प्रदूषण मापने का नया पैमाना
सुमन नारायणन/संजीव कांचन
केन्द्रीय सरकार ने यह तय करने के लिए कि किन नए स्थानों पर नई औद्योगिक इकाई लगाने की अनुमति दी जा सकती है और किन इलाकों में तत्काल सफाई की आवश्यकता है, का पता लगाने के लिए प्रदूषण सूचकांक जारी किया है । इस परिपूर्ण पर्यावरण प्रदूषण सूचकांक ने नई प्रक्रिया का इस्तेमाल करते हुए भारत में प्रदूषण फैलाने वाली औद्योगिक इकाईयों के ८८ क्षेत्रों को श्रेणीबद्ध कर इंगित किया है । केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के अध्यक्ष एस.पी.गौतम का कहना है कि दुनिया में यह अपने तरीके का पहला सूचकांक है । हालांकि पर्यावरणीय गुणवत्ता की निगरानी करना प्रदूषण नियंत्रण बोर्डोंा की सतत प्रक्रिया है । परंतु यह समावेशी और किसी ढांचे के अंतर्गत संगठित नहीं था जिससे कि औद्योगिक क्षेत्रों के उनके प्रदूषण स्तर के हिसाब से श्रेणीबद्ध किया जा सके । इस सूचकांक को पिछले तीन महीनों में केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड एवं विभिन्न आईआईटी ने सम्मिलित रूप से विकसित किया है । हालांकि केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय एवं सीपीसीबी ने इसकी तारीफ की हे लेकिन अभी भी इसमें और सुधार की गुंजाइश है जैसे इसमें पहली कमी यह है कि २४ दिसम्बर को घोषित ८८ सर्वाधिक प्रदूषित इकाईयों की सीमा रेखा को रेखांकित नहीं किया है । उदाहरण के लिए सूची में अहमदाबाद प्रदूषित बताया गया है परंतु यह स्पष्ट नहीं है कि इस शहर, जिले या जिले में स्थित औद्यौगिक क्षेत्र में से कौन सा क्षेत्र सर्वाधिक प्रदूषित है । मंत्रालय द्वारा अत्यंत प्रदूषित क्षेत्रों में औद्यौगिक इकाईयों की स्थापना रोकने के लिए इलाकों को परिभाषित करना आवश्यक है । दूसरी कमी है, कई गंभीर प्रदूषित क्षेत्र जैसे छत्तीसगढ़ में रायगढ़ एवं ओडिशा में जोड़ा और बारबिल इस सूचि में ही नहीं है लेकिन पानी एवं भूमि संबंधी आंकड़ों में सुधार की आवश्यकता है । केन्द्रिय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के एक अधिकारी का कहना है कि यह तो शुरूआत है । साथ ही मूल्यांकन अथवा वरीयता सूची की प्रक्रिया में भी सुधार किया जाएगा । इसी के साथ सीमांकन एवं प्रदूषण आकलन का भी विस्तृत अध्ययन किया जाएगा । औद्योगिक क्षेत्रौं की पहचान एवं वरियता का आंकलन प्रत्येक दो वर्षो में किया जाएगा । नई प्रणाली के अंर्तगत निम्न बातों का ध्यान रखते हुए औद्योगिक क्षेत्रों को श्रेणीबद्ध किया गया है । ये है प्रदूषण का स्त्रोत, प्रदूषण की व्यापकता और उसकी गहनता एवं वर्गीकरण, प्रदूषण नियंत्रण के उपाय परंतु औद्योगिक क्षेत्रों के निकट रहने वाले व्यक्तियों के स्वास्थ्य संबंधी आंकड़े तो अभी भी दुर्लभ है । राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डो की इतनी भी क्षमता नहीं है कि वे प्रदूषण के स्तर की मात्रा स्वास्थ्य के संदर्भ में ही निरंतर निगरानी कर सकें । इस सूचकांक की निर्माण प्रक्रिया या प्रारूप बनाने वाले आईआईटी के एक प्रोफेसर ने स्वीकार किया है कि अगर सरकार को प्रदूषण निगरानी की अपनी क्षमता में वृद्धि करना होगी । उनका कहना है हमे नियमित स्वास्थ्य निगरानी की आवश्यकता है । अब सूचकांक राज्य प्रदूषण निवारण बोर्डो से प्राप्त् आंकड़ों के अतिरिक्त, मीडिया रिर्पोटस, शोध संगठनोंं, कानूनी याचिकाआें एवं अन्य सरकारी एवं गैर सरकारी संगठनों से प्राप्त् आंकड़ो का भी प्रयोग करेंगे । मंत्रालय ने घोषणा की है कि वह दिल्ली स्थित शोध समूह भारतीय सार्वजनिक स्वास्थ्य फाउंडेशन से कहेगा कि वह ८८ क्षेत्रों में सार्वजनिक स्वास्थ्य का विश्लेषण कर उसकी रिर्पोर्ट प्रस्तुत करे । सरकार ने स्वीेकार किया है यह नई सूची उन २४ गंभीर प्रदूषित क्षेत्रों का स्थान लेगी जो कि बजाए वैज्ञानिक तरीकों के राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डो के आंकलन पर आधारित थी । केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने प्रस्तावित किया है कि सभी ८८ औद्योगिक क्षेत्रों में अत्यधिक प्रदूषण फैलाने वाली इकाईयां १७ श्रेणियों में बंटी हुई होगी और ५४ औद्योगिक इकाईयों को लाल श्रेणी की खतरनाक, हानिकारक, भारी और विशाल औद्योगिक इकाइयों में बाटा जाए । हालांकि अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि मंत्रालय ने इन इलाकों का चयन किस आधार पर किया है । मंत्रालय ने यह भी घोषणा की है कि वह अगले बजट में साफ-साफ कोष का भी निर्माण करेगी । परंतु उसने यह स्पष्टीकरण नहीं दिया है कि धन कहां से आएगा और क्या प्रदूषणकर्ता को भी भुगतान के लिए कहा जाएगा । प्रदूषण सूचकांक अभी तो सैद्धांतिक स्तर पर ही है । जब तक इसे पर्यावरण सुरक्षा अधिनियम के तहत अधिसूचित नहीं किया जाता, तब तक इसे लागू भी नहीं किया जा सकता है । ***
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