संपादकीय
गंभीर जल संकट की आहट
पिछले दिनों संयुक्त राष्ट्र ने विश्व के सभी देशों को चेतावनी देते हुए कहा कि यदि पानी की बर्बादी को जल्द नहीं रोका गया तो जल्दी ही विश्व गंभीर जल संकट से गुजरेगा । विश्व जल विकास रिपोर्ट प्रत्येक तीन साल पर जारी की जाती है । इस रिपोर्ट को जल विज्ञान, अर्थशास्त्र और सामाजिक मुद्दों के विशेषज्ञों ने यूनेस्को के संरक्षण में तैयार किया है । दुनिया की आबादी जिस तरह से बढ़ रही है, सबको स्वच्छ पेयजल मुहैया कराना विश्व के सभी देशोंखासकर विकासशील देशों के लिए एक चुनौती है ।
जल एक चक्रीय संसाधन है जो पृथ्वी पर प्रचुर मात्रा में पाया जाता है । पृथ्वी का लगभग ७१ प्रतिशत धरातल पानी से आच्छादित है परन्तु अलवणीय जल कुल जल का केवल लगभग ३ प्रतिशत ही है । वास्तव में अलवणीय जल का एक बहुत छोटा भाग ही मानव उपयोग के लिए उपलब्ध है । अलवणीय जल की उपलब्धता स्थान और समय के अनुसार भिन्न-भिन्न है । इस दुर्लभ संसाधन के आवंटन और नियंत्रण पर तनाव और लड़ाई झगड़े, संप्रदायों, प्रदेशों और राज्यों के बीच विवाद का विषय बन गए है । विकास को सुनिश्चित करने के लिए जल का मूल्यांकन, कार्यक्षम उपयोग और संरक्षण आवश्यक हो गया हैं ।
पानी की समस्या आज भारत के कई हिस्सोंमें विकराल रूप धारण कर चुकी है और इस बात को लेकर कई चर्चाएं भी हो रही है । इस समस्या से जूझने के कई प्रस्ताव भी हैं लेकिन जल संरक्षण से हम इस समस्या से काफी हद तक निजात पा सकते हैं । पानी को बचाने के कुछ प्रयासों में एक उत्तम व नायाब तरीका है आकाश से बारिश के रूप में गिरे हुए पानी को बर्बाद होने से बचाना और उसका संरक्षण करना । यदि पानी का संरक्षण एक दिन शहरी नागरिकों के लिए अहम मुद्दा बनता है तो निश्चित ही इसमें तमिलनाडु का नाम सबसे आगे होगा क्योंकि वहां एक महत्वपूर्ण कदम उठाया गया है ।
पिछले कुछ सालोंसे गंभीर सूखे से जूझने के बाद तमिलनाडु सरकार इस मामले में और भी प्रयत्नशील हो गई है और उसने एक आदेश जारी किया है जिसके तहत तीन महीनों के अंदर सारे शहरी मकानों और भवनों की छतों पर वर्षा जल संरक्षण संयंत्रों का लगाना अनिवार्य हो गया है ।
पिछले दिनों संयुक्त राष्ट्र ने विश्व के सभी देशों को चेतावनी देते हुए कहा कि यदि पानी की बर्बादी को जल्द नहीं रोका गया तो जल्दी ही विश्व गंभीर जल संकट से गुजरेगा । विश्व जल विकास रिपोर्ट प्रत्येक तीन साल पर जारी की जाती है । इस रिपोर्ट को जल विज्ञान, अर्थशास्त्र और सामाजिक मुद्दों के विशेषज्ञों ने यूनेस्को के संरक्षण में तैयार किया है । दुनिया की आबादी जिस तरह से बढ़ रही है, सबको स्वच्छ पेयजल मुहैया कराना विश्व के सभी देशोंखासकर विकासशील देशों के लिए एक चुनौती है ।
जल एक चक्रीय संसाधन है जो पृथ्वी पर प्रचुर मात्रा में पाया जाता है । पृथ्वी का लगभग ७१ प्रतिशत धरातल पानी से आच्छादित है परन्तु अलवणीय जल कुल जल का केवल लगभग ३ प्रतिशत ही है । वास्तव में अलवणीय जल का एक बहुत छोटा भाग ही मानव उपयोग के लिए उपलब्ध है । अलवणीय जल की उपलब्धता स्थान और समय के अनुसार भिन्न-भिन्न है । इस दुर्लभ संसाधन के आवंटन और नियंत्रण पर तनाव और लड़ाई झगड़े, संप्रदायों, प्रदेशों और राज्यों के बीच विवाद का विषय बन गए है । विकास को सुनिश्चित करने के लिए जल का मूल्यांकन, कार्यक्षम उपयोग और संरक्षण आवश्यक हो गया हैं ।
पानी की समस्या आज भारत के कई हिस्सोंमें विकराल रूप धारण कर चुकी है और इस बात को लेकर कई चर्चाएं भी हो रही है । इस समस्या से जूझने के कई प्रस्ताव भी हैं लेकिन जल संरक्षण से हम इस समस्या से काफी हद तक निजात पा सकते हैं । पानी को बचाने के कुछ प्रयासों में एक उत्तम व नायाब तरीका है आकाश से बारिश के रूप में गिरे हुए पानी को बर्बाद होने से बचाना और उसका संरक्षण करना । यदि पानी का संरक्षण एक दिन शहरी नागरिकों के लिए अहम मुद्दा बनता है तो निश्चित ही इसमें तमिलनाडु का नाम सबसे आगे होगा क्योंकि वहां एक महत्वपूर्ण कदम उठाया गया है ।
पिछले कुछ सालोंसे गंभीर सूखे से जूझने के बाद तमिलनाडु सरकार इस मामले में और भी प्रयत्नशील हो गई है और उसने एक आदेश जारी किया है जिसके तहत तीन महीनों के अंदर सारे शहरी मकानों और भवनों की छतों पर वर्षा जल संरक्षण संयंत्रों का लगाना अनिवार्य हो गया है ।
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