कविता
बसंत
सुमित्रानंदन पंत
चंचल पग दीपशिखा के धर
गृह मग वन में आया वसंत ।
सुलगा फागुन का सूनापन
सौंदर्य शिखाआें में अनंत ।
सौरभ की शीतल ज्वाला से
फैला उर-उर में मधुर दाह
आया वसंत भर पृथ्वी पर
स्वर्गिक सुन्दरता का प्रवाह ।
पल्लव पल्लव में नवल रूधिर
पत्रों में मांसल रंग खिला
आया नीली पीली लौ से
पुष्पो के चित्रित दीप जला ।
अधरों की लाली से चुपके
कोमल गुलाब से गाल लजा
आया पंखड़ियों को काले -
पीले धब्बों से सहज सजा ।
कलि के पलकों में मिलन स्वप्न
अलि के अंतर मेंप्रणय गान
लेकर आया प्रेमी वसंत -
आकुल जड़-चेतना स्नेह-प्राण ।
बसंत
सुमित्रानंदन पंत
चंचल पग दीपशिखा के धर
गृह मग वन में आया वसंत ।
सुलगा फागुन का सूनापन
सौंदर्य शिखाआें में अनंत ।
सौरभ की शीतल ज्वाला से
फैला उर-उर में मधुर दाह
आया वसंत भर पृथ्वी पर
स्वर्गिक सुन्दरता का प्रवाह ।
पल्लव पल्लव में नवल रूधिर
पत्रों में मांसल रंग खिला
आया नीली पीली लौ से
पुष्पो के चित्रित दीप जला ।
अधरों की लाली से चुपके
कोमल गुलाब से गाल लजा
आया पंखड़ियों को काले -
पीले धब्बों से सहज सजा ।
कलि के पलकों में मिलन स्वप्न
अलि के अंतर मेंप्रणय गान
लेकर आया प्रेमी वसंत -
आकुल जड़-चेतना स्नेह-प्राण ।
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