प्राकृतिक गैस से बदलते अमेरिकी समीकरण
भारत डोगरा
गैस परियोजना में होने वाले बदलावों में अभी कई अटकले हैं । अमेरिका की आदत है कि वह अपनी रणनीति को महान उद्देश्यों से जोड़ कर प्रस्तुत करता है । अत: वह इस परियोजना को भी मध्य एशिया व दक्षिण एशिया को नजदीक लाने व भारत-पाकिस्तान को नजदीक लाने जैसे शानदार प्रोजेक्ट के रूप में प्रस्तुत करेगा ।
मध्य एशिया से पाकिस्तान और भारत को गैस आपूर्ति हेतु बनने वाली पाइपलाइन परियोजना के न केवल आर्थिक-सामाजिक आशय है बल्कि इसके राजनीतिक आशय भी अत्यंत महत्वपूर्ण और सामयिक है । इस परियोजना की आड़ में अफगानिस्तान और पश्चिम एशिया में अमेरिका और नाटो देश अपना प्रभाव बढ़ा सकते हैं । वहीं दूसरी ओर रूस और चीन अपनी घटती भूमिका को लेकर आक्रामक रूख अपना सकते हैं, जिसका सीधा असर भारत की संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता की मांग पर पड़ सकता
है ।
जहां एक ओर अफगानिस्तान के संदर्भ में व्यापक चर्चा यह है कि अमेरिका व नाटो की सेनाएं यहां से निकट भविष्य में वापसी का रास्ता तलाश कर रही हैं, वहीं अमेरिका व नाटो देश यहां एक अन्य तरह की अधिक स्थाई भूमिका भी तलाश रहे हैं । यह स्थाई भूमिका मध्य एशिया के गैस व खनिज भंडार के दोहन से जुड़ी है ।
इस नई भूमिका के कुछ संकेत १६०० कि.मी. की तर्कमेनिस्तान-अफगानिस्तान-पाकिस्तडद्धॅकमेंर्र्ण्ीं%ॅडीण्-ईर्र्त्र्गीण्ीं%ॅडीण्-र्र्त्त्ीकीं%ॅड पाइपलाइन परियोजना पाइपलाइन दौलताबाद (तुर्कमेनिस्तान) के समृद्ध भंडारोंकी गैस को भारत व पाकिस्तान तक पहुंचाएगी । यह संभावना बनी हुई है कि पाइपलाइन के अन्य गैस भंडारों को भी इससे जोड़ दिया जाए । फिलहाल इसका मार्ग कंधार और मुल्तान होते हुए फाजिल्का (भारत) मे पहुंचने का है । जानकार सूत्रोंके अनुसार क्वेटा (पाकिस्तान ) में एक उपशाखा ग्वादर बंदरगाह की ओर भी बढ़ सकती है, जहां से गैस भंडारों को आगे यूरोप या दुनिया के अन्य देशों तक भी समुद्री मार्ग से भेजा जा सकता है ।
इतना ही नहीं, जब इतनी बड़ी पाइपलाइन विकसित होगी तो उसके लिए सुरक्षा का पुख्ता इंतजाम होगा । इसी के साथ-साथ अफगानिस्तान के अन्य मूल्यवान खनिजोंको भी बंदरगाह तक सड़क मार्ग से पहुंचाने की तैयारी हो सकती है । इस तरह यह पाइपलाइन परियोजना गैस के साथ अन्य खनिजोंके निर्यात में सहायता भी कर सकती है ।
इस समय तापी परियोजना अमेरिका की छत्रछाया में फल-फूल रही है व इसकी आरंभिक वित्तीय व्यवस्था एशियन
विकास बैंक की ओर से होने की संभावना है । एक समय सोवियत संघ व बाद में रूस का नाम भी इस परियोजना से जुड़ा था । कुछ समय पहले तक रूस ने इसमें दिलचस्पी दिखाई है । पर संयुक्त राज्य अमेरिका के प्रभाव में इसका नियोजन होने के बाद रूस फिलहाल इस परियोजना से बाहर है । रूस के लिए एक अन्य झटका यह है कि मध्य एशिया की गैस अब रूस की मध्यस्थता के बिना ही यूरोप तक पहुंच पाएगी । इस तरह तेल व गैस व्यापार व कीमतों पर उसकी पकड़ ढीली हो जाएगी ।
चीन भी अमेरिका की छत्रछाया में पल रही इस परियोजना से प्रसन्न नहीं है क्योंकि इससे क्षेत्र में अमेरिका का असर बहुत बढ़ सकता है । चीन ने पाकिस्तान के नए बंदरगाहों में काफी निवेश भी किया है । यदि उनका उपयोग अमेरिका की छत्रछाया में हो रहे व्यापार के लिए हो तो चीन निश्चय ही इससे नाराज होगा ।
फिलहाल अमेरिका के लिए यह परियोजना एक बड़ी कूटनीतिक जीत भी साबित हो सकती है व क्षेत्र की खनिज, गैस व तेल संपदा पर उसकी कंपनियों का नियंत्रण भी बढ़ सकता है । इस समय अमेरीकी व नाटो सेना की ओर से करजई को तालिबान के कुछ गुटोंसे समझौते के प्रयासों को समर्थन बढ़ने लगा है । इसके पीछे एक सोच यह भी है कि कम से कम कुछ लड़ाकू संगठनोंको अपनी ओर किया जा सके ।
तापी परियोजना का एक बड़ा हिस्सा अफगानिस्तान में हेरात, हेलमंत और कंधार जैसे संवेदनशील क्षेत्रों से गुजरने वाला है । इस क्षेत्र में गैस पाइपलाइन की सुरक्षा सबसे बड़ी चुनौती है । यदि इसमें उपशाखाएं जुड़ती हैं व अन्य खनिजों के परिवहन का कार्य जुड़ता है तो यह चुनौती और भी बड़ी होगी । इस सुरक्षा कार्य के लिए काफी पैसा भी उपलब्ध होगा । केवल मूल तापी पाइपलाइन परियोजना को देखें तो गैस गुजरने की ट्रांसिट फीस से अफगानिस्तान को प्रतिवर्ष ३० करोड़ डालर उपलब्ध हो सकते हैं ।
अत: एक योजना यह हो सकती है कि साल दर साल मिलने वाले इस धन के एक हिस्से का उपयोग कर कुछ लडाकुआें को इसकी सुरक्षा कार्य से जोड़ दिया जाए । पर निर्णायक भूमिका उनके हाथ में नहीं दी जा सकती है अत: नाटो इस नई पाइपलाइन की सुरक्षा की भूमिका में उतर सकता है व इसके लिए वह कुछ लड़कुआेंका सहयोग प्राप्त् करना चाहेगा । लेकिन यह सब नियोजन गड़बड़ भी हो सकता है । कुछ समस्याएं चीन और रूस की ओर से आ सकती हैं। तालिबान के बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता कि उन्हें दी गई सीमित भूमिका से आगे निकलकर वे कब पूरी सत्ता हथियाने का प्रयास करने लगेंगे ।
यदि केवलआर्थिक हितों व खनिज दोहन को ध्यान में रखकर तालिबान से समझौते किए जाते हैं तो इनका मानवाधिकार व विशेषकर महिला अधिकारों पर बहुत प्रतिकूल असर पड़ सकता है । जहां एक ओर तालिबानों की ताकत बढ़ेगी वहीं दूसरी ओर पूर्व में उनका बहादुरी से विरोध करने वाले व्यक्तियों व समुदायों पर अत्याचार भी हो सकता है । महिलाआें के अधिकार छीने जा सकते हैं व विरोध करने पर उन पर भीषण अत्याचार भी हो सकते हैं ।
अत: तापी परियोजना के पैटर्न पर होने वाले बदलावों में अभी कई अटकले हैं । अमेरिका की आदत है कि वह अपनी रणनीति को महान उद्देश्यों से जोड़ कर प्रस्तुत करता है । अत: वह इस परियोजना को भी मध्य एशिया व दक्षिण एशिया को नजदीक लाने व भारत-पाकिस्तान को नजदीक लाने जैसे शानदार प्रोजेक्ट के रूप में प्रस्तुत करेगा । लेकिन इस तरह की किसी व्यापक सफलता को प्राप्त् करने के लिए अभी बहुत से अन्य प्रयास करने होंगे व केवल एक परियोजना के माध्यम से इतनी पेचीदी समस्याएं नहीं सुलझ सकती हैं । ***
1 टिप्पणी:
विचारणीय पोस्ट, हार्दिक बधाई।
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हंसी का विज्ञान।
ज्योतिष,अंकविद्या,हस्तरेख,टोना-टोटका।
सांपों को दूध पिलाना पुण्य का काम है ?
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