मंगलवार, 9 अप्रैल 2013

कृषि जगत
 फसलों को पाले से कैसे बचाएं
डॉ. किशोर पंवार

    बदलते मौसम का सर्वाधिक प्रभाव जीव-जन्तुआेंपर ही पड़ता  है । चलने-फिरने वाले जीव तो जैसे-तैसे  अपने बिलों में, घोसलों में दुबककर एवं घरों में घुसकर तेज धूप, घनघोर बारिश और कंपकपा देने वाली सर्दी से बच जाते हैं परंतु अचल हरे-भरे जीवों पर ऐसे में क्या गुजरती है, कभी   सोचा है आपने ?
    जी हां, हम अपने आसपास में उगे बाग-बगीचों और खेतों में उगी उन फसलों की ही बात कर रहे हैं जो मौसम की मार में बेहाल हो रही हैं । फसलों की पत्तियां झुलस रही है और कहीं-कहीं उनके पत्तों पर बर्फ भी जम रही है । पूरे उत्तर भारत में सर्दी का प्रकोप जारी है । ठंड ने पिछले कई सालों  का रिकार्ड तोड़ दिया है । कहीं-कहीं रात का तापमान २ से ५ डिग्री सेल्सियस तक दर्ज किया गया है । ऐसी ठंड में पाला पड़ने की संभावनाएं बढ़ जाती है । पाला पड़ने से चना, टमाटर एवं आलू की फसलों को ज्यादा नुकसान होता  है । आइए देखें कि पाला क्या है ? और पत्तियां क्यों और कैसे प्रभावित होती हैं ?
      पाला दरअसल दो तरह का होता है । पहला एडवेक्टिव और दूसरा रेडिएटिव अर्थात विकिरण आधारित । एडवेक्टिव पाला तब पड़ता है जब ठंडी हवाएं चलती है । ऐसी हवा की परत एक-डेढ़ किलोमीटर तक हो सकती है । इस अवस्था में आसमान खुला हो या बादल हों, दोनों परिस्थितियों में एडवेक्टिव पाला पड़ सका है ।
    परन्तु जब आकाश बिलकुल साफ हो और हवा शांत हो । तब रेडिएटिव प्रकार का पाला गिरता  है । जिस रात पाला पड़ने की आंशका व्यक्त की जाती है उस रात बादल पृथ्वी के कम्बल की तरह काम करते हैं जो जमीन से ऊपर उठने वाले संवहन ताप को रोक लेते हैं । ऐसे में बहती हवाएं इस रोकी गई हवा से मिल जुलकर तापमान एक समान कर देती हैं । और शांत हवाएं विकिरण ऊष्मा को पृथ्वी से अंतरिक्ष में जाने से रोक देती है ।
    ऐसे में हवा के नहीं चलने से एक इनवर्शन परत बन जाती   है । इनवर्शन यानी एक ऐसी वायुमंडलीय दशा जो सामान्य दिनों की तुलना में उल्टी हो । सामान्य दशा में हवा का ताप ऊंचाई बढ़ने से घटता है । इनवर्शन के  कारण ठंडी हवा पृथ्वी की सतह के पास इकट्ठा हो ताजी है और गर्म हवा इस पर्त के ऊपर होती है ।
    भौगोलिक परिस्थितियां भी पाले का प्रभावित करती है । ढलान की तलहटी में ठंडी हवा नीचे बैठ जाती है क्योंकि गर्म हवा से भारी होती है  । अत: घाटी में फ्रास्ट बनता है जहां ठंडी हवा घिर जाती है । यही कारण है कि पहाड़ों के शीर्ष एवं घाटियों में पाला ज्यादा पड़ता है जबकि पहाड़ के अन्य हिस्से उससे बचे रहते हैं ।
    पाला पड़ने की चेतावनी हमें यह बताती है कि हमारी फसलें मुश्किल में हैं । हालांकि पौधों को नुकसान फ्रास्ट की वजह से नहीं बल्कि पौधों के अंगों, विशेषकर पत्तियों के ऊतकों के आंतरिक तापमान के कारण होता है । यदि तापमान इतना कम है कि वह कोशिका भित्ति को तोड़ दे या कोशिकांग को इतना क्षतिग्रस्त कर दे कि वे वापस अपनी पूर्व स्थिति में न आ पाएं  ता प्रभावित ऊतक मुरझा जाते हैं । प्रभाव ज्यादा हो तो उनकी मृत्यु भी हो जाती है ।
    पौधों पर कम तापमान का प्रभाव दो तरह का होता है । एक को चिलिंग क्षति कहते हैं और दूसरे को फ्रीजिंग । चिलिंग क्षति जमाव बिन्दु से ऊपर अर्थात शून्य डिग्री सेल्सियस से ऊपर होती है ।
    फ्रीजिंग क्षति ऊतकों का तापमान शून्य या शून्य से कम होने पर होती है । इस स्थिति में पत्तियों के अन्दर बर्फ जम जाती  है । गर्म क्षेत्रोंके पौधे रात के १२ से २० डिग्री सेल्सियस पर भी क्षतिग्रस्त हो जाते हैं ।
    रेडिएटिव पाला से बचने के लिए कई कदम उठाए  जात हैं । एक तो यह कि पूर्व के सालों में पड़े पाले के दिनोंका ध्यान रखें । पाला पड़ने की लगभग ५० प्रतिशत संभावना इन्हीं दिनों में होती है । पाला पड़ने की संभावना हो तो बेहतर होगा कि आप फसल में सिंचाई कर दें । सूखी मिट्टी की तुलना में नम मिट्टी चार गुना ज्यादा गर्मी अपने में समाए रखती है । इस कारण फसलों के आसपास का तापमान इतना कम नहींे हो पाता और वे पाले की क्षति से बच जाती हैं ।
    टमाटर जैसी फसलें पाला के प्रति बहुत संवेदी होती है । अत: पाला से बचने का अन्य कोई उपाय न हो तो बेहतर है कि हरे टमाटर, जो पकने की स्थिति में आ चुके हैं, उन्हें तोड़ लें और एक परत के रूप में बिछाकर ऐसे अंधेरे गर्म कमरे मेें रख दें जहां हवा की आधी निकासी है । टमाटर और अन्य फसलों को पकने के लिए प्रकाश की जरूरत नहीं होती हैं ।
    देखा गया है कि साफ आकाश, ठंडी रातें और कम नमी अक्सर ठंडी हवा चलने के कारण होती हैं । ऐसे में पाला पड़ने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं ।
    कुछ लोग यह भी मानते हैं कि आसमान में पूरा चांद खिला हो तब भी पाला पड़ने की आशंका होती है । परंतु मौसम सम्बंधी रिकार्ड बताते हैं कि चांद और पाले का ऐसा कोई सम्बंध नहीं है ।
    सवाल यह है कि पाला से पत्तियां ही क्यों ज्यादा प्रभावित होती हैं । दरअसल पौधे पायकिलोथर्म होते हैं । अर्थात उनके शरीर का तापमान वातावरण के तापमान से नियंत्रित होता है । गर्म हवा में पौधे गर्म हो जाते हैं, ठंडी हवा में ठंडे । पाला गिरने से पत्तियां सबसे ज्यादा प्रभावित इसलिए होती हैं कि पत्तियां ही पौधे का सर्वाधिक खुला एवं ज्यादा क्षेत्रफल का हिस्सा होता है ।
    पत्तियां ही हवा के आदान-प्रदान में ज्यादा भूमिका निभाती हैं और इनमें पानी की मात्रा भी अधिक होती है । अत: बाहरी तापमान में उतार-चढ़ाव का सर्वाधिक प्रभाव पत्तियों पर ही पड़ता है । पत्ती के अन्दर कोशिकाआें के बीच-बीच में और अंदर भी पानी भरा रहता है जो तापमान शून्य या शून्य से कम होने से जम जाता  है । पत्तियों पर बर्फ ज्यादा जमी दिखने का कारण भी यही है कि इसका क्षेत्रफल ज्यादा होता है और ये प्राय: आड़ी होती हैं । जो बर्फ मिट्टी पर गिरती हैं वह मिट्टी का ताप अधिक होने से पिघल जाती  है जबकि पत्तियों पर बनी रहती    है ।
    पाला पड़ने की संभावना होने पर एक दिन पूर्व सिंचाई करने से गीली मिट्टी अपेक्षाकृत धीरे-धीरे ठंडी होती है । ऐसे में पाला पड़ना रूक जाता है । इस दिशा में किए गए अध्ययनों से पता चला है कि गीली मिट्टी के ऊपर का तापमान सूखी मिट्टी के तापमान की तुलना में २ डिग्री सेल्सियस ज्यादा होता है । और तापमान का यह अंतर दूसरे दिन सुबह ६ बजे तक बना रहता है । अत: मिट्टी की सतह पर अपेक्षाकृत ज्यादा ताप होने से फसल पाले के दृष्प्रभाव से बच जाती है ।
    पाला से फसलोंको बचाने का एक उपाय उनको ढंकने का भी है । यह देखा गया कि प्लास्टिक की तुलना में कपड़े के कवर ज्यादा बेहतर ऊष्मारोधी का काम करते हैं । कवर जब हवा बंद हो तब शाम को लगाएं और सुबह सूरज निकलने के पूर्व हटा लें ।
    फसलों की सिंचाई करने से पत्तियों मेें पानी की मात्रा बढ़ जाती है । और जब पानी जमता है तब ८० कैलोरी के लगभग ऊष्मा निकलती है प्रत्येक ग्राम पानी    के जमने पर । अत: पाला पड़ने से पहले फसलों को पानी देने से इनका आंतरिक तापमान जमाव बिंदु से ऊपर बना रहता है और वे क्षतिग्रस्त होने से बच जाती हैं ।
    ध्यान देने योग्य बात यह है कि एक बार पौधे पाले से प्रभावित हो गए तो फिर सिंचाई काम नहीं आती है । इसलिए ऐहतियात ही बेहतर है ।

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