शुक्रवार, 15 मई 2009

२ आवरण कथा

भूख का भयानकहो जाना
डॉ. सुमन सहाय
विश्व के गरीब देशों में भूख का फैलाव तेजी से हो रहा है । नवीनतम आंकड़ो से पता चलता है कि विश्व में भूख से पीड़ित व्यक्तियों की संख्या में काफी बढ़ोत्तरी हुई है । जनवरी २००९ में यह संख्या ९६.३ करोड़ थी जो इस महीने बढ़कर १ अरब पर पहुंच गई है । इसका अर्थ हुआ विश्व में पिछले तीन महीनों में ४ करोड़ अतिरिक्त लोग भूख से पीड़ित हो गए है । वर्तमान आर्थिक संकट की वजह से खाद्यस्थिति और भी बदतर हुई है क्योंकि इसकी वजह से कीमतों में नाटकीय उछाल आया है और विश्व समुदाय की ओर से ऐसा कोई संकेत अभी तक सामने नहीं आया है कि इस भयावह स्थिति से निपटने के कोई प्रयास निकट भविष्य में सामने आएंगे । सन् २००७ में खाद्य संकट के प्रारंभ होने के पूर्व विश्व भर में गंभीर रूप से भूख से पीड़ित व्यक्तियों की संख्या ८५ करोड़ से कुछ कम थी और यह १९९० के आरंभ से कमोवेश स्थिर बनी हुई थी २००७ और ०८ में अंतरराष्ट्रीय खाद्य एवं तेल के मूल्यों में हुई अचानक वृद्धि से कई देशों में खाद्य दंगे भी हुए जिसके परिणामस्वरूप भूख को मिटाने के शताब्दी विकास लक्ष्य को भी खतरा पैदा हो गया । वैश्विक बाजारों में अनाजों की कीमतों में कमी के बावजूद गरीब देशों में या तो इनकी ऊँची कीमते यथावत बनी हुई हैं अथवा उनमें बढ़ोत्तरी ही हुई है । अनेक अध्ययनों ने यह तो स्पष्ट किया है कि खाद्य पदार्थोंा की ऊँची कीमतों के कारण २००८ में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गंभीर कुपोषण में एकाएक वृद्धि तो दर्ज नहीं की गई है परंतु इसने गरीबों की जीविका और भोजन के वैविध्यता पर लगातार प्रभाव डाला है । यह भी स्पष्ट हो गया है कि वर्तमान खाद्य संकट के फलस्वरूप विकासशील देशों में २५ वर्षोंा से जारी उस प्रवृत्ति पर भी विपरीत प्रभाव पड़ा है जिसके अंतर्गत धीमी गति से ही सही परंतु कुपोषित व्यक्तियों की संख्या के कुल जनसंख्या के अनुपात में गिरावट आ रही थी । नब्बे के दशक के प्रारंभ में भूख से पीड़ित व्यक्तियों का प्रतिशत कुल जनसंख्या के २० प्रतिशत पर पहुंचने के पीछे का कारण कृषि में घटता निवेशथा जिसकी वजह से खाद्य पदार्थोंा के उत्पादन में कमी आई और मूल्यों में वृद्धि हुई । इसी प्रवृत्ति ने २००७ में गंभीर रूप ले लिया । खाद्य वस्तुआें के बढ़ते वैश्विक मूल्य ने कई अन्य समस्याआें को भी जन्म दिया । इसके परिणामस्वरूप घरेलू खाद्य मूल्यों में भी तेजी आई और २००५ में जहां अल्पपोषित व्यक्तियों की संख्या ८५ करोड़ थी वह २००८ से बढ़कर ९६.३० करोड़ हो गई । खाद्य पदार्थ की बढ़ती कीमतें जहां खाद्य निर्यातक देशों के लिए लाभकारी सिद्ध होगी वही दूसरी ओर ऐसे अधिकांश देश जो कि खाद्य पदार्थ खरीदते हैं के लिए वैश्विक स्तर पर बढ़ती कीमतों के परिणामस्वरूप इन देशों के छोटे किसानों, ग्रामीण श्रमिकों और शहरी गरीबों पर अतिरिक्त संकट आ जाएगा । अध्ययनों से यह भी पता चला है कि वार्षिक मंदी के काल में बढ़ते खाद्य मूल्यों के आत्मघाती परिणाम निकलेंगे क्योंकि परिवारों को जिंदा रहने के लिए संघर्ष करना पड़ेगा, जिससे मौसमी कुपोषण की मार में भी अतिरिक्त वृद्धि होगी । इससे भूख और कुपोषण का दुष्चक्र भी प्रारंभ हो जाएगा । ग्रामीण गरीबोंके लिए मंदी का समय और भूख पर्यायवाची हैं । मौसमी मंदी वह समय होता है जबकि जमा किया हुआ अनाज समाप्त् हो जाता है और नई फसल आने में थोड़ा समय होता है और खाद्य पदार्थो के मूल्य में उतार चढ़ाव, संस्थागत ऋण तक पहुंच का न होना और भंडारण की अपर्याप्त् सुविधा के कारण किसानों को बाध्य होना पड़ता है कि वे पूर्व में लिए गए ऋण की अदायगी और फसल को काीड़ों इत्यादि से नष्ट होने से बचाने के लिए अपनी पैदावार (फसल) को कम कीमत पर बेच दें । इसी किसान को कुछ महीनों बाद बाजार में अधिक दाम चुकाकर पुन: अनाज खरीदना पड़ता है । विकासशील विश्व में हर तरफ गरीब मौसमी वंचन के इस वार्षिक चक्र का शिकार बने रहते हैं । खाद्य पदार्थोंा की बढ़ती कीमतों का सामना वैश्विक तौर पर गरीब परिवार पहले तो भोजन की गुणवत्ता को कमतर करके और बाद में उसकी मात्रा घटा कर करते हैं । भोजन की मात्रा को बनाए रखने के लिए उन्हें फलियों, सब्जियंा बेच देना पड़ती है और इससे उनके शरीर में न केवल पोषक तत्वों की कमी हो जाती है बल्कि उनका प्रतिरोधी तंत्र भी कमजोर हो जाता है । यह स्थिति अगर दीर्घावधि तक चलती है तो वजन में कमी आती है और व्यक्ति कुपोषण का शिकार हो जाता है । खाद्य असुरक्षा कृषक परिवारों को नुकसानदेह और स्थायी हानि वाले तरीके अपनाने जैसे संपत्ति या पशुआें को बेचना या ऊँची ब्याज दर पर ऋण लेना या अपनी भूमि और भविष्य की पैदावार को रेहन या गिरवी रखने का जोखिम उठाने को बाध्य कर देती है । इस तरह से ग्रामीण गरीब अपने आज के लिए अपने भविष्य को दाव पर लगाने की जीविका पर भी असर पड़ता है । अच्छी पैदावार के बावजूद उसकी सामान्य स्थिति में सुधार नहीं आता क्योंकि उसे अपना पिछला घाटा पूरा करना होता है । अतएव परिवार पर भविष्य के प्रति जोखिम बना ही रहता है । इस बात में कोई शक शुबहा नहीं है कि वैश्विक खाद्य मूल्य अभी भी चरम पर नहीं पहुंचे हैं । इससे भूख और कुपोषण की वर्तमान स्थिति पर और भी गंभीर प्रभाव पड़ेगा । इतना ही नहीं यदि इसे समाप्त् करने के तुरंत प्रयत्न नहीं किए गए तो वैश्विक संकट खड़ा हो जाएगा । बिगड़ैल और लापरवाह पश्चिम को समझना चाहिए की अंतहीन भूख की इस समस्या से पैदा हुई राजनीतिक अस्थिरता से वह भी बच नहीं पाएगा । हम वैश्विक भूचाल के मुहाने पर खड़े हैं और भूख की इस त्रासदी और खौफनाक स्थिति से बाहर आने के लिए तत्कालिक मदद की आवश्यकता है । इस दिशा मेंअब तक की वैश्विक प्रतिक्रिया अच्छी नहीं रही है । इस समस्या से मिशनरी भावना से ही निपटा जा सकता है । विश्व खाद्य सुरक्षा हेतु जून २००८ में हुए एक उच्च् स्तरीय सम्मेलन में संयुक्त राष्ट्र संघ समेकित प्रयास (यूएनसीएफए) का अनुमान था कि वैश्विक खाद्य एवं पोषण सुरक्षा की बहाली के लिए प्रतिवर्ष २५ से ४० अरब अमेरिकी डालर की आवश्यकता है । वहीं संरक्षणवादी अनुमानों के अनुसार प्रभावशाली ढंग से भूख से विश्वव्यापी संघर्ष के लिए अनिवार्य न्यूनतम पैकेज हेतु प्रतिवर्ष ६० से ७० अरब अमेरिकी डालर की आवश्यकता होगी । उच्च्स्तरीय सम्मेलनों के बावजूद वैश्विक नेताआें ने खाद्य समस्या से निपटने के लिए मात्र १२.३ अरब डालर के अनुदान के लिए हामी भरी और उसमें से अब तक केवल एक अरब डालर का दान ही प्राप्त् हो पाया है । हाल के इतिहास में किसी अन्य वैश्विक अपील में वादा किए गए और वास्तविक रूप से प्राप्त् धन में कभी भी इतना अंतर नहीं दिखाई पड़ा था । इन निराशाजनक राशि ने एक बार पुन: दर्शा दिया है कि वैश्विक कार्यसूची में भूख कहीं नहीं है और आज भी अंतराष्ट्रीय समुदाय अस्थायी खाद्य मदद देकर मात्र हस्तक्षेप करने का ही इच्छुक है । इससे यह खतरनाक संदेश भी जा रहा है कि अमीर देश भूख के प्रति गंभीर नहींहै । वैश्विक भूख से निपटने के लिए गंभीर प्रयत्न और प्रभावशील हस्तक्षेप हेतु पर्याप्त् धन और अंतराष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता है । सिविल सोसाईटी के अंतरराष्ट्रीय दबाव समूहों का कर्तव्य है कि वे राजनीतिक नेताआें और नीति निर्धारकों का ध्यान इस ओर दिलाते रहें कि भूख और कुपोषण का भार सभी प्रकार के विकास पर पड़ेगा और इसके परिणामस्वरूप वैश्विक स्तर पर राजनीतिक अस्थिरता भी पैदा होगी । अतएव वैश्विक नेतृत्व के लिए आवश्यक है कि वह भूख से निपटने के लिए तत्काल प्रभाशाली एवं सामुहिक प्रयासों की गंभीर तात्कालिक आवश्यकता को समझे । यह आज के समय की नैतिक अनिवार्यता भी है । *** जलस्तर गिरने से ताज की सुरक्षा को खतरा आगरा में यमुना नदी का जल स्तर काफी हद तक गिर जाने से विश्वप्रसिद्ध ताज महल की सुरक्षा के लिए हाल ही में तैयार की गई नीतियां अधर में पड़ती दिखाई दे रही हैं । इस नीति के तहत ताज महल के पीछे के हिस्से में पुलिस को रोजाना मोटरबोट के जरिए नश्त करना है । इसका कारण यह है कि इस क्षेत्र में रोजाना हजारों पर्यटका आते हैं । पानी का स्तर काफी कम होने के कारण मोटर बोट ताज के पीछेे के हिस्से तक पहुंच नहीं पा रही है । आगरा के जिलाधिकारी आशीष गोयल ने बताया कि उन्होंने सुरक्षा का जायजा लेेने के लिए ताज के पीछे के हिस्से का दौरा करने का फैसला किया था लेकिन पानी कम होने के कारण इस काम के लिए विशेष तौर पर खरीदी गई मोटर बोट नियत स्थान तक पहुंच ही नहीं सकी । अधिकारीयों ने बताया कि पानी का स्तर तीन फुट ही रह गया है जबकि इस बोट के लिए कम से कम पांच से छह फुट पानी की जरूरत होती है । मोटरबोट के ताज के पीछे के हिस्से तक नहीं पहुच पाने के कारण इस स्मारक की सुरक्षा को खतरा हो सकता है।

कोई टिप्पणी नहीं: