सामयिक
गंभीर होता पर्यावरणीय संकट
एस.एन. द्विवेदी
प्राकृतिक संसाधनों के अंसतुलित दोहन एवं भौतिक संसाधनों के प्रति मानव के अनावश्यक रूप से बढ़ रहे अत्यधिक आकर्षण ने लगभग पूरे विश्व को पर्यावरणीय संकट के दायरे में लाकर खड़ा कर दिया है ।
एक स्वस्थ समाज के निर्माण में स्वास्थ्यपरक एवं शुद्ध वातावरण की अहम भूमिका होती है लेकिन पिछले कुछ सालोंमें हमारा विश्व समाज विकसित हो रहे अत्याधुनिक संसाधनों को पा लेने की होड़ में पर्यावरण के महत्व एवं जीवन में इसकी अनिवार्यता को भुल-सा गया है । इसमें कोई दो राय नहीं कि आज आधुनिकता के अन्धुत्साह में सब कुछ पलक झपकते पा लेने की महत्वाकांक्षा ने हमारे पर्यावरण के लिए संकट की स्थिति उत्पन्न कर दी है ।
एक तरह जहां जल-प्रदूषण मरने वालोंकी संख्या में लगातार इजाफा होता जा रहा है वहीं वायु प्रदूषण की विशुद्धता में हो रही कमी भी पर्यावरण के लिए किसी संकट से कम नहीं है । आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार आगामी २०५० तक वायु प्रदूषण से मरने वालों की संख्या जल प्रदूषण से मरने वालों से ज्यादा हो जाएगी, अनुमान है कि २०५० तक हमारे वातावरण की हवाआें में जहर इतना फैल चुका होगा जिससे प्रत्येक साल ३६ लाख से ज्यादा लोग काल के गाल मेंसमाते जायेंगे ।
गंभीर होता पर्यावरणीय संकट
एस.एन. द्विवेदी
प्राकृतिक संसाधनों के अंसतुलित दोहन एवं भौतिक संसाधनों के प्रति मानव के अनावश्यक रूप से बढ़ रहे अत्यधिक आकर्षण ने लगभग पूरे विश्व को पर्यावरणीय संकट के दायरे में लाकर खड़ा कर दिया है ।
एक स्वस्थ समाज के निर्माण में स्वास्थ्यपरक एवं शुद्ध वातावरण की अहम भूमिका होती है लेकिन पिछले कुछ सालोंमें हमारा विश्व समाज विकसित हो रहे अत्याधुनिक संसाधनों को पा लेने की होड़ में पर्यावरण के महत्व एवं जीवन में इसकी अनिवार्यता को भुल-सा गया है । इसमें कोई दो राय नहीं कि आज आधुनिकता के अन्धुत्साह में सब कुछ पलक झपकते पा लेने की महत्वाकांक्षा ने हमारे पर्यावरण के लिए संकट की स्थिति उत्पन्न कर दी है ।
एक तरह जहां जल-प्रदूषण मरने वालोंकी संख्या में लगातार इजाफा होता जा रहा है वहीं वायु प्रदूषण की विशुद्धता में हो रही कमी भी पर्यावरण के लिए किसी संकट से कम नहीं है । आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार आगामी २०५० तक वायु प्रदूषण से मरने वालों की संख्या जल प्रदूषण से मरने वालों से ज्यादा हो जाएगी, अनुमान है कि २०५० तक हमारे वातावरण की हवाआें में जहर इतना फैल चुका होगा जिससे प्रत्येक साल ३६ लाख से ज्यादा लोग काल के गाल मेंसमाते जायेंगे ।
इन आंकड़ों में इस बात का भी जिक्र किया गया है कि वायु प्रदूषण का सबसे ज्यादा प्रभाव भारत एवं चीन जैसे देशों में ही देखने को मिलेगा । निश्चित रूप से स्वच्छ वायु मानव जीवन की सबसे बड़ी जरूरत है और इसके अभाव में जीवन का संकट उत्पन्न हो जाता है । ऐसे में अगर हम पर्यावरण संरक्षण के प्रतिसमय रहते सजग एवं सचेष्ट नहीं हुए तो आगामी वर्षो में हमारा जीवन संकट में होना तय है । वैशिवक पर्यावरणीय परिदृश्य - २०५० नामक रिपोर्ट में जलवायु में अस्थिरता एवं वायु प्रदूषण से मानव जीवन पर पड़ने वाले प्रभावों पर सर्वाधिक चिंता जताई गयी है ।
आज तकनीक एवं संसाधनों के प्रति मानवीय महत्वाकांक्षाआें मंे हो रही गुणोत्तर वृद्धि ने उत्पादन की प्रतिस्पर्धा को जन्म दिया है । मांग और आपूर्ति की इसी होड़ में बड़ी कंपनियों से लेकर आम आदमी तक को पर्यावरण के प्रति लापरवाही एवं निष्क्रिय बना दिया है । आज सब कुछ एक क्षण में पा लेने की होड़ और सब कुछ सबसे पहले उपलब्ध करा देने की जल्दबाजी के बीच शायद किसी को इससे उत्पन्न भावी संकट का आभास तक नहीं हो पा रहा । बढ़ते कल-कारखानों एवं तमाम अन्य उद्योगों में इस्तेमाल ऊर्जा संसाधनों से हमारे वातावरण की हवाआें में ग्रीन हाउस गैस की मात्रा में तेजी से बढ़ोत्तरी होती जा रही है एवं आगामी वर्षो में इसमें और बढ़ोत्तरी की संभावना जताई जा रही है जो कि पर्यावरणीय सुरक्षा के दृष्टिकोण से चिंतापूर्ण विषय है ।
हवाआें में फैल रही ग्रीन हाउस गैस की मात्रा में वृद्धि का सीधा प्रभाव ओजोन परत पर पड़ता है और आजोन परत पतली होती जा रही है एवं इसके दिन-प्रतिदिन और पतले होने की संभावना बनती जा रही है । ग्रीन हाउस नामक जहर की चपेट में आते जा रहे ओजोन लेयर के पतले होने के कारण सूरज से आने वाली पराबैंगनी किरणें कैंसर जैसी जानलेवा बीमारियों का कारण बनेगी और इससे मरने वालों की संख्या में इजाफा होता जायेगा, जिसे रोकना शायद तब संभव न हो सके । ग्रीन हॉउस गैस रूपी जहर का असर सिर्फ कैंसर से मरने वालों तक सीमित न होकर अन्य तमाम समस्याआें को जन्म देने वाले कारक के रूप में भी देखा जा सकता है । वायु प्रदूषण के कारण कई नयी तरह की बीमारियों का भी जन्म हो सकता है और समाज को चिकित्सा को दोहरे संकट का सामना करना पड़ सकता है जो कि अपने आप में बहुत विकट समस्या की तरह है ।
इतना तो लगभग तय है कि हमारी प्राकृतिक हवाआें में फैल रहा यह जहर समाज के लिए किसी भावी आपदा से कम नहीं प्रतीत हो रहा है । अत: ग्रीन हाउस गैस रूपी जहर के हवाआेंमें घुलने एवं ओजोन के परत का स्तर बारीक होने के परिणाम समाज के लिए बहुत भयावह एवं समाज को सकंट ग्रस्त करने वाले हैं । अनुमान जताया जा रहा है कि २०५० तक दुनिया की ७० फीसदी आबादी शहरों में निवास कर रही होगी और तब केवलवायु प्रदूषण से मरने वालों का ग्राफ १० लाख से चार गुना ज्यादा बढ़कर चालीस लाख के आंकड़ें को छू रहा होगा । संभावना इस बात की भी है कि अगर समय रहते इस समस्या पर नियंत्रण नहीं किया जा सकता तो २०५० तक दुनिया के एक अरब चार करोड़ लोगों को स्वच्छ एवं स्वास्थ्यपरक आक्सीजन तक मयस्सर नहीं होगी ।
आगामी तीन दशकों में पड़ने वाले प्रदूषित वायु के इन दुष्प्रभावों से बेखबर दिख रहा मानव समाज न तो इसके नियत्रंण के प्रति सजग हो रहा और न ही पर्यावरण एवं वायु शुद्धता के प्रति सचेष्ट दिख रहा है । आम आदमी की तो बात दूर, हमारी सरकार सहित विश्व की तमाम सरकारों के माथे पर पर्यावरण के इस भावी खतरे को लेकर कोई शिकन तक नहीं दिखती । वायु प्रदूषण एवं ग्रीन हाउस गैस का सबसे ज्यादा प्रभाव भारत में पड़ने का खतरा है, अत: निश्चित रूप से भारत सरकार को इस समस्या को बढ़ने से रोकने एवं इस पर नियंत्रण करने के लिए गंभीर होना पड़ेगा एवं इसके निराकरण में कुछ ठोस एवं दूरगामी उपायों को अमल में लाना पड़ेगा ।
आगामी पर्यावरणीय संकट को संदर्भ में रखते हुए सरकार द्वारा पर्यावरण के अनुकूल ऊर्जा संसाधनों को वैकल्पिक रूप से लाने पर योजना बनाने एवं उसे लागू कराने पर बल देने की जरूरत है । पर्यावरण अनुकूल ऊर्जा स्त्रोतों का प्रयोग होने से काफी हद तक इस समस्या से निजात पाने में मदद मिलेगी । इस क्रम में सरकार द्वारा इस बात पर बल देने की जरूरत है कि उन ऊर्जा स्त्रोतों जिनसे पर्यावरण को संकट है, के ऊपर किसी तरह की टैक्स छूट आदि जैसी रियायत नहीं दी जाये एवं उनके उपभोग का दायरा भी तय किया जाये ।
आज तकनीक एवं संसाधनों के प्रति मानवीय महत्वाकांक्षाआें मंे हो रही गुणोत्तर वृद्धि ने उत्पादन की प्रतिस्पर्धा को जन्म दिया है । मांग और आपूर्ति की इसी होड़ में बड़ी कंपनियों से लेकर आम आदमी तक को पर्यावरण के प्रति लापरवाही एवं निष्क्रिय बना दिया है । आज सब कुछ एक क्षण में पा लेने की होड़ और सब कुछ सबसे पहले उपलब्ध करा देने की जल्दबाजी के बीच शायद किसी को इससे उत्पन्न भावी संकट का आभास तक नहीं हो पा रहा । बढ़ते कल-कारखानों एवं तमाम अन्य उद्योगों में इस्तेमाल ऊर्जा संसाधनों से हमारे वातावरण की हवाआें में ग्रीन हाउस गैस की मात्रा में तेजी से बढ़ोत्तरी होती जा रही है एवं आगामी वर्षो में इसमें और बढ़ोत्तरी की संभावना जताई जा रही है जो कि पर्यावरणीय सुरक्षा के दृष्टिकोण से चिंतापूर्ण विषय है ।
हवाआें में फैल रही ग्रीन हाउस गैस की मात्रा में वृद्धि का सीधा प्रभाव ओजोन परत पर पड़ता है और आजोन परत पतली होती जा रही है एवं इसके दिन-प्रतिदिन और पतले होने की संभावना बनती जा रही है । ग्रीन हाउस नामक जहर की चपेट में आते जा रहे ओजोन लेयर के पतले होने के कारण सूरज से आने वाली पराबैंगनी किरणें कैंसर जैसी जानलेवा बीमारियों का कारण बनेगी और इससे मरने वालों की संख्या में इजाफा होता जायेगा, जिसे रोकना शायद तब संभव न हो सके । ग्रीन हॉउस गैस रूपी जहर का असर सिर्फ कैंसर से मरने वालों तक सीमित न होकर अन्य तमाम समस्याआें को जन्म देने वाले कारक के रूप में भी देखा जा सकता है । वायु प्रदूषण के कारण कई नयी तरह की बीमारियों का भी जन्म हो सकता है और समाज को चिकित्सा को दोहरे संकट का सामना करना पड़ सकता है जो कि अपने आप में बहुत विकट समस्या की तरह है ।
इतना तो लगभग तय है कि हमारी प्राकृतिक हवाआें में फैल रहा यह जहर समाज के लिए किसी भावी आपदा से कम नहीं प्रतीत हो रहा है । अत: ग्रीन हाउस गैस रूपी जहर के हवाआेंमें घुलने एवं ओजोन के परत का स्तर बारीक होने के परिणाम समाज के लिए बहुत भयावह एवं समाज को सकंट ग्रस्त करने वाले हैं । अनुमान जताया जा रहा है कि २०५० तक दुनिया की ७० फीसदी आबादी शहरों में निवास कर रही होगी और तब केवलवायु प्रदूषण से मरने वालों का ग्राफ १० लाख से चार गुना ज्यादा बढ़कर चालीस लाख के आंकड़ें को छू रहा होगा । संभावना इस बात की भी है कि अगर समय रहते इस समस्या पर नियंत्रण नहीं किया जा सकता तो २०५० तक दुनिया के एक अरब चार करोड़ लोगों को स्वच्छ एवं स्वास्थ्यपरक आक्सीजन तक मयस्सर नहीं होगी ।
आगामी तीन दशकों में पड़ने वाले प्रदूषित वायु के इन दुष्प्रभावों से बेखबर दिख रहा मानव समाज न तो इसके नियत्रंण के प्रति सजग हो रहा और न ही पर्यावरण एवं वायु शुद्धता के प्रति सचेष्ट दिख रहा है । आम आदमी की तो बात दूर, हमारी सरकार सहित विश्व की तमाम सरकारों के माथे पर पर्यावरण के इस भावी खतरे को लेकर कोई शिकन तक नहीं दिखती । वायु प्रदूषण एवं ग्रीन हाउस गैस का सबसे ज्यादा प्रभाव भारत में पड़ने का खतरा है, अत: निश्चित रूप से भारत सरकार को इस समस्या को बढ़ने से रोकने एवं इस पर नियंत्रण करने के लिए गंभीर होना पड़ेगा एवं इसके निराकरण में कुछ ठोस एवं दूरगामी उपायों को अमल में लाना पड़ेगा ।
आगामी पर्यावरणीय संकट को संदर्भ में रखते हुए सरकार द्वारा पर्यावरण के अनुकूल ऊर्जा संसाधनों को वैकल्पिक रूप से लाने पर योजना बनाने एवं उसे लागू कराने पर बल देने की जरूरत है । पर्यावरण अनुकूल ऊर्जा स्त्रोतों का प्रयोग होने से काफी हद तक इस समस्या से निजात पाने में मदद मिलेगी । इस क्रम में सरकार द्वारा इस बात पर बल देने की जरूरत है कि उन ऊर्जा स्त्रोतों जिनसे पर्यावरण को संकट है, के ऊपर किसी तरह की टैक्स छूट आदि जैसी रियायत नहीं दी जाये एवं उनके उपभोग का दायरा भी तय किया जाये ।
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