मंगलवार, 9 अप्रैल 2013

 स्वास्थ्य
आम आदमी विरोधी है, नई दवा मूल्य नीति
कुंदन पांडे

    केन्द्र सरकार की प्रस्तावित औषधि मूल्य निर्धारण नीति से आवश्यक दवाआेंके मूल्य बजाए घटने के और अधिक बढ़ जाएंगे और अंतत: ये आम आदमी की पहुंच से बाहर हो जाएंगे । सरकार की सारी नीतियां बहुराष्ट्रीय व देशी महाकाय दवा कंपनियों को प्राथमिकता दे रही है ।
    केन्द्र सरकार की उस विवादस्पद नीति पर अनिश्चितता के बादल छा रहे हैं, जिसका लक्ष्य देश में आवश्यक दवाआें का मूल्य निर्धारण करना था । सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार जिस पद्धति से दिसम्बर २०१२ में नई राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण नीति को तैयार किया गया है उससे तो आवश्यक दवाईयां लोगों की पहुंच से ही बाहर हो जाएंगी । 
     स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने इस नीति के खिलाफ सर्वोच्च् न्यायालय में शपथ पत्र दाखिल किया है, लेकिन जिस दिन इस मामले की सुनवाई होनी थी उस दिन समय की कमी के कारण इस पर सुनवाई ही नहीं हो पाई । वहीं दूसरी ओर सर्वोच्च् न्यायालय ने अगली सुनवाई की तारीख तक तय नहीं की ।
    यह मसौदा नीति ऑल इंडिया ड्रग एक्शन नेटवर्क द्वारा सन् २००३ में दायर एक जनहित याचिका के बाद तैयार की गई है, जिसमें कहा गया है कि आवश्यक दवाइयों की कीमत बहुत ज्यादा है । नेटवर्क चाहता था कि और अधिक दवाइयां मूल्य नियंत्रण के अन्तर्गत आएं । उस समय कीमतें सन् १९९४ की दवाई नीति के अनुसार निर्धारित की गई थी । इसके प्रत्युत्तर में रसायन एवं उर्वरक विभाग ने सन् २०११ में राष्ट्रीय औषधि मूल्य नीति का पहला मसौदा तैयार किया । स्वास्थ्य विशेषज्ञों द्वारा इसकी व्यापक निदंा की गई, क्योंकि इसके अन्तर्गत कीमत तय करने के फार्मूले से दवाइयां पहुंच से बाहर ही हो जाती, लेकिन नए मसौदे ने भी लोगों के लिए कुछ ज्यादा नहीं किया है । अपीलकर्ताआें को डर है कि न्यायालय द्वारा निर्णय लिए जाने के पहले ही मंत्रालय इसे अधिसूचित कर सकता है ।
    गलत फार्मूला
    सन् १९९४ की दवा नीति में अनिवार्य दवाईयों की कीमत तय करने के लिए लागत आधारित मूल्य का प्रयोग किया गया था । इसमें कच्च्े माल की लागत, रूपांतरण की लागत और निर्माण के बाद अधिकतम १०० प्रतिशत खर्चो की अनुमति दी गई थी । लेकिन राष्ट्रीय औषधि मूल्य नीति २०११ के मसौदे में बाजार आधारित मूल्य निर्धारण को अपनाया गया । इसके हिसाब से अधिकतम कीमत निर्धारण किसी आवश्यक दवाई के तीन सर्वाधिक विक्रय होने वाले ब्रांडोंके औसत मूल्य के आधार पर किया जाएगा । वहीं सन् २०१२ के मसौदे ने बाजार आधारित मूल्य निर्धारण नीति को तो जारी रखा है, लेकिन इसके फार्मूले मेंपरिवर्तन कर दिया है । इसमें बाजार में उपलब्ध ऐसे सभी ब्रांड जिनकी एक प्रतिशत या इससे अधिक हिस्सेदारी है, उनका औसत लेकर मूल्य निर्धारण होगा ।
    ऑल इंडिया ड्रग एक्शन नेटवर्क के सह संयोजक गोपाल दाभाड़े का कहना है, इस बात में कोई शक नहीं कि नई पद्धति से दवाइयों के मूल्य मेंकमी आएगी, लेकिन इसके बावजूद ये आम आदमी की पहुंच से बाहर रहेगी, क्योंकि जो भी ब्रांड अधिक बिकते हैं वे सामान्यतया सबसे अधिक महंगे होते हैं । इसके अलावा ऐसे ब्रांड जो कि दवाईयों को कम कीमत पर बेचते हैं धीरे-धीरे मूल्य बढ़ाते जाएंगे, जिससे कि अधिक मूल्य निर्धारण हो सके । बड़ौदा स्थित गैर लाभकारी संस्था लो कास्ट के प्रबंध ट्रस्टी एस. श्रीनिवासन जो कि आम आदमी की पहुंच मेंहो ऐसी दवाई बनाती है, का कहना है कि सन् १९७९ से हम जिस लागत आधारित मूल्य निर्धारण नीति का अनुपालन कर रहे है वह सर्वश्रेष्ठ विकल्प है । श्री निवासन की भी न्यायालय में याचिका दाखिल करने में महत्वपूर्ण भूमिका रही है ।
    अपने शपथ पत्र में याचिकाकर्ताआें ने मांग की है कि लागत आधारित मूल्य निर्धारण फार्मूले को यथावत बनाए रखा    जाए । उन्होनें तमिलनाडु सरकार के दवाई खरीदने वाले मॉडल को पूरे देश में अपनाने का कहा है । तमिलनाडु मेडिकल सर्विस कारपोरेशन एक स्वायत्तशासी औषधि क्रय करने वाली एजेंसी है, जो निर्माताआें से दवा खरीदती है और राज्य की सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाआें को इसकी आपूर्ति करती है । इस माडल को राजस्थान एवं केरलने भी सफलतापूर्वक अपनाया है । श्री निवासन का कहना है कि लागत आधारित मूल्योंं, बाजार आधारित मूल्यों एवं तमिलनाडु मेडिकल सर्विस कारपोरेशन के मूल्यों के बीच जबरदस्त अंतर है ।
    उदाहरण के लिए दिल के दौरे को रोकने के लिए एस्ट्रोवास्टेटिन की १० मि.ग्रा. की १० गोलियां बाजार की सिरमौर कंपनी ११० रूपये में बेचती है । यदि लागत के आधार पर इसके मूल्य की गणना की जाए तो ये ५.६० पैसे की १० गोलियां  पड़ेगी। यदि ऐसे सभी ब्रांडों का औसत लिया जाएगा, जिनकी कि बाजार में हिस्सेदारी १ प्रतिशत से अधिक है तो इन गोलियों का मूल्य करीब ५० रूपये बैठेगा । वहीं तमिलनाडु सरकार द्वारा इस दवाई की सार्वजनिक खरीदी (१० गोलियां) का मूल्य केवल २.१० पैसे है ।
    श्री निवासन का कहना है कि मसौदे के प्रस्ताव वाले नए फार्मूले में निर्माण की वास्तविक लागत से कोई संबंध नहीं है । वहीं ऑल इंडिया ड्रग एक्शन नेटवर्क की सह संयोजक एवं सह-संस्थापक मीरा शिवा के अनुसार इस बात की तुरन्त आवश्यकता है कि ऐसी दवा नीति बने जो कि देश की स्वास्थ्य नीति के अनुरूप हो । क्योंकि स्वास्थ्य नीति से ही देश के सभी नागरिकों को स्वास्थ्य सुरक्षा प्रदान की जा सकती है ।

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