विज्ञान, हमारे आसपास
आकाश में भी बहती है नदियां
विमल श्रीवास्तव
दिसम्बर २०१२ की बात है । ब्रिटेन के दक्षिण पश्चिमी भाग में सागर के समीप स्थित प्लिमथ नगर में क्रिसमस की खरीददारी जोरों पर थी । तभी अचानक वहां क्रिसमस के इरादों पर जैसे प्रकृति ने अक्षरश: पानी फेर दिया - पांच दिनों तक लगातार हुई घनघोर बारिश के कारण नगर में चारों तरफ पानी ही पानी दिखने लगा । कुछ समय पूर्व ही प्लिमथ नगर के ८० किलोमीटर उत्तर में स्थित केन नदी पर बाढ़ नियंत्रण के प्रबंध किए गए थे, जिनकी कुल कीमत करोड़ों रूपए आई थी । किन्तु प्रकृति के प्रकोप ने उन सभी व्यवस्थाआें को असफल कर दिया । भयंकर बाढ़ ने केवल प्लिमथ नगर ही बल्कि उसके निकट स्थित ब्रॉटन नगर तथा आसपास के अनेक स्थानों में कई-कई फुट तक पानी भर दिया जिससे उन क्षेत्रों का रेलवे संपर्क पूरे छह दिनों तक कटा रहा ।
आकाश में भी बहती है नदियां
विमल श्रीवास्तव
दिसम्बर २०१२ की बात है । ब्रिटेन के दक्षिण पश्चिमी भाग में सागर के समीप स्थित प्लिमथ नगर में क्रिसमस की खरीददारी जोरों पर थी । तभी अचानक वहां क्रिसमस के इरादों पर जैसे प्रकृति ने अक्षरश: पानी फेर दिया - पांच दिनों तक लगातार हुई घनघोर बारिश के कारण नगर में चारों तरफ पानी ही पानी दिखने लगा । कुछ समय पूर्व ही प्लिमथ नगर के ८० किलोमीटर उत्तर में स्थित केन नदी पर बाढ़ नियंत्रण के प्रबंध किए गए थे, जिनकी कुल कीमत करोड़ों रूपए आई थी । किन्तु प्रकृति के प्रकोप ने उन सभी व्यवस्थाआें को असफल कर दिया । भयंकर बाढ़ ने केवल प्लिमथ नगर ही बल्कि उसके निकट स्थित ब्रॉटन नगर तथा आसपास के अनेक स्थानों में कई-कई फुट तक पानी भर दिया जिससे उन क्षेत्रों का रेलवे संपर्क पूरे छह दिनों तक कटा रहा ।
वैसे इससे भी अधिक तबाही लगभग डेढ सौ वर्ष पूर्व वर्ष १८६१ में अमरीका के कैलीफोर्निया राज्य में स्थित सैक्रामेंटो नगर में देखी गई थी । सागर तट पर स्थित इस नगर में क्रिसमस के समय से आरम्भ होकर निरन्तर ४३ दिनों तक बारिश ही बारिश होती रही थी । इस कारण पूरे शहर में तीन-तीन मीटर तक पानी भर गया था और निकट स्थित घाटी में इतना पानी भर गया था कि वहां तीस किलोमीटर चौड़ी झील बन गई, जो महीनों तक बनी रही थी ।
प्रश्न उठता है कि जल प्रलय की उक्त दोनों घटनाएं क्यों घटित हुई थी ? क्या वे तूफान की घटनाएं भी अथवा सामान्य बारिश थी ? किन्तु भूगर्भ वैज्ञानिकों तथा मौसम शास्त्रियों की राय बिलकुल भिन्न है । उनका मानना है कि इस प्रकार की जल प्रलय की घटनाएं एक विचित्र कारण से उत्पन्न होती हैं, जिसे उन्होंने आकाशीय नदी नाम दिया है । ये नदियां सामान्य नदी की तरह धरती पर नहीं बल्कि धरती से कई किलोमीटर ऊपर आकाश अथवा बादलों में विचरण करती हैं । इन नदियों से आने वाली बाढ़ का तो कोई मुकाबला ही नहीं कर सकता है । जल विध्वंस का जीता जागता उदाहरण प्रस्तुत कर देती है ये नदियां ।
आकाशीय नदियां का मुख्य प्रयोजन जल वाष्प को एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र तक ले जाना होता है । ये नदियां भूमध्य रेखा के आसपास स्थित उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों पर बनने वाली जल वाष्प को मध्य क्षेत्रीय स्थलों तक ले जाने में सहायक होती है । उदाहरण के लिए जब इन उष्णकंटिबंधीय क्षेत्रों में गर्मी के कारण जल का वाष्पन होता है तो वाष्प ऊपर आकाश में पहुंच जाती है, जहां वायु में जल वाष्प से भरा यह क्षेत्र एक विशाल लम्बी और संकरी आकाशीय नदी का रूप ले लेता है । इस प्रकार उष्णकंटिबंधीय क्षेत्र का जल ऊपर आकाश में एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंच जाता है । इसी तरह, महासागरों का जल भी वाष्पित होकर इन आकाशीय नदियों द्वारा दूर दराज के क्षेत्रों में पहुंच जाता है । ये नदियां जल का परिवहन ठीक उसी प्रकार से करती हैं जैसे हवाई अड्डोंपर लगाए गए कन्वेयर बेल्ट यात्रियों का सामान एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचा देते हैं ।
आकाश अथवा बादलों में तैरती हुई ये नदियां हजारों किलोमीटर लंबी हो सकती हैं, तथा इनकी चौड़ाई केवल २०-३० से लेकर कुछ सौ किलोमीटर तक सीमित होती है । एक आकाशीय नदी में इतना पानी भरा होता है कि विश्व की सबसे बड़ी नदी अमेज़न (दक्षिण अमरीका) का सारा का सारा पानी भी इनके आगे कम पड़ेगा । इस प्रकार उन्हें अथवा जल राशि से भरी हुई संकरी नदियों के रूप में जाना जाता है ।
सामान्यत: किसी भी समय किसी गोलार्ध में इस प्रकार की तीन से पांच तक नदियां उपस्थित रहती हैं । इन नदियों का मुख्य प्रयोजन दक्षिण और उत्तर क्षेत्रों के बीच जल का परिवहन करना होता है । इन क्षेत्रों में लगभग ९० प्रतिशत जल परिवहन नहीं आकाशीय नदियों द्वारा होता है, जबकि इन नदियों के संकरे आकार के चलते ये पृथ्वी की परिधि का केवल १० प्रतिशत भाग घेरती है । मुख्यत: उत्तरी गोलार्ध के मध्य क्षेत्रीय भाग में, पश्चिमी युरोप में तथा उत्तरी अमरीका के पश्चिमी तटीय क्षेत्रों में जल विप्लव की अधिकतर घटनाएं इन्हीं आकाशीय नदियों के कारण होती हैं । जब ये अपना विकराल रूप दिखाती हैं, तो लगता है कि बादल फट रहे हैं और आकाश टूट पड़ा है । बारिश का प्रकोप कई-कई घंटों से लेकर कई-कई दिनों तक चलता है । इसके अलावा वर्षा की रफ्तार इतनी तेज होती है कि लगता है जैसे फायर ब्रिगेड वाले आग बुझाने का पाइप चला रहा हो ।
आकाशीय नदियों की खोज का श्रेय यूएसए के एम.आई.टी. के वैज्ञानिक रेजिनाल्ड नेवेल तथा योंगझू को जाता है । और आश्चर्य की बात तो यह है कि यह खोज अभी हाल ही में वर्ष १९९८ में (अर्थात केवल १५ वर्ष पूर्व) की गई है । इन वैज्ञानिकों ने मौसम संबंधी रिकॉर्ड के अध्ययन के आधार पर आकाशीय नदियों की उपस्थिति के कई प्रमाण प्रस्तुत किए थे ।
वास्तव में इस प्रकार के जबरदस्त जल प्रलय का आना विश्व के अनेक भागों में एक आम बात मानी जाती थी, किन्तु इनका वास्तविक कारण ठीक से ज्ञात नहीं था, और अधिकतर इन्हें एक प्रकार का तूफान माना जाता था । उदाहरण के लिए, अमरीका के कैलीफोर्निया में प्राय: सर्दियों में जलीय तूफान आते हैं जो गर्म पानी से पूर्ण होते हैं । इनकी उत्पत्ति पश्चिम में प्रशांत महासागर में स्थित हवाई द्वीपों के क्षेत्र से होती है । इसे पाइनऐपल एक्सप्रेस नाम दिया गया है । वैसे यह भी आकाशीय नदी का एक प्रकार होता है और यह भी देखा गया है कि कैलीफोर्निया राज्य इन आकाशीय नदियों के कारण बहुत अधिक प्रभातिव होता है ।
ऐसा नहीं है कि सभी प्रकार की आकाशीय नदियां विपलवकारी होती है । ये अनेक लाभदायक कार्य भी करती हैं । यदि इन नदियों में जल वाष्प का प्रकोप इतना शक्तिशाली न हो, तो ये विभिन्न क्षेत्रों में पानी का परिवहन करती हैं, तथा बर्फ भी उत्पन्न करती हैं जिस कारण उन क्षेत्रों को लाभ पहुंचता है । किन्तु अधिक शक्तिशाली होने पर ये बाढ़, भूस्खलन आदि द्वारा अत्यधिक हानि पहुंचा सकती है ।
वैसे आकाशीय नदी की खोज से पूर्व, अचानक आई जल प्रलय की घटनाआें को तूफान समझा जाता था । किन्तु आकाशीय नदी और बहुचर्चित शब्द तूफान एक-दूसरे से भिन्न हैं । तूफान के केन्द्र में मुख्यत: वायु के कम दबाव वाला क्षेत्र होता है, और सबसे अधिक प्रचंड मौसमी प्रकोप उसी केन्द्र के आसपास दिखता है । दूसरी ओर, आकाशीय नदी में मौसमी प्रकोप उसके ब्राह्मा भागों में ज्यादा होते हैं ।
आकाशीय नदियों की प्रचंडता उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों के निकट अधिक प्रभावकारी होती है, क्योंकि वहां पर वातावरण का तापमान अधिक होता है, जिसके कारणवायु में जल वाष्प की मात्रा अधिक हो जाती है । जैसे-जैसे यह वाष्प पृथ्वी पर उत्तर दिशा में बढ़ती है, वातावरण का तापमान कम होने लगता है, और आकाशीय नदियों में जल वाष्प की मात्रा भी कम होने लगती है । इसलिए जल प्रलय भी उतना उपद्रवी नहीं होता ।
आकाशीय नदियां क्यों उत्पन्न होती है, इसका अभी तक कोई समुचित उत्तर नहीं मिल पाया है । वैज्ञानिक अभी खोज कर रहे हैं । नई-नई खोज होने के कारण आकाशीय नदियों से संबंधित और भी अनेक जानकारी अभी तक पूरी तरह से नहीं मिल पाई है ।
दूसरा प्रश्न यह उठता है कि क्या आकाशीय नदियों का पूर्वानुमान किया जा सकता है, जैसे समुद्री तूफान के आने की पूर्व सूचना मौसम विभाग द्वारा उपलब्ध कराई जाती है ? इसके लिए अमरीका सरकार कैलीफोर्निया राज्य के निकट कुछ मौसम केन्द्रों का निर्माण करा रही है, जहां आकाशीय नदियों के रिकार्ड इकट्ठे किए जाएंगे, तथा वायु तथा जल वाष्प की गति, मात्रा, दिशा आदि के अवलोकन व मापन के आधार पर इन घटनाआें का पूर्वानुमान किया जा सकेगा । संभवत: वर्ष २०१४ तक ये केन्द्र काम करने लगेंगे । यदि यह केन्द्र सफल होता है तो विश्व के दूसरे भागों में भी इसी प्रकार के केन्द्रों के निर्माण की कोशिश होगी । प्रत्यक्ष है कि इस सबमें समय लग सकता है और इस केन्द्र को इसमें कितनी सफलता मिल पाएगी यह अभी स्पष्ट नहीं है ।
आकाशीय नदियों पर किए गए शोध और अनुसंधान के फलस्वरूप और भी अनेक नए-नए तथ्यों के उजागर होने की संभावना है । हो सकता है कि पूर्व में घटित या भविष्य में घटनी वाली जल प्रलय की अनेक घटनाआें के असली कारणों का भी पता चल जाए जिन्हें अभी तक भीषण तूफान या अन्य मौसमी प्रभाव माना जाता रहा है । यह भी हो सकता है कि निकट भविष्य में इनके पूर्वानुमान तथा संभावित बाढ़ से बचाव के भी कुछ उपाय लागू किए जा सके ।
प्रश्न उठता है कि जल प्रलय की उक्त दोनों घटनाएं क्यों घटित हुई थी ? क्या वे तूफान की घटनाएं भी अथवा सामान्य बारिश थी ? किन्तु भूगर्भ वैज्ञानिकों तथा मौसम शास्त्रियों की राय बिलकुल भिन्न है । उनका मानना है कि इस प्रकार की जल प्रलय की घटनाएं एक विचित्र कारण से उत्पन्न होती हैं, जिसे उन्होंने आकाशीय नदी नाम दिया है । ये नदियां सामान्य नदी की तरह धरती पर नहीं बल्कि धरती से कई किलोमीटर ऊपर आकाश अथवा बादलों में विचरण करती हैं । इन नदियों से आने वाली बाढ़ का तो कोई मुकाबला ही नहीं कर सकता है । जल विध्वंस का जीता जागता उदाहरण प्रस्तुत कर देती है ये नदियां ।
आकाशीय नदियां का मुख्य प्रयोजन जल वाष्प को एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र तक ले जाना होता है । ये नदियां भूमध्य रेखा के आसपास स्थित उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों पर बनने वाली जल वाष्प को मध्य क्षेत्रीय स्थलों तक ले जाने में सहायक होती है । उदाहरण के लिए जब इन उष्णकंटिबंधीय क्षेत्रों में गर्मी के कारण जल का वाष्पन होता है तो वाष्प ऊपर आकाश में पहुंच जाती है, जहां वायु में जल वाष्प से भरा यह क्षेत्र एक विशाल लम्बी और संकरी आकाशीय नदी का रूप ले लेता है । इस प्रकार उष्णकंटिबंधीय क्षेत्र का जल ऊपर आकाश में एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंच जाता है । इसी तरह, महासागरों का जल भी वाष्पित होकर इन आकाशीय नदियों द्वारा दूर दराज के क्षेत्रों में पहुंच जाता है । ये नदियां जल का परिवहन ठीक उसी प्रकार से करती हैं जैसे हवाई अड्डोंपर लगाए गए कन्वेयर बेल्ट यात्रियों का सामान एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचा देते हैं ।
आकाश अथवा बादलों में तैरती हुई ये नदियां हजारों किलोमीटर लंबी हो सकती हैं, तथा इनकी चौड़ाई केवल २०-३० से लेकर कुछ सौ किलोमीटर तक सीमित होती है । एक आकाशीय नदी में इतना पानी भरा होता है कि विश्व की सबसे बड़ी नदी अमेज़न (दक्षिण अमरीका) का सारा का सारा पानी भी इनके आगे कम पड़ेगा । इस प्रकार उन्हें अथवा जल राशि से भरी हुई संकरी नदियों के रूप में जाना जाता है ।
सामान्यत: किसी भी समय किसी गोलार्ध में इस प्रकार की तीन से पांच तक नदियां उपस्थित रहती हैं । इन नदियों का मुख्य प्रयोजन दक्षिण और उत्तर क्षेत्रों के बीच जल का परिवहन करना होता है । इन क्षेत्रों में लगभग ९० प्रतिशत जल परिवहन नहीं आकाशीय नदियों द्वारा होता है, जबकि इन नदियों के संकरे आकार के चलते ये पृथ्वी की परिधि का केवल १० प्रतिशत भाग घेरती है । मुख्यत: उत्तरी गोलार्ध के मध्य क्षेत्रीय भाग में, पश्चिमी युरोप में तथा उत्तरी अमरीका के पश्चिमी तटीय क्षेत्रों में जल विप्लव की अधिकतर घटनाएं इन्हीं आकाशीय नदियों के कारण होती हैं । जब ये अपना विकराल रूप दिखाती हैं, तो लगता है कि बादल फट रहे हैं और आकाश टूट पड़ा है । बारिश का प्रकोप कई-कई घंटों से लेकर कई-कई दिनों तक चलता है । इसके अलावा वर्षा की रफ्तार इतनी तेज होती है कि लगता है जैसे फायर ब्रिगेड वाले आग बुझाने का पाइप चला रहा हो ।
आकाशीय नदियों की खोज का श्रेय यूएसए के एम.आई.टी. के वैज्ञानिक रेजिनाल्ड नेवेल तथा योंगझू को जाता है । और आश्चर्य की बात तो यह है कि यह खोज अभी हाल ही में वर्ष १९९८ में (अर्थात केवल १५ वर्ष पूर्व) की गई है । इन वैज्ञानिकों ने मौसम संबंधी रिकॉर्ड के अध्ययन के आधार पर आकाशीय नदियों की उपस्थिति के कई प्रमाण प्रस्तुत किए थे ।
वास्तव में इस प्रकार के जबरदस्त जल प्रलय का आना विश्व के अनेक भागों में एक आम बात मानी जाती थी, किन्तु इनका वास्तविक कारण ठीक से ज्ञात नहीं था, और अधिकतर इन्हें एक प्रकार का तूफान माना जाता था । उदाहरण के लिए, अमरीका के कैलीफोर्निया में प्राय: सर्दियों में जलीय तूफान आते हैं जो गर्म पानी से पूर्ण होते हैं । इनकी उत्पत्ति पश्चिम में प्रशांत महासागर में स्थित हवाई द्वीपों के क्षेत्र से होती है । इसे पाइनऐपल एक्सप्रेस नाम दिया गया है । वैसे यह भी आकाशीय नदी का एक प्रकार होता है और यह भी देखा गया है कि कैलीफोर्निया राज्य इन आकाशीय नदियों के कारण बहुत अधिक प्रभातिव होता है ।
ऐसा नहीं है कि सभी प्रकार की आकाशीय नदियां विपलवकारी होती है । ये अनेक लाभदायक कार्य भी करती हैं । यदि इन नदियों में जल वाष्प का प्रकोप इतना शक्तिशाली न हो, तो ये विभिन्न क्षेत्रों में पानी का परिवहन करती हैं, तथा बर्फ भी उत्पन्न करती हैं जिस कारण उन क्षेत्रों को लाभ पहुंचता है । किन्तु अधिक शक्तिशाली होने पर ये बाढ़, भूस्खलन आदि द्वारा अत्यधिक हानि पहुंचा सकती है ।
वैसे आकाशीय नदी की खोज से पूर्व, अचानक आई जल प्रलय की घटनाआें को तूफान समझा जाता था । किन्तु आकाशीय नदी और बहुचर्चित शब्द तूफान एक-दूसरे से भिन्न हैं । तूफान के केन्द्र में मुख्यत: वायु के कम दबाव वाला क्षेत्र होता है, और सबसे अधिक प्रचंड मौसमी प्रकोप उसी केन्द्र के आसपास दिखता है । दूसरी ओर, आकाशीय नदी में मौसमी प्रकोप उसके ब्राह्मा भागों में ज्यादा होते हैं ।
आकाशीय नदियों की प्रचंडता उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों के निकट अधिक प्रभावकारी होती है, क्योंकि वहां पर वातावरण का तापमान अधिक होता है, जिसके कारणवायु में जल वाष्प की मात्रा अधिक हो जाती है । जैसे-जैसे यह वाष्प पृथ्वी पर उत्तर दिशा में बढ़ती है, वातावरण का तापमान कम होने लगता है, और आकाशीय नदियों में जल वाष्प की मात्रा भी कम होने लगती है । इसलिए जल प्रलय भी उतना उपद्रवी नहीं होता ।
आकाशीय नदियां क्यों उत्पन्न होती है, इसका अभी तक कोई समुचित उत्तर नहीं मिल पाया है । वैज्ञानिक अभी खोज कर रहे हैं । नई-नई खोज होने के कारण आकाशीय नदियों से संबंधित और भी अनेक जानकारी अभी तक पूरी तरह से नहीं मिल पाई है ।
दूसरा प्रश्न यह उठता है कि क्या आकाशीय नदियों का पूर्वानुमान किया जा सकता है, जैसे समुद्री तूफान के आने की पूर्व सूचना मौसम विभाग द्वारा उपलब्ध कराई जाती है ? इसके लिए अमरीका सरकार कैलीफोर्निया राज्य के निकट कुछ मौसम केन्द्रों का निर्माण करा रही है, जहां आकाशीय नदियों के रिकार्ड इकट्ठे किए जाएंगे, तथा वायु तथा जल वाष्प की गति, मात्रा, दिशा आदि के अवलोकन व मापन के आधार पर इन घटनाआें का पूर्वानुमान किया जा सकेगा । संभवत: वर्ष २०१४ तक ये केन्द्र काम करने लगेंगे । यदि यह केन्द्र सफल होता है तो विश्व के दूसरे भागों में भी इसी प्रकार के केन्द्रों के निर्माण की कोशिश होगी । प्रत्यक्ष है कि इस सबमें समय लग सकता है और इस केन्द्र को इसमें कितनी सफलता मिल पाएगी यह अभी स्पष्ट नहीं है ।
आकाशीय नदियों पर किए गए शोध और अनुसंधान के फलस्वरूप और भी अनेक नए-नए तथ्यों के उजागर होने की संभावना है । हो सकता है कि पूर्व में घटित या भविष्य में घटनी वाली जल प्रलय की अनेक घटनाआें के असली कारणों का भी पता चल जाए जिन्हें अभी तक भीषण तूफान या अन्य मौसमी प्रभाव माना जाता रहा है । यह भी हो सकता है कि निकट भविष्य में इनके पूर्वानुमान तथा संभावित बाढ़ से बचाव के भी कुछ उपाय लागू किए जा सके ।
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