मंगलवार, 9 अप्रैल 2013

हमारा भूमण्डल
सौ अमीर बनाम अरबों गरीब
साम पिझिगाति

    विश्व के सौ अमीरों की संपत्ति को यदि दुनिया के निर्धनतम समुदाय में बांट दिया जाए तो पृथ्वी से चार बार गरीबी दूर हो सकती है । एक सैकड़ा व्यक्तियों के हाथों में अरबों साधारण नागरिकों का भविष्य महज गिरवी ही नहीं बंधुआ है । क्या इस असमानता को वैश्विक आर्थिक नीतियां कभी समाप्त् कर पाएंगी ?
    वैश्विक खजाने के अधिक समान वितरण की बात करने वालों को असमानता के हामीदार हमेशा ही रटारटाया जवाब देते हैं । वे दावा करते है कि यदि आप दुनिया के सबसे धनी लोगों की संपत्ति लेकर उसी बराबरी से गरीबों में बांटोगे तो किसी के भी हाथ कुछ नहींआएगा । लेकिन दुनिया में गरीबी के खिलाफ कार्य कर रहा एक प्रमुख संगठन आक्सफेम उनके इस ख्याल से इत्तेफाक नहींरखता है । आक्सप्रेम की नई रिपोर्ट खुलासा करती है कि दुनिया के १०० सर्वाधिक अमीर अरबपतियों के पास इतना अकूत धन संचित है जिससे कि वे दुनिया को गरीबी को चार बार समाप्त् करने का इतिहास रच सकते हैं । रिपोर्ट की विश्लेषक ईम्मा मेरी के अनुसार आक्सफेम का लक्ष्य है औरों के साथ मिलकर गरीबी समाप्त्   करना । लेकिन सीमित संसाधन वाले इस विश्व मेंबिना अति वैभव को समाप्त् किए ऐसा हो पाना संभव नहींे हैं । 
    आक्सफेम का नया अध्ययन, असमानता का मूल्य : किस प्रकार सम्पत्ति और अति आय हम सबको चोट पहुंचाती है को इस वर्ष स्विटरलैंड के डावोस शहर में प्रतिवर्ष होने वाले विश्व आर्थिक मंच बैठक के पूर्व जारी किया    गया । यह एक ऐसा वार्षिक आयोजन है जो कि अनेक मुद्दों को शीर्ष वैश्विक व्यापार एवं राजनीतिक नेताआें के समक्ष रखता है । वैसे मंदी के इस वर्तमान दौर मेंये नेता भी रक्षात्मक हो चले हैं । वैश्विक आर्थिक असमानता को लेकर उन पर लगातार दबाव बन रहा है, लेकिन वे इसे यथासंभव नजरअंदाज करने हेतु प्रयासरत हैं । डावोस के मंच पर इस बार यह दबाव भूतपूर्व फ्रांसीसी वितमंत्री क्रिस्टिन लागार्डे जो कि वर्तमान में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की अध्यक्ष हैं, जैसों की ओर से आया । सुश्री लागार्डे ने उच्च् वित्तीय संस्थाआें में अधिकारियों के अनाप-शनाप वेतन को लेकर लताड़ लगाई और बैंकरों पर हमला बोलते हुए कहा कि वे नए नियमनों की आवश्यकता के खिलाफ लाबिंग कर रहे हैं । इसी के साथ उन्होनें अधिक सुरक्षित व कड़े सामाजिक प्रतिमान स्थापित किए जाने की बात भी कही ।
    अपनी ओर से आक्सफेम ने वैश्विक अति समृद्धोंऔर बाकी सभी के बीच की खाई को कम करने हेतु सभी से साहसिक कार्यवाही करने का आह्वान    किया । समूह ने विश्व नेताआें से अपील की है कि वे अपने देशों में इस असमानता को कम से कम सन् १९९० के स्तर पर लाने के प्रति प्रतिबद्धता दिखाएं । इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए आक्सफेम की रिपोर्ट में व्यापक उपाय बताए गए हैं, जिनमें अमीर में भी अमीरों से अधिक दर पर आयकर लेना, इसी के साथ कारपोरेट अधिकारी न्यूनतम वेतन से कितने गुना अधिक वेतन ले सकते हैं, वह सीमा तय करना शामिल हैं ।
    आक्सफेम ने करों के स्वर्ग जो कि वैश्विक असमानता में सर्वाधिक योगदान करते हैं पर भी अंकुश लगाने की बात कही । इसकी वजह यह है कि दुनिया की एक चौथाई से ज्यादा संपत्ति इन्हीं स्थानों पर छुपाई जाती है । लेकिन हमें डावोस में इकट्ठा हुई भीड़ से यह उम्मीद नहीं लगानी चाहिए कि वह इस संबंध में कोई साहसिक निर्णय लेगी । वहां तो विश्व मुद्रा कोष की लागार्डे द्वारा बैंकिंग और कारपोरेट को दी गई सलाह को भी बहुत सीमित समर्थन मिल पाया ।
    यदि अमेरिकी नजरिये की उत्सवधर्मिता समझना हो तो जेपी मॉरगन चेज के मुख्य कार्यकारी जेमी डिमोन की सुधार के प्रति अनिच्छा जिसे कि उन्होनें दबाने का कतई कोई प्रयास भी नहीं किया, को जानना दिलचस्प होगा । वे आरोप लगाते हैं कि बैंक नियमन बहुत जल्दी बहुत कुछ कर लेना चाहते हैं और उनके सरीखे बैंक जो महान कार्य कर रहे हैं उसे लेकर गलत जानकारियां फैला रहे हैं । वे दंभ से कहते हैं, हम ठीक कार्य कर रहे हैं ।
    अन्य वैश्विक कारपोरेट भी यही धुन गा रहे थे । बैंगलोर स्थित भारतीय तकनीकी महाकाय विप्रो के अध्यक्ष अजीज प्रेमजी ने स्वीकार किया कि आक्सफेम का यह नया आंकड़ा कि किस प्रकार विश्व के १०० सर्वाधिक धनी इतना अधिक कमा रहे हैं जिससे कि विश्व की निकृष्टतम गरीबी दूर हो सकती है, से उन्हें दु:ख पहुंचा    है । लेकिन एक साक्षात्कार में प्रेमजी ने विश्व की संपत्ति के इस अवश्विसनीय स्तर पर एकत्रीकरण को किसी भी तरह से अनैतिक मानने से इंकार कर   दिया । उन्होंने सुझाव दिया कि हमें पुनर्वितरण पर समय नष्ट करने की आवश्यकता नहीं है । इसके बजाए हमें (धनिकों) अपनी ट्रस्टीशिप की जिम्मेदारी को निभाना चाहिए जिससे कि हमारा धन अच्छे काम में लग सके ।
    आक्सफेम का कहना है कि, दूसरे शब्दों में कहें तो अपनी समस्याआें के हल के लिए अमीरों पर विश्वास करो, अपने जीवन पर नहीं । बात को अंतिम रूप देते हुए आक्सफेम के  जैरमी हाब्स कहते है ऐसा विश्व जिसमें मूल संसाधन जैसे भूमि और पानी भी लगातार दुर्लभ होते जा रहे हैं वहां हम यह नहीं कर सकते कि कुछ लोगों के हाथों में संपत्तियां इकट्ठी हो जाए और अधिकांश लोग जो कुछ बचा रह गया है उसके लिए संघर्ष करें ।

कोई टिप्पणी नहीं: