कविता
प्रकृति हमें क्षमा करो
भरत जोशी
बादलों तुम बरसो, नदियों के लिए
नदियों तुम बहो, वृक्षों के लिए
वृक्ष तुम बढ़ो, फल-फूलों के लिए
हवाआें तुम चलो, प्राणों के लिए
हम तुम्हारे बिना अनाथ है ।
हमनें नीजि स्वार्थवश, तुम सभी
प्राकृतिक संसाधनों का शोषण किया
आज हम भुगत रहे हैं
पर्यावरण दूषित करने के नतीजे ।
तुम्हारे भी मन-विचार बदलेगें
हमनें यह सोचा भी नहीं था ।
हम, तुमसे ह्दय से क्षमा चाहते है
हमारा अस्तित्व खतरे में है
प्रकृतिहमें क्षमा करो ।
हमारें आंसू भी, हमारे पाप नहीं धोते
विचार में है, कैसेबीतेगा शेष जीवन ।
प्रकृति तुम्हारी पंचतत्व को हम
भौतिक स्वरूप में, जस का तस
रखने की शपथ लेते हैं
तुम्हारे परहित सरिस धर्म पर
सिर नवाते हैं, तुम्हारे मध्य
तुम जैसे होकर जीना चाहते हैं
हमे क्षमा करो, हमें क्षमा करो ।
प्रकृति हमें क्षमा करो
भरत जोशी
बादलों तुम बरसो, नदियों के लिए
नदियों तुम बहो, वृक्षों के लिए
वृक्ष तुम बढ़ो, फल-फूलों के लिए
हवाआें तुम चलो, प्राणों के लिए
हम तुम्हारे बिना अनाथ है ।
हमनें नीजि स्वार्थवश, तुम सभी
प्राकृतिक संसाधनों का शोषण किया
आज हम भुगत रहे हैं
पर्यावरण दूषित करने के नतीजे ।
तुम्हारे भी मन-विचार बदलेगें
हमनें यह सोचा भी नहीं था ।
हम, तुमसे ह्दय से क्षमा चाहते है
हमारा अस्तित्व खतरे में है
प्रकृतिहमें क्षमा करो ।
हमारें आंसू भी, हमारे पाप नहीं धोते
विचार में है, कैसेबीतेगा शेष जीवन ।
प्रकृति तुम्हारी पंचतत्व को हम
भौतिक स्वरूप में, जस का तस
रखने की शपथ लेते हैं
तुम्हारे परहित सरिस धर्म पर
सिर नवाते हैं, तुम्हारे मध्य
तुम जैसे होकर जीना चाहते हैं
हमे क्षमा करो, हमें क्षमा करो ।
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