विज्ञान, हमारे आसपास
तत्वों की उत्पत्ति की कहानी
डॉ. विजयकुमार उपाध्याय
तत्व क्या है ? कितने हैं ? उनकी उत्पत्ति कैसे हुई ? ये सब ऐसे प्रश्न हैं जिनके संबंध में बहुत प्राचीन काल से ही दार्शनिक तथा विद्धान समय-समय पर विचार व्यक्त करते आए हैं । प्राचीन भारतीय मनीषियों ने तत्वों की संख्या पांच बताई थी । ये पांच तत्व थे आकाश, वायु, अग्नि, जल तथा पृथ्वी । युरोपीय दार्शनिक अरस्तू के मतानुसार भी तत्वों की संख्या पंाच ही थी जिनमें शामिल थे पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि तथा ईथर ।
आधुनिक वैज्ञानिकों के मतानुसार तत्व वह शुद्ध पदार्थ है जिसका रासायनिक या अन्य किसी विधि द्वारा दो या दो से अधिक प्रकार के पदार्थोमें विभाजन नहीं किया जा सकता है । वैज्ञानिकों द्वारा अब तक सौ से अधिक तत्वों की खोज की जा चुका है ।
तत्वों की उत्पत्ति की कहानी
डॉ. विजयकुमार उपाध्याय
तत्व क्या है ? कितने हैं ? उनकी उत्पत्ति कैसे हुई ? ये सब ऐसे प्रश्न हैं जिनके संबंध में बहुत प्राचीन काल से ही दार्शनिक तथा विद्धान समय-समय पर विचार व्यक्त करते आए हैं । प्राचीन भारतीय मनीषियों ने तत्वों की संख्या पांच बताई थी । ये पांच तत्व थे आकाश, वायु, अग्नि, जल तथा पृथ्वी । युरोपीय दार्शनिक अरस्तू के मतानुसार भी तत्वों की संख्या पंाच ही थी जिनमें शामिल थे पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि तथा ईथर ।
आधुनिक वैज्ञानिकों के मतानुसार तत्व वह शुद्ध पदार्थ है जिसका रासायनिक या अन्य किसी विधि द्वारा दो या दो से अधिक प्रकार के पदार्थोमें विभाजन नहीं किया जा सकता है । वैज्ञानिकों द्वारा अब तक सौ से अधिक तत्वों की खोज की जा चुका है ।
अब तक किए गए अध्ययनों से पता चला है कि ब्रह्माण्ड के समस्त परमाणुआें की संख्या का लगभग ९३ प्रतिशत तथा ब्रह्माण्ड के द्रव्य के सम्पूर्ण द्रव्यमान का लगभग ७६ प्रतिशत सिर्फ हाइड्रोजन है । हाइड्रोजन के बाद दूसरा प्रमुख तत्व है हीलियम जो ब्रह्माण्ड मेंपरमाणुआें की कुल संख्या का लगभग ६ प्रतिशत है तथा ब्रह्माण्ड के कुल द्रव्यमान का लगभग २२.५ प्रतिशत है ।
हमारी पृथ्वी पर उपस्थित तत्वों में कई ऐसे है जो प्रकृतिमें प्रचुर परिणाम में उपलब्ध हैं । ऐसे तत्वों में शामिल हैं ऑक्सीजन, सिलिकॉन, कार्बन इत्यादि । कुछ तत्व ऐसे हैं जो सामान्य परिमाण में पाए जाते हैं जैसे लोहा, तांबा, चांदी इत्यादि । कुछ अन्य तत्वों की मात्रा पृथ्वी पर बहुत कम है । इनमें शामिल हैं रेडियम, थोरियम, युरेनियम इत्यादि ।
एफ.डब्ल्यू. क्लार्क नामक वैज्ञानिक द्वारा किए गए अध्ययनों से जानकारी मिली है कि पृथ्वी पर उपस्थित तत्वों का लगभग ९९ प्रतिशत भाग सिर्फ १२ तत्वों से निर्मित है । इन १२ प्रमुख तत्वों में शामिल है ऑक्सीजन, सिलिकॉन, लोहा, एल्युमिनियम, कैल्शियम, सोडियम, पोटेशियम, मैग्नीशियम, हाइड्रोजन, टाइटेनियम, क्लोरीन तथा कार्बन । अन्य तत्वों की मिली-जुली मात्रा सिर्फ १.० प्रतिशत है । ये आंकड़े पृथ्वी की पर्पटी (क्रस्ट) से प्राप्त् अनेक प्रकार की चट्टानों के विश्लेषण से प्राप्त् हुए है ।
अनेक वैज्ञानिकों ने क्लार्क द्वारा प्राप्त् आंकड़ों के आधार पर किसी भी प्रकार का निष्कर्ष निकालने में असहमति व्यक्त की है । इन वैज्ञानिकों ने आपत्ति उठाई है कि भूपर्पटी से प्राप्त् चट्टानों का रासायनिक संघटन एक समान नहीं है । साथ ही भूपर्पटी में अधिक गहराईयों पर मौजूद चट्टानों के नमूने प्राप्त् करना भी असंभव है । ऐसी परिस्थिति में क्लार्क द्वारा प्राप्त् आंकड़े पूरी पृथ्वी का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकते ।
परन्तु इन वैज्ञानिकों द्वारा उठाई गई आपत्तियां उचित नहीं मालूम पड़ती । श्री क्लार्क ने इन संभावित आपत्तियों को ध्यान में रखकर ही विभिन्न गहराईयों से प्राप्त् चट्टानों के रासायनिक संघटन के संबंध में कुछ अनुमान लगाए थे । ये अनुमान सिर्फ कोरी कल्पनाआें पर ही आधारित नहीं थे बल्कि पृथ्वी के भीतर भूकम्पीय तरंगों की गति के अध्ययन पर आधारित थे । इतना ही नहीं भूसतह से अनेक भागों से प्राप्त् उल्का पत्थरों का भी विश्लेषण किया गया था । पृथ्वी की उत्पत्ति से संबंधित ग्रहाणु परिकल्पना के समर्थकों के मतानुसार उल्का पत्थरों का रासायनिक संघटन ग्रहाणुआें के रासायनिक संघटन के समतुल्य माना जा सकता है । अत: उल्का पत्थरोंके रासायनिक विश्लेषण से पृथ्वी के रासायनिक संघटन के संबंध मेंउपयोगी संकेत प्राप्त् हो सकते है ।
भूकंप जनित तरंगो की गति एवं उल्का पत्थरोंके रासायनिक विश्लेषण से यह निष्कर्ष निकाला गया है कि पृथ्वी के सबसे भीतरी भाग क्रोड मेंलोहा, निकेल तथा अल्प मात्रा में सल्फाइड ट्रायोलाइट मौजूद हैं । क्रोड के बाहर पृथ्वी की दूसरी परत मैंटल के खनिज तथा रासायनिक संघटन के संबंध में भूवैज्ञानिक लोग अभी तक एकमत नहीं हैं । प्रसिद्ध अमरीकी भूविज्ञानवेत्ता मैसन तथा वांशिगटन ने अनुमान लगाए हैं कि मैंटल में मुख्यत: पेरिडोटाइट नामक चट्टान उपस्थित है जिसमें लोहा तथा मैग्नीशियम प्रमुख तत्व हैं । स्मिथ नामक एक अन्य भूविज्ञानवेत्ता का विचार है कि मैंटल में उस प्रकार के सिलिकेट मौजूद है जिस प्रकार के सिलिकेट चट्टानी उल्काआें में पाए जाते हैं । स्मिथ के मतानुसार पृथ्वी में उपस्थित १५ तत्वों की प्रचुरता सारणी १ में दिखाई गई है ।
तत्वों की उत्पत्ति के संबंध में कई वैज्ञानिकों ने समय-समय पर विचार व्यक्ति किए हैं । शुरू-शुरू में कुछ वैज्ञानिकों ने साम्य सिद्धान्त (इक्विलिब्रियम थ्योरी) का प्रतिपादन किया । इस सिद्धान्त के अनुसार जिन तत्वोंको आज हम देखते हैं, वे काफी उच्च् तापमान पर निर्मित नाभिकीय कणों के हिमीकृत रूप हैं । परन्तु इस सिद्धान्त की सबसे बड़ी त्रुटि यह है कि इसके द्वारा ब्रह्माण्ड स्तर पर तत्वों की प्रचुरता की व्याख्या संतोषजनक ढंग से नहीं हो पाती । इसी कारण से यह सिद्धान्त अधिक लोकप्रिय नहीं है ।
साम्य सिद्धान्त के विपरीत कुछ वैज्ञानिकों ने असाम्य सिद्धान्त (नॉन इक्विलिब्रियम थ्योरी) का प्रतिपादन किया है । इस सिद्धान्त का प्रतिपादन तथा समर्थन करने वालों में शामिल थे जॉर्ज गैमोव तथा अल्फर आदि । इस सिद्धान्त के अनुसार प्रांरभ में ब्रह्माण्ड के सभी पदार्थ सिर्फ न्यूट्रॉन कणों से निर्मित थे । कुछ समय के बाद न्यूट्रॉन फैलने लगा जिसके फलस्वरूप इसके दो खंड हो गए । इन दो खण्डो में एक था प्रोटॉन तथा दूसरा था इलेक्ट्रॉन । धीरे-धीरे प्रोटॉन कणों ने न्यूट्रॉन कणों को अपने में समाहित करना शुरू किया । इस प्रकार धीरे-धीरे न्यूट्रॉन कणों के संश्लेषण तथा बीटा कणोंके क्षरण से तत्वों का निर्माण होने लगा ।
परन्तु कुछ ही समय बाद असाम्य सिद्धान्त में भी एक बहुत बड़ी त्रुटि नजर आने लगी । यह सिद्धान्त भी ब्रह्माण्ड स्तर पर तत्वों की प्रचुरता की व्याख्या करने में असमर्थ रहा । उदाहरणार्थ इस सिद्धान्त से यह स्पष्ट नहीं होता कि तत्वों में लोहे की इतनी अधिक प्रचुरता कैसे संभव हुई ? इतना ही नहीं इससे यह भी स्पष्ट नहीं होता कि ५ या ८ से अधिक परमाणु भार वाले तत्वों की उत्पत्ति कैसे हुई ? क्योंकि हीलियम तथा बेरिलियम (परमाणु भार क्रमश: ५ तथा ८), जो न्यूट्रॉन पकड़ विधि से निर्मित होते हैं, बहुत कम आयु वाले हैं । देखा गया है कि निर्माण के कुछ ही समय बाद इन तत्वों का क्षरण हो जाता है तथा ये पुन: हीलियम-४ में बदल जाते हैं । कहने का तात्पर्य यह है कि इस विधि द्वारा अधिक हीलियम-४ के परमाणु भार वाले तत्वों तक का निर्माण संभव है ।
सन् १९५७ में संसार के तीन प्रसिद्ध वैज्ञानिकों (बर्बीज, हॉयल तथा फाउलर) ने बताया कि सौर परिवार में पाए जाने वाले तत्वों का निर्माण सूर्य में होने वाली नाभिकीय क्रिया द्वारा हुआ । इस विधि द्वारा उत्पन्न होने वाला सबसे पहला तत्व था हाइड्रोजन । अन्य तत्व हाइड्रोजन से ही उत्पन्न हुए । सूर्य की सतह पर नाभिकीय क्रिया द्वारा सतत विधि में तत्वों के निर्माण के निम्नलिखित पांच चरण थे :-
(१) प्रत्येक तारे में हाइड्रोजन लगातार न्यूट्रॉन ग्रहण कर हीलियम में परिवर्तित हो रही है । किन्तु इसके लिए जरूरी है कि तारे के केन्द्र का तापमान एक करोड़ डिग्री हो तथा उसका घनत्व लगभग १०० ग्राम प्रति घन सेंटीमेंटीर हो ।
(२) जब तापमान १० करोड़ डिग्री तथा घनत्व का एक लाख ग्राम प्रति घन सेंटीमीटर के आसपास रहता है तो उपर्युक्त विधि द्वारा निर्मित हीलियम कार्बन के परमाणुआेंमें परिवर्तित हो जाती है । इस परिस्थिति में हीलियम के तीन परमाणु आपस में मिलकर कार्बन के एक परमाणु का निर्माण करते हैं । कार्बन के येपरमाणु हीलियम के अन्य परमाणुआें को ग्रहण कर ऑक्सीजन तथा मैगिनशयम के परमाणुआेंका निर्माण करते हैं ।
(३) जब तापमान एक अरब डिग्री तथा घनत्व एक करोड़ ग्राम प्रति घन सेंटीमीटर हो जाता है तो नाभिकीय क्रियाआें के कारण अल्फा कण उपयुक्त तत्वों से संयोग कर अपेक्षाकृत अधिक परमाणु भार वाले तत्वो (जैसे गंधक, सिलिकॉन, एल्युमिनियम तथा कैल्शियम इत्यादि) का निर्माण करते है ।
(४) जब तारे के केन्द्र का तापमान तीन अरब डिग्री हो जाता है तो नाभिकीय क्रियाएं और अधिक बढ़ जाती हैं । इस परिस्थिति में चरण १, २ व ३ में निर्मित नाभिकों, प्रोटॉनों तथा न्युट्रानों के बीच आपसी प्रतिक्रियाएं साम्यावस्था में पहुंच जाती है । ऐसी परिस्थिति में लोहे के परमाणु बनते हैं ।
(५) उपर्युक्त विधि से निर्मित हुए ये लौह परमाणु न्यूट्रॉन कणों को ग्रहण कर अपेक्षाकृत अधिक भारी तत्वों का निर्माण करते हैं । वैज्ञानिकों के अनुसार इस विधि से परमाणु भार २०९ (बिस्मथ) तक के तत्वों का निर्माण होता है ।
प्रयोगशाला में परमाणुआें पर किए गए प्रयोगों द्वारा उपर्युक्त परिकल्पना की पुष्टि होती है । प्रयोगों द्वारा यह प्रमाणित हो चुका है कि लगभग सभी नाभिक न्यूट्रॉनों का अधिग्रहण करते हैं तथा इसके कारण नए तत्वों का निर्माण संभव होता है । जो नाभिक न्यूट्रॉन कणों का अधिग्रहण शीघ्रता से करते हैं वे नाभिक निर्माण की प्रक्रियासमाप्त् होने पर अपेक्षाकृत कम होते हैं । इसकी वजह यह है कि उनमें से अधिकांश नाभिक न्यूट्रॉन अधिग्रहण प्रतिक्रियाद्वारा अन्य नाभिकों में परिवर्तित हो जाते हैं । इसके विपरीत जो नाभिक न्यूट्रॉन अधिग्रहण धीमी गति से करते हैं उनकी प्रचुरता अपेक्षाकृत अधिक पाई जाती है ।
उपर्युक्त सिद्धान्त के विरूद्ध अनेक वैज्ञानिकों ने असहमति जताई है । उनके मतानुसार परमाणु भारों के क्रम मेंसंख्याएं ५ तथा ८ रिक्त हैं । अर्थात ५ तथा ८ परमाणु भार वाले तत्व स्थाई नहीं होते ।
प्रयोगशाला में हीलियम पर तीव्र ऊर्जा वाले न्यूट्रॉनों का प्रहार करके हीलियम-५ का निर्माण किया तो जा सकता है परन्तु वह अविलम्ब हीलियम-४ में परिवर्तित हो जाती है ।
सारणी १ : पृथ्वी पर उपस्थित प्रमुख तत्वों की प्रचुरता
तत्व प्रचुरता(%)
लोहा ३४.८२
हमारी पृथ्वी पर उपस्थित तत्वों में कई ऐसे है जो प्रकृतिमें प्रचुर परिणाम में उपलब्ध हैं । ऐसे तत्वों में शामिल हैं ऑक्सीजन, सिलिकॉन, कार्बन इत्यादि । कुछ तत्व ऐसे हैं जो सामान्य परिमाण में पाए जाते हैं जैसे लोहा, तांबा, चांदी इत्यादि । कुछ अन्य तत्वों की मात्रा पृथ्वी पर बहुत कम है । इनमें शामिल हैं रेडियम, थोरियम, युरेनियम इत्यादि ।
एफ.डब्ल्यू. क्लार्क नामक वैज्ञानिक द्वारा किए गए अध्ययनों से जानकारी मिली है कि पृथ्वी पर उपस्थित तत्वों का लगभग ९९ प्रतिशत भाग सिर्फ १२ तत्वों से निर्मित है । इन १२ प्रमुख तत्वों में शामिल है ऑक्सीजन, सिलिकॉन, लोहा, एल्युमिनियम, कैल्शियम, सोडियम, पोटेशियम, मैग्नीशियम, हाइड्रोजन, टाइटेनियम, क्लोरीन तथा कार्बन । अन्य तत्वों की मिली-जुली मात्रा सिर्फ १.० प्रतिशत है । ये आंकड़े पृथ्वी की पर्पटी (क्रस्ट) से प्राप्त् अनेक प्रकार की चट्टानों के विश्लेषण से प्राप्त् हुए है ।
अनेक वैज्ञानिकों ने क्लार्क द्वारा प्राप्त् आंकड़ों के आधार पर किसी भी प्रकार का निष्कर्ष निकालने में असहमति व्यक्त की है । इन वैज्ञानिकों ने आपत्ति उठाई है कि भूपर्पटी से प्राप्त् चट्टानों का रासायनिक संघटन एक समान नहीं है । साथ ही भूपर्पटी में अधिक गहराईयों पर मौजूद चट्टानों के नमूने प्राप्त् करना भी असंभव है । ऐसी परिस्थिति में क्लार्क द्वारा प्राप्त् आंकड़े पूरी पृथ्वी का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकते ।
परन्तु इन वैज्ञानिकों द्वारा उठाई गई आपत्तियां उचित नहीं मालूम पड़ती । श्री क्लार्क ने इन संभावित आपत्तियों को ध्यान में रखकर ही विभिन्न गहराईयों से प्राप्त् चट्टानों के रासायनिक संघटन के संबंध में कुछ अनुमान लगाए थे । ये अनुमान सिर्फ कोरी कल्पनाआें पर ही आधारित नहीं थे बल्कि पृथ्वी के भीतर भूकम्पीय तरंगों की गति के अध्ययन पर आधारित थे । इतना ही नहीं भूसतह से अनेक भागों से प्राप्त् उल्का पत्थरों का भी विश्लेषण किया गया था । पृथ्वी की उत्पत्ति से संबंधित ग्रहाणु परिकल्पना के समर्थकों के मतानुसार उल्का पत्थरों का रासायनिक संघटन ग्रहाणुआें के रासायनिक संघटन के समतुल्य माना जा सकता है । अत: उल्का पत्थरोंके रासायनिक विश्लेषण से पृथ्वी के रासायनिक संघटन के संबंध मेंउपयोगी संकेत प्राप्त् हो सकते है ।
भूकंप जनित तरंगो की गति एवं उल्का पत्थरोंके रासायनिक विश्लेषण से यह निष्कर्ष निकाला गया है कि पृथ्वी के सबसे भीतरी भाग क्रोड मेंलोहा, निकेल तथा अल्प मात्रा में सल्फाइड ट्रायोलाइट मौजूद हैं । क्रोड के बाहर पृथ्वी की दूसरी परत मैंटल के खनिज तथा रासायनिक संघटन के संबंध में भूवैज्ञानिक लोग अभी तक एकमत नहीं हैं । प्रसिद्ध अमरीकी भूविज्ञानवेत्ता मैसन तथा वांशिगटन ने अनुमान लगाए हैं कि मैंटल में मुख्यत: पेरिडोटाइट नामक चट्टान उपस्थित है जिसमें लोहा तथा मैग्नीशियम प्रमुख तत्व हैं । स्मिथ नामक एक अन्य भूविज्ञानवेत्ता का विचार है कि मैंटल में उस प्रकार के सिलिकेट मौजूद है जिस प्रकार के सिलिकेट चट्टानी उल्काआें में पाए जाते हैं । स्मिथ के मतानुसार पृथ्वी में उपस्थित १५ तत्वों की प्रचुरता सारणी १ में दिखाई गई है ।
तत्वों की उत्पत्ति के संबंध में कई वैज्ञानिकों ने समय-समय पर विचार व्यक्ति किए हैं । शुरू-शुरू में कुछ वैज्ञानिकों ने साम्य सिद्धान्त (इक्विलिब्रियम थ्योरी) का प्रतिपादन किया । इस सिद्धान्त के अनुसार जिन तत्वोंको आज हम देखते हैं, वे काफी उच्च् तापमान पर निर्मित नाभिकीय कणों के हिमीकृत रूप हैं । परन्तु इस सिद्धान्त की सबसे बड़ी त्रुटि यह है कि इसके द्वारा ब्रह्माण्ड स्तर पर तत्वों की प्रचुरता की व्याख्या संतोषजनक ढंग से नहीं हो पाती । इसी कारण से यह सिद्धान्त अधिक लोकप्रिय नहीं है ।
साम्य सिद्धान्त के विपरीत कुछ वैज्ञानिकों ने असाम्य सिद्धान्त (नॉन इक्विलिब्रियम थ्योरी) का प्रतिपादन किया है । इस सिद्धान्त का प्रतिपादन तथा समर्थन करने वालों में शामिल थे जॉर्ज गैमोव तथा अल्फर आदि । इस सिद्धान्त के अनुसार प्रांरभ में ब्रह्माण्ड के सभी पदार्थ सिर्फ न्यूट्रॉन कणों से निर्मित थे । कुछ समय के बाद न्यूट्रॉन फैलने लगा जिसके फलस्वरूप इसके दो खंड हो गए । इन दो खण्डो में एक था प्रोटॉन तथा दूसरा था इलेक्ट्रॉन । धीरे-धीरे प्रोटॉन कणों ने न्यूट्रॉन कणों को अपने में समाहित करना शुरू किया । इस प्रकार धीरे-धीरे न्यूट्रॉन कणों के संश्लेषण तथा बीटा कणोंके क्षरण से तत्वों का निर्माण होने लगा ।
परन्तु कुछ ही समय बाद असाम्य सिद्धान्त में भी एक बहुत बड़ी त्रुटि नजर आने लगी । यह सिद्धान्त भी ब्रह्माण्ड स्तर पर तत्वों की प्रचुरता की व्याख्या करने में असमर्थ रहा । उदाहरणार्थ इस सिद्धान्त से यह स्पष्ट नहीं होता कि तत्वों में लोहे की इतनी अधिक प्रचुरता कैसे संभव हुई ? इतना ही नहीं इससे यह भी स्पष्ट नहीं होता कि ५ या ८ से अधिक परमाणु भार वाले तत्वों की उत्पत्ति कैसे हुई ? क्योंकि हीलियम तथा बेरिलियम (परमाणु भार क्रमश: ५ तथा ८), जो न्यूट्रॉन पकड़ विधि से निर्मित होते हैं, बहुत कम आयु वाले हैं । देखा गया है कि निर्माण के कुछ ही समय बाद इन तत्वों का क्षरण हो जाता है तथा ये पुन: हीलियम-४ में बदल जाते हैं । कहने का तात्पर्य यह है कि इस विधि द्वारा अधिक हीलियम-४ के परमाणु भार वाले तत्वों तक का निर्माण संभव है ।
सन् १९५७ में संसार के तीन प्रसिद्ध वैज्ञानिकों (बर्बीज, हॉयल तथा फाउलर) ने बताया कि सौर परिवार में पाए जाने वाले तत्वों का निर्माण सूर्य में होने वाली नाभिकीय क्रिया द्वारा हुआ । इस विधि द्वारा उत्पन्न होने वाला सबसे पहला तत्व था हाइड्रोजन । अन्य तत्व हाइड्रोजन से ही उत्पन्न हुए । सूर्य की सतह पर नाभिकीय क्रिया द्वारा सतत विधि में तत्वों के निर्माण के निम्नलिखित पांच चरण थे :-
(१) प्रत्येक तारे में हाइड्रोजन लगातार न्यूट्रॉन ग्रहण कर हीलियम में परिवर्तित हो रही है । किन्तु इसके लिए जरूरी है कि तारे के केन्द्र का तापमान एक करोड़ डिग्री हो तथा उसका घनत्व लगभग १०० ग्राम प्रति घन सेंटीमेंटीर हो ।
(२) जब तापमान १० करोड़ डिग्री तथा घनत्व का एक लाख ग्राम प्रति घन सेंटीमीटर के आसपास रहता है तो उपर्युक्त विधि द्वारा निर्मित हीलियम कार्बन के परमाणुआेंमें परिवर्तित हो जाती है । इस परिस्थिति में हीलियम के तीन परमाणु आपस में मिलकर कार्बन के एक परमाणु का निर्माण करते हैं । कार्बन के येपरमाणु हीलियम के अन्य परमाणुआें को ग्रहण कर ऑक्सीजन तथा मैगिनशयम के परमाणुआेंका निर्माण करते हैं ।
(३) जब तापमान एक अरब डिग्री तथा घनत्व एक करोड़ ग्राम प्रति घन सेंटीमीटर हो जाता है तो नाभिकीय क्रियाआें के कारण अल्फा कण उपयुक्त तत्वों से संयोग कर अपेक्षाकृत अधिक परमाणु भार वाले तत्वो (जैसे गंधक, सिलिकॉन, एल्युमिनियम तथा कैल्शियम इत्यादि) का निर्माण करते है ।
(४) जब तारे के केन्द्र का तापमान तीन अरब डिग्री हो जाता है तो नाभिकीय क्रियाएं और अधिक बढ़ जाती हैं । इस परिस्थिति में चरण १, २ व ३ में निर्मित नाभिकों, प्रोटॉनों तथा न्युट्रानों के बीच आपसी प्रतिक्रियाएं साम्यावस्था में पहुंच जाती है । ऐसी परिस्थिति में लोहे के परमाणु बनते हैं ।
(५) उपर्युक्त विधि से निर्मित हुए ये लौह परमाणु न्यूट्रॉन कणों को ग्रहण कर अपेक्षाकृत अधिक भारी तत्वों का निर्माण करते हैं । वैज्ञानिकों के अनुसार इस विधि से परमाणु भार २०९ (बिस्मथ) तक के तत्वों का निर्माण होता है ।
प्रयोगशाला में परमाणुआें पर किए गए प्रयोगों द्वारा उपर्युक्त परिकल्पना की पुष्टि होती है । प्रयोगों द्वारा यह प्रमाणित हो चुका है कि लगभग सभी नाभिक न्यूट्रॉनों का अधिग्रहण करते हैं तथा इसके कारण नए तत्वों का निर्माण संभव होता है । जो नाभिक न्यूट्रॉन कणों का अधिग्रहण शीघ्रता से करते हैं वे नाभिक निर्माण की प्रक्रियासमाप्त् होने पर अपेक्षाकृत कम होते हैं । इसकी वजह यह है कि उनमें से अधिकांश नाभिक न्यूट्रॉन अधिग्रहण प्रतिक्रियाद्वारा अन्य नाभिकों में परिवर्तित हो जाते हैं । इसके विपरीत जो नाभिक न्यूट्रॉन अधिग्रहण धीमी गति से करते हैं उनकी प्रचुरता अपेक्षाकृत अधिक पाई जाती है ।
उपर्युक्त सिद्धान्त के विरूद्ध अनेक वैज्ञानिकों ने असहमति जताई है । उनके मतानुसार परमाणु भारों के क्रम मेंसंख्याएं ५ तथा ८ रिक्त हैं । अर्थात ५ तथा ८ परमाणु भार वाले तत्व स्थाई नहीं होते ।
प्रयोगशाला में हीलियम पर तीव्र ऊर्जा वाले न्यूट्रॉनों का प्रहार करके हीलियम-५ का निर्माण किया तो जा सकता है परन्तु वह अविलम्ब हीलियम-४ में परिवर्तित हो जाती है ।
सारणी १ : पृथ्वी पर उपस्थित प्रमुख तत्वों की प्रचुरता
तत्व प्रचुरता(%)
लोहा ३४.८२
सोडियम ०.५६
ऑक्सीजन २९.२६
ऑक्सीजन २९.२६
क्रोमियम ०.२६
सिलिकॉन १४.६७
सिलिकॉन १४.६७
मैंग्नीज ०.२२
मैग्नीशियम ११.२८
मैग्नीशियम ११.२८
कोबाल्ट ०.१७
गंधक ३.२९
गंधक ३.२९
फॉस्फोरस ०.१५
निकेल २.४३
निकेल २.४३
पोटेशियम ०.१४
कैल्शियम १.४०
कैल्शियम १.४०
टाइटेनियम ०.०७
एल्यूमिनियम १.२४
एल्यूमिनियम १.२४
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