बुधवार, 12 जून 2013

संपादकीय 
खतरे में है, चंबल नदी की डॉल्फिन

        यदि समय रहते प्रयास नहीं किए गए तो चंबल नदी से डॉल्फिन मछली विलुप्त् हो सकती है, इस साल फरवरी में हुए ताजा सर्वे में चंबल नदी में सिर्फ ५९ डॉल्फिन ही पाई गई है । केन्द्र, राज्य और वर्ल्ड बैंक की ओर से इस नदी में इस दुर्लभ मछली के संरक्षण के लिए फिलहाल कोई प्रोजेक्ट नहींचलाया जा रहा है । सन् १९७८ में चंबल सेंचुरी बनाई तो गई थी लेकिन इसका एकमेव मकसद सिर्फ घड़ियालों का संरक्षण करना था, यही वजह है कि संरक्षण के अभाव में चंबल में डॉल्फिन की संख्या कम होती जा रही है । चंबल नदी में डॉल्फिन के पाए जाने का एक विशिष्ट चिन्हित क्षेत्र है । यह चंबल नदी मुरैना स्थित नंदगाव घाट, रेल्वे ब्रिज, बरही, सहसों से लेकर इटावा के चक्रनगर तक के क्षेत्र में पाई जाती है । वैसे भारत में डॉल्फिन गंगा एवं ब्रहम्पुत्र नदी में ही पाई जाती है लेकिन साफ स्वच्छ पानी में ही रहने की आदी यह मछली गंगा नदी से चंबल में भी आ गई है । यही वजह है कि चंबल में पाए जाने वाले इस दुर्लभ स्तनधारी जीव को गंगेट डॉल्फिन भी कहा जाता है ।
    चंबल में डॉल्फिन की तादाद कम होते जाने के पीछे कुछ दुखद कारण भी है । डॉल्फिन के तेल से मानव शरीर के जोड़ों का असाध्य दर्द ठीक हो जाता है, यही वजह है कि इस भ्रांति के शिकार होकर कुछ लोग डॉल्फिन को पकड़कर इसे जलाकर मार देते हैं और फिर इसका तेल निकालकर इसका व्यावसायिक उपयोग करते हैं, डॉल्फिन पर आए दिन मंडराने वाले इस खतरे को रोकने के लिए चंबल के घाटों पर कोई सख्त सुरक्षा प्रबंध नहीं किए गए हैं ।
    जलीय प्रदूषण के कारण तो यहां डॉल्फिन की मौत हो ही रही है । मुरैना एवं धौलपुर के बीच स्थित राजघाट पुल पर निकलने वाले वाहनों के भारी शोरशराबे एवं धुंए के कारण भी डॉल्फिन दम तोड़ रही हैं । डॉल्फिन चंबल के गहरे पानी में ही पाई जाती है लेकिन चंबल के घाटों पर होने वाले रेत के अवैध उत्खनन के कारण भी इस दुलर्भ मछली के अस्त्तिव पर संकट मंडरा रहा है । सुप्रीम कोर्ट द्वारा रेत उत्खन्न पर रोक लगाए जाने के बावजूद प्रशासन के लचर रवैए के कारण यहां के घाटों पर रेत-उत्खनन बेरोकटोक जारी है ।

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