मंगलवार, 9 अप्रैल 2013

पर्यावरण समाचार
मलिन बस्तियों में रहते हैं सात करोड़ भारतीय
    भारत के शहरों में करीब सात करोड़ आबादी मलिन बस्तियों में रहने को मजबूर हैं । हालांकि, इन बस्तियों में रहने वाले ९० फीसदी लोग बिजली का इस्तेमाल करते हैं  और दो तिहाई से ज्यादा के पास टीवी है । देश में अभी तक के अपनी तरह  के पहले सर्वे में इसका खुलासा हुआ है । भारत के महापंजीयक द्वारा तैयार इस रिपोर्ट में आवासों का लेखा-जोखा भी पेश किया गया है ।
    केन्द्रीय आवास एवं शहरी गरीबी उन्मूलन मंत्री अजय माकन ने पिछले दिनों एक रिपोर्ट जारी करते हुए झुग्गी झोपड़ियों के उद्धार के लिए ठोस कदम उठाने का संकेत दिया  है । उन्होनें कहा कि सरकार इन बस्तियों में कोई भेदभाव किए बिना समग्र विकास की योजना बनाएगी । इस मौके पर केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री आरपीएन सिंह और महापंजीयक सी. चन्द्रमौली भी मौजूद थे ।
    रिपोर्ट के आधार पर माकन ने कहा कि २०११ की जनगणना के अनुसार देश में १.७३ करोड़ आवास मलिन बस्तियों में है । इनमें लगभग ७० फीसदी आबादी महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश के शहरों में है । वर्ष २००१ में शहरी आबादी का तकरीबन एक चौथाई (२३.५ फीसदी) हिस्सा झुग्गी-झोपड़ी में रहता था, जिससे छह प्रतिशत की कमी आई है ।
    रिपोर्ट के अनुसार इन बस्तियों के ७० फीसदी घरों में रहने वालों का मालिकाना हक है जबकि शेष किराए पर लगाया गया है । ९० फीसद से ज्यादा घरों में बिजली है, ६६ फीसद घरों में शौचालय है । यानी हर तीसरे घर में परिसर के अंदर शौचालय नहीं है ।
    सफाई को जो भी हो, ७० फीसदीं घरों में टेलीविजन है तो १० फीसदी घरों में कम्प्यूटर भी है । लगभग ६४ फीसदी घरों में मोबाइल हैं तो ४.८ फीसदी पर ऐसे भी है, जहां मोबाइल और लैंडलाईन दोनों   हैं । श्री चन्द्रमौली ने बताया कि यह सर्वे उन्हीं शहरों में कराए गए जहां नगर निगम या इस तरह के निकाय कार्यरत है ।

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