देश में ८ सौ विश्वविद्यालयों व ३५ हजार कॉलेजो की जरूरत
मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल ने कहा है कि देश में १८-२४ वर्ष की आयु के महज १२.४ फीसदी विद्यार्थी ही विश्वविद्यालयों में प्रवेश लेते है और इस दर को ३० फीसदी तक लेते जाने के लिए हमें आने वाले वर्षो में करीब ८०० विश्वविद्यालयों और ३५ हजार कॉलेजों की जरूरत होगी । श्री सिब्बल ने कहा कि २१ वी सदी भौतिक संपदा की नहीं, बल्कि बौद्धिक संपदा की है यह बौद्धिक संपदा स्कूलों और विश्वविद्यालयों में विकसित होती है हमें इसी को ध्यान में रखते हुए युवाआें को विकसित करना होगा । श्री सिब्बल ने कहा कि देश में १८ से २४ की आयु के हर १०० में से महज़१२.४ फीसदी विद्यार्थी ही विश्वविद्यालयों में प्रवेश लेते है । इस मामले में विश्व की औसत दर २३ फीसदी और विकसित देशों की दर ४० फीसदी है । अगर भारत को ३० फीसदी का लक्ष्य हासिल करना है तो हमे आने वाले वर्षो में ४८० विश्वविद्यालयों और २२.००० कॉलेजों है हाल ही में जारी हुई सभी के लिए शिक्षा विषयक यूनेस्को की वैश्विक निगरानी रिपोर्ट में आगाह किया गया है कि वित्तीय संकट के चलते देश के सबसे गरीब देशों के लाखों बच्चें के शिक्षा से वंचित हो जाने का खतरा है दुनिया भर में ७.२ करोड़ बच्चें ने स्कूल छोड़ दिया है और इसके लिए आर्थिक मंदी और बढ़ती गरीबी जिम्मेदार है ।पॉलिश वाला चावल मधुमेह का बड़ा कारण देश में बाजारों में चावल के चमचमाते ब्राडों के विज्ञापनों को देख कहीं आपका दिल मचल तो नही रहा । अगर ऐसा है, तो आप के लिए एक चेतावनी है । स्वास्थ्य शोध की देश की सबसे बड़ी सरकारी संस्था इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) के जर्नल के मार्च अंक में छपे ताजा शोध में कहां गया है कि भारत के दुनिया की मधुमेह राजधानी बनने के पीछे पॉलिश अनाज, चमकीले चावल का बड़ा हाथ हो सकता है । शोध में कहा गया है कि भारत में अन्न मुख्य भोजन रहा है । हम जो कुल केलौरी लेते है, उसमें कार्बोहाइड्रेट की मात्रा काफी होती है । यह भी सही है कि यह मात्रा मधुमेह जैसी क्रोनिक बीमारियों को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशा-निर्देशों में दी गई सलाह से बहुत अधिक नहीं है । फिर भी इसी अवधि में देश में मधुमेह मरीजों की संख्या शहरी क्षेत्रों में ८ प्रतिशत से बढ़कर १६ प्रतिशत हो जाना चौकाने वाला है । शोध वैज्ञानिकों का कहना है कि इसका संबंध पॉलिश्ड चावल के बढ़ते प्रयोग से हो सकता है । वैज्ञानिकों ने इस निष्कर्ष का आधार चेन्नई में किए गए एक अध्ययन को बनाया है । इसके अनुसार चेन्नई में पॉलिश किए हुए चावल का अधिक सेवन मधुमेह का बड़ा कारण है चावल को रिफाइंड करने की प्रक्रिया में फाइबर, विटामिन, मैगनीशियम, लिगानंस, फाइटो एस्ट्रोजेंस और फाइटिक अम्ल जैसे वे पदार्थ गायब हो जाते है जो मधुमेह से पदार्थ जो गायब हो जाते है,जो मधुमेह से रक्षा करने वाले होते है । राष्ट्रीय शहरी मधुमेह अध्ययन में चावल की अधिक खपते वाले शहर हैदराबाद, चैन्नई और बेंगलुरू में गेहूँ की ज्यादा खपत वाले दिल्ली, कोलकाता और मुंबई की तुलना में मधुमेह होने की दर अधिक है ।सबसे अधिक सिंचित क्षेत्र फिर भी उत्पादन कम विश्व में सबसे अधिक सिंचित क्षेत्र भारत में होनेे के बावजूद यहां विकसित देशों की तुलना में प्रमुख फसलों की उत्पादकता कम है । अमेरीका, ब्रिटेन रूस, मिस्त्र, चीन, ब्राजील और ऑस्ट्रेलिया में प्रति हेक्टेयर में प्रति हेक्अेयर चावल, गेहुँ, मक्का, मंूगफली और गन्ना की जितनी पैदावार होती है उसकी तुलना में इन फसलों की पैदावार यहीं नहीं होती । सराकरी आंकड़ो के अनुसार वर्ष २००६ में इन देशों की तुलना में सबसें अधिक क्षेत्र में धान की खेती की गई लेकिन चावल की पैदावार प्रति हजार हैक्टेयर ३१२४ किलोग्राम हूई, वही दूसरी और अमरीका में प्रति हेक्टेयर चावल का उत्पादन ७९६४, रूस में ४३२४, मिस्त्र १०५९, चीन में ६२६५ और ब्राजील में ३८६८ किलोग्राम हुआ था । गेंहूँ के प्रति हेक्ट्रेयर उत्पादन में भारतकी स्थिति आस्ट्रेलिया और रूस की तुलना में थोड़ी अच्छी है जबकि अमरीका के आसपास है । आस्ट्रेलिया में गेहूँ का उत्पादन प्रति हैक्टेयर ८८२ और रूस १९५३ किलोग्राम है वही भारत मेेंे यह २६१९ किलोग्राम है । अमेरिका में गेहूँ कर पैदावार प्रति हैक्टेयर २८२५ किलोग्राम है जबकि ब्रिटेन में ८०३, मिस्त्र में ६४५५ और चीन में ४४५५ किलोग्राम है । विश्व में मक्का के उत्पादन में सबसे बेहतर स्थिति मिस्त्र की है जहां प्रति हैक्टेयर ७८८७ किलोग्राम इसकी उपज ली जाती है जबकि भारत मेंे यह १९३८ किलोग्र्राम ही है । अमरीका में ३६२९, रूस में ५८६३, चीन में ५३६५ और ब्राजील में ३३८३ किलोग्राम प्रति हैक्टकयर मक्का की पेदावार होती है । मुुंगफली के उत्पादन में भारत की स्थिति अन्य देशों की तुलना में काफी कमजोर है यहां इसकी पेदावार प्रति हैक्टेयर केवल ८५९ किलोग्राम है अमरीका में यह प्रति हैक्टेयर २८९६४, चीन में ३११८ और ब्राजील में २२५१ किलोग्राम है गन्नाके उत्पादन में चुनिंदा देशों में मिस्त्र सबसे बेहतर स्थिति में है । जहां प्रति हैक्टेयर १२०८८७ किलोग्राम इसकी पेदावार जी जाती है । भारम में इसकी उपज प्रति हैक्टेयर ६६९४५ किलोग्राम है । अमरीका में यह ७३८३३ चीन में ८२५२८ और ब्राजील में ७३९९६ किलोग्राम है सरकार का मानना है कि कुछ फसलों की कमी उत्पादकता का मुख्य कारण जमीन के छोटे टुकड़ों में होना है । अधिकतर ऐसे जमीन सीमांत और छोटे किसानों के बीच है जो संसाधन विहीन है और उन्नत कृषि पद्धतियों को वहन करने में सक्षम नही है देश में कृषि भूमि की उत्पादकता में वृद्धि के लिए राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन, राष्ट्रीय बागवानी मिशन तथा राष्ट्रीय कृषि विकास योजन के तहत अनेक कार्यक्रम चलाये जा रहे ्रृहै । वर्ष २००५-०६ की तुलना में वर्ष २००७-०८ के दोरान सिंचित क्षेत्रा में भी वृद्धि हूई है ।चंद्रयान-१ को चांद पर दिखी सुरंगेृ देश के पहले चंद्र अभियान चंद्रयान-१ को चांद पर खोखली सुरंगे नजर आई है । इनका निर्माण ज्वालामुखी की गतिविधियों से हुआ है । इनका इस्तेमाल मानव बस्तिया बसाने में हो सकता है । यह खुलासा इस यान से मिले आंकड़ों के विश्लेषण से हुआ है ।भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरों) के स्पेस एप्लीकेशन सेंटर, अहमदाबाद के निर्देशक डॉ. आरआरनवलगुंड ने यह जानकारी दी । इससे पहले चंद्रयान ने चांद के ध्रुवीय क्षेत्र में हाइड्रोक्सिल्स तथा जल कणों के रूप में पानी की मौजुदगी का खुलासा किया था । श्री नवलगुंड के मुताबिक, चंद्रयान-१ में लगें टेरैन मैपिेंग कैमरा से चांद पर खोखली सुरंगों की मौजुदगी दिखी है । ज्वालामुखी से निकले लावा के प्रवाह से चांद की सतह से नीचे ये सुरंगे बनी । उन्होंने कहा, भविष्य में इन सुरंगों का इस्तेमाल बस्तियां बनाने में हो सकता है । फिर भी इस दिशा में और शोध की जरूरत है । श्री नवलगुंड ने बताया कि आंकड़ो से चांद की सतह पर नई प्रकार की चट्टानों का खुलासा होता है । इनमें प्रचुर खनिज संपदा छिपी हो सकती है । इसरों सेटेलाइट सेंटर के निदेशक डॉ. टीके एलक्स ने बताया कि अंतरिक्ष एजेंसी के वैज्ञानिको ने लूनर टोपोलॉजी मैप बनाना शुरू कर दिया है । यह नक्शा चंद्रयान से भेजे गए आकड़ों के आधार पर बनाया जा रहा है इसरों ने कहा है कि अंतरिक्ष मेंे चीन का कचरा बेहद खतरनाक है । यह सक्रिय उपग्रहो ंको नुकसान पहुंचा सकता है । इसरो के अध्यक्ष श्री राधाकृष्णन ने बताया कि जनवरी २००७ में चीन ने अंतरिक्ष हथियार का इस्तेमाल करते हुए अपना एक उपग्रह नष्ट कर दिया । फिर भी चुनौती केवल देश के लिए नहीं बल्कि पूरी दुनिया भर के लिए है । इसकी वजह कचरा फैलाना है राधाकृष्णन के मुताबिक, चीन की कारवाई से अंतरिक्ष में हजारों कलपुर्जे बिखर गए है । अत: हमें सावधान रहना चाहिए क्योंकि ये सक्रिय उपग्रहो से टकरा सकते है । हम इस अंतरिक्ष कचरे के भारतीय उपग्रहों से टकराने की आकांश के मद्देनजर लगातार निगाह रख सकते है हमें अपने उपग्रहों का सुरक्षित परिचालन सुनिििचशत करना है । कंपनी की कारगुजारियों पर पर्दा डाल रही सरकार नर्मदा बचाआें आंदोलन (एनबीए) का कहना है कि महेश्वर बांध परियोजना के मामले में राज्य सरकार कंपनी की कारगुजारियों पर पर्दा डाल रही है । मुख्यमंत्राी शिवराजसिंह चौहान का वह पत्र तथ्यहीन आधारहीन है , जो उन्होने प्रधानमंत्री को लिखा है । सरकार को केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश की पहल का स्वागत करना चाहिए , क्योंकि उन्होने बांध के सुरते-हाल को देखते हुए ही विस्थापितों के हित में फैसला लिया । एनबीए के कार्यकर्ता आलोक अग्रवाल और चितरूप पालित ने कहा कि सरकार को महेश्वर बांध पर श्वेत पत्र जारी करना जारी करना चाहिए । असलियत यह है कि सरकार कंपनी का पक्ष ले रही है ।
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