से बोर्ड की स्थाई समिति की २२ मई २००८ में होने वाली बैठक में सर्वेक्षण व जांच की पुन: अपील की । निगम का दावा है कि परियोजना की वजह से नदी में घड़ियालों और अन्य जलचरों को कोई खतरा नहीं है । जवाब में कहा गया है कि इससे घड़ियालों और मगरमच्छों के बचे रहने के अवसर और बढ़ जाएेंगें क्योंकि इससे नदी में साल भर न्यूनतम जल स्तर बना रहेगा । साथ ही यह भी दावा किया गया है कि पूर्व में उत्तरप्रदेश, जम्मू - कश्मीर एवं हिमाचल प्रदेश के संरक्षित क्षेत्रों में जलविद्युत परियोजनाआें की अनुमति दी गई है । विश्व वन्यजीव कोष (डब्ल्यू.डब्ल्यू.एफ.) भारत के घड़ियाल संरक्षण के समन्वयक ध्रुव ज्योति बसु का कहना है कि यह परियोजना सरिसर्प की आखिरी बसाहट को भी समाप्त् कर देगी । राजस्थान सरकार द्वारा समिति को दिए गए लिखित ज्ञापन की समीक्षा करते हुए उन्होंने कहा है कि `` हीराकुण्ड एवं रामगंगा जलविद्युत परियोजनाआें जैसे अनेक उदाहरण हैं जहां पर निर्माण स्थलों के आसपास घड़ियाव व अन्य जलचरों का समूल नाश हो गया है । बांधों की वजह से नदी के ऊपरी हिस्से में पानी का जमाव हो गया है जो कि युगों से इस भौगोलिक क्षेत्र में निवास कर रहे जलचरों के निवास के लिए अनुपयुक्त हो गया है। इसका प्रमुख कारण है कि ये प्राणी बहने पानी में रहने के आदी हैं । '' बसु का कहना है कि - `मछलियों के आव्रजन हेतु बांध में बनाई जाने वाली सीढ़ियों से भी किसी प्रकार का हल नहीं निकलेगा। क्योंकि बांधों के कारण पानी की गहराई, बहाव व सूर्य की किरणों के भेदन में आए अंतर की वजह से पानी में भौतिक व जैव रासायनिक परिवर्तन आएेंगें । वन्य जीव बोर्ड ने अपनी बैठक में अपने पूर्व निदेशक एम.के.रंजीत सिंह एवं वैज्ञानिक बी.सी. चौधरी का दो सदस्यीय दल का गठन,योजना निर्माण स्थल की जांच हेतु किया । इस दल ने भी अपनी जांच रिपोर्ट में इन परियोजनाआें के खिलाफ अनुशंसा की है । श्री रंजीतसिंह ने बताया कि चंबल पर पिछले ५० वर्ष में निर्मित तीन बांधों के कारण जलचरों की दो प्रजातियंा विलुप्त् हो चुकी है । समिति का निष्कर्ष है कि प्रस्तावित परियोजना से मिलने वाले लाभ विलुप्त् हो जाने वाली जो प्रजातियों की हानि के मुकाबले नगण्य हैं। अतएव प्रस्ताव को अस्वीकृत कर दिया गया । *

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