बुधवार, 12 जून 2013

प्रदेश चर्चा
छत्तीसगढ़ : खेती से बेदखल होते किसान
राकेश मालवीय

    खेती किसानी की बदहाली के बाद अब छत्तीसगढ़ के किसान अपने ही खेती से बेदखल होकर उनमें मजदूरी करने को अभिशप्त् होते जा रहे है । बदलती परिस्थितियां बता रही है कि कृषि का भविष्य अधंकारमय है ।
    भूमण्डलीकरण व बेलगाम औद्योगिकरण की प्रक्रियाआेंके परिणाम को लेकर जो अनुमान लगाए जा रहे थे वे अब तथ्य के रूप में हमारे सामने आ रहे हैं । ये तथ्य बेहद खतरनाक तो हैं, लेकिन अप्रत्याशित नहीं हैं, क्योंकि अपनाई गई नीतियों से तो ऐसा होना ही      था । पिछले दिनों छत्तीसगढ़ राज्य के जनसंख्या के आंकड़ों में बताया गया है कि राज्य में किसानों की संख्या में १२ प्रतिशत से अधिक की कमी आई है । दूसरी तरफ राज्य में कृषि मजदूरों की संख्या में इजाफा हुआ  है । जनगणना रिपोर्ट के अनुसार छत्तीसगढ़ में किसानों की संख्या में खासी कम आई है । २००१ से २०११ के दशक में किसानों की संख्या ४५०,००० घट गई है ।
    इस बारे में छत्तीसगढ़ जनगणना निदेशक रेणु पिल्लई ने कहा कि सन् २००१ में छत्तीसगढ़ में किसानों की संख्या ३,४८८,६७२ थी, जो २०११ में कम होकर ३,०३८,०९४ रह गई । उन्होनें कहा कि इस अवधि के दौरान राज्य में कृषि मजदूरों की संख्या १,५५२,०८३ से बढ़कर २,५०५,९९९ हो गई । मतलब ये भी है कि राज्य में छोटे जोत के किसानों की जमीनें तमाम कारणों से बाजार का शिकार बनी हैं और ऐसे किसान अब अपनी ही जमीनों पर मजदूर बनने के लिए मजबूर है । यदि सरकार के ही आंकड़े यह बताते है तो इसे अलग से सिद्ध करने की क्या जरूरत है । 


     मोटे तौर पर ही देखें तो सरकार ने अकेले एक नया रायपुर शहर बनाने में लगभग ३७ गांवों के किसानों की जमीनों का अधिग्रहण किया । अब इस जमीन पर एक ऐसे आलीशान शहर का निर्माण किया जा रहा है जहां कि एक अंतरर्राष्ट्रीय स्तर का हवाई अड्डा है और एक अंतरर्राष्ट्रीय स्तर का क्रिकेट खेल मैदान । मजे की बात तो यह है कि जिन लोगों की जमीनों पर इतने आलीशान शहर की कल्पना की गई उनके हिस्से में इन क्रिकेट मैदानों में पार्किग वसूलने का सबसे घटिया किस्म का काम मिल रहा है । इन गांववालों के बलिदान की कीमत संभवत: इससे पहले इस हास्यापद रूप में कभी नहीं मिली होगी ।
    लेकिन सरकार को इनकी चिंता नहीं है । बात वही है विकास के लिए किसी न किसी की बलि तो चढ़ानी ही होगी । बात मान भी ली जाए, लेकिन हर बार यह बलि किसानों, आदिवासियों की ही क्यों ली जाती है । और फिर बलि का प्रतिफल जिस रूप में इन लोगों को मिलना चाहिए उस वक्त समाज और सरकार खामोश बैठ जाते है । पिछले साल नवंबर में भी नया रायपुर में ग्लोबल इंवेस्टर्स मीट का आयोजन किया गया था, इसमें तमाम बड़ी हस्तियों को बुलाने के लिए सरकार ने रेड कॉरपेट बिछाया । इस पूरे आयोजन में भी स्थानीय व छोटे उद्योगों की सिरे से ही अनदेखी की गई थी । इस मीट के छह महीने बाद उसमें हुए करारों का विश्लेषण किया जाए तो हमारे हाथ कुछ खास नहीं आता ।
    जनगणना के आंकड़ों में यह उस राज्य के किसानों की स्थिति है जो एक समय में हजारों किस्म के धान उगाने में सक्षम थे । यहां की वर्तमान स्थिति नीतियों का पूरे विश्लेषण मांगती है । गौरतलब है कि एक दशक में राज्य में कृषि मजदूरों की संख्या में ७० प्रतिशत से अधिक बढ़ोतरी हुई है । कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि जनगणना से स्पष्ट है कि राज्य में छोटे और मंझोले किसानों को अपनी जमीन गंवानी पड़ी है । ऐसा औद्योगिक परियोजनाआें या ढांचागत विकास कार्यो की वजह से भी हो सकता है ।
    स्थानीय किसान नेता वीरेन्द्र पांडेय कहते हैं, चूंकि किसानों की संख्या में जबरदस्त कमी आई है, इससे यह साबित होता है कि कई छोटे और मोझेल किसान जमीन खो चुके है । वह कहते है कि छत्तीसगढ़ में ज्यादातर छोटे या मध्यम दर्ज के किसान है और इनको ही नीतियों के जरिए संरक्षण देना बेहद जरूरी है नहीं तो यहां की कृषि व्यवस्था चौपट हो सकती है । श्री पांडेय कहते हैं कि किसानों की संख्या कम होने के आधिकाधिक आंकड़े राज्य सरकार के  किसान हितैषी होने के दावे खारिज करते हैं ।
    वैसे देश के परिदृश्य के बरक्स भी देखेंतो केवल छत्तीगसढ़ में ही यह अनोखी स्थिति नहीं है । जनगणना के ही आंकड़े बताते हैं कि देश में १९९१ के बाद से किसानों की संख्या करीब १.५० करोड़ घट गई है, जबकि २००१ के बाद यह कमी ७७ लाख से थोड़ी ज्यादा है ।
    वरिष्ठ पत्रकार पी. साईनाथ के विश्लेषण के मुताबिक पिछले बीस सालों में हर दिन औसतन २०३५ काश्तकार या किसान बेदखल होते जा रहे हैं । यह बहुत हैरानी की बात है कि पूंजीपतियों और वैश्विक बाजारों के लिए पलक-पांवड़े बिछाने वाली सरकारों को ये आंकड़े चिंता में नहीं डालते है ।
    राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो के मुताबिक वर्ष २००७ में छत्तीसगढ़ में १५९३ किसानों द्वारा आत्महत्या किए जाने का आंकड़ा दर्ज हुआ । यह संख्या सन् २००६ के मुकाबले ११० ज्यादा रही । आंकड़ों के विस्तार में जाने पर मालमू चलता है कि सबसे अधिक किसान आत्महत्या (२८७) रायपुर जिले में हुई । रायपुर जो कि राजधानी भी   है । इससे पूर्व भी हर साले सबसे ज्यादा किसान आत्महत्याआें वाला जिला रहा है । रायपुर के बाद दुर्ग (२०६) और महासमुंद (१४३) का नंबर रहा । इन जिलों को भी यहां के समृद्ध जिलों में गिना जाता है ।
    सन् २००६ में छत्तीसगढ़ में जिन १४८३ किसानों द्वारा आत्महत्या के आंकड़े देखने को मिलते हैं, वह केवल उन किसानों की संख्या है, जिनके नाम पर जमीन है । यानि इनमें खेती में काम करने वाले मजदूर व अधियाबटाई लेकर किसानी करने वाले किसान शामिल नहीं है ।

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