सोमवार, 12 अगस्त 2013

पर्यावरण समाचार
 पहाड़ों को बचाने के लिए बने हिमालय नीति : बहुगुणा
    उत्तराखंड में पुनर्वास और बहाली की कवायद के बीच पर्यावरणविद् संुदरलाल बहुगुणा ने कहा है कि तात्कालिक उपाय करने की बजाए अलग हिमालय नीति बनाकर ही पहाड़ों को भविष्य में भी प्राकृतिक आपदाआें से बचाया जा सकता है । ८६ वर्षीय श्री बहुगुणा ने कहा कि मैंने अपना पुरा जीवन हिमालय को बचाने की मुहिम में लगा दिया है । मैं निराश नहीं हॅूं बल्कि खुशी हैं कि मैं लोगों को जागृत कर सका । मैं पुन: पुरजोर तरीके से मांग करता हॅूं कि हिमालय के लिए अलग नीति बनाई जाए । हिमालय नीति में स्थायी रोजगार, विनाशकारी पर्यटन पर रोक, पानी के संकट से निपटने के उपाय और हरित पुनर्वास जैसे सभी अहम मसले शामिल किए जाए ।
    श्री बहुगुणा ने कहा, कि पहाड़ों पर फलदार और पशुआें को चारा देने वाले पेड़ लगाए जाएं । स्थायी रोजगार के उपाय भी जरूरी हैं । पानी के संकट को आने वाले समय कि भीषण समस्या बताते हुए श्री बहुगुणा ने कहा कि इससे बचने के लिए अभी से कमर कसनी होगी । आने वाले समय में पानी का संकट बहुत बड़ा होगा । इससे बचने के लिए प्राकृतिक जलाशय बनाए जाएं और छोटे-छोटे बांधो के जरिए पानी चोटी तक पहुंचाया जाए ताकि ऊपर से नीचे की ओर पानी का बहाव   रहे । उन्होने कहा कि बांध बनाना कोई हल नहीं है, बल्कि सर्पाकार गति से बहने वाली नदी को रोककर यह उसके औषधीय गुण खत्म कर देते हैं । उन्होनें कहा उत्तराखंड के हरित पुनर्वास की बातें हो रही हैं । लेकिन पेड़ लगाने भर से काम पूरा नहीं हो जाता, उनकी देखरेख भी जरूरी है ।

म.प्र. में शहर बढ़ें, लेकिन गांव घटे
    म.प्र. में जनगणना से यह तथ्य सामने आया है कि प्रदेश में ४९० गांव कम हुए है जबकि ८२ शहर बढ़े है । प्रदेश में २८.८ घरों में ही शौचालय हैं जबकि ३२.१ फीसद घरों में टीवी और ४६.८  फीसदी घरों में मोबाइल फोन हैं । सूबे की करीब ४० फीसदी  आबादी १८ साल से कम की है । सबसे ज्यादा शहरी आबादी इन्दौर जिले में और सबसे कम ग्रामीण आबादी रीवा जिले में है ।

कोई टिप्पणी नहीं: