कविता
पर्यावरणीय कुण्डलियां
रामसनेही लाल शर्मा, यायावर
पेड़ धरा के पुत्र हैं, उन पर किया प्रहार ।
उस दिन मानव ने लिखा, अपना उप संहार ।।
अपना उप संहार, कटे जब आम, नीम, वट ।
कटे कदम्ब, पलाश, करौंदा, जामुन, नटखट ।
अब मधुवन की पवन, हंसे किसको सहरा के
जब अशोक तरू जुही, कटे सब वृक्ष धरा के
बर्बादी हंसने लगी, रोने लगा विकास ।
जल ध्वनि, पवन, विनाश का, जब गुंजा कटु हास ।।
जब गुंजा कटु हास, पवन लगती जहरीली
नदी लिए तेजाब, हुई हर लहर विषैली
बढ़ता जाता शोर, बढ़ रही है आबादी
दूषित पर्यावरण, रच रहा है बर्बादी ष्ट ।
पीपर पांती कट गयाी, सूखे कुंज-निकुंज
यमुना-तट से कट गये, श्याम-स्नेह के पुंज
श्याम-स्नेह के पुंजरो रही सुखी यमुना
उठें बगूले गर्म, रेत लावा का झरना
यमुना कुंज कदम्ब कहां? पूछेगा नाती
बाबा कहां विलुप्त् हो गयी पीपर पांती
वन-उपवन, संस्कृति-धरा, जल, नभ, संस्कृतिरूप
सबको देकर यातना, करता मनुज कुरूप,
करता मनुज कुरूप, कांटता है वृक्षों को
सजा रहा है मरे, पादपों से कक्षों को
कल्प वृक्ष को रखता था पावन नन्दन वन
देवों को प्रिय विपिन काटते हम वन-उपवन ।
पर्यावरणीय कुण्डलियां
रामसनेही लाल शर्मा, यायावर
पेड़ धरा के पुत्र हैं, उन पर किया प्रहार ।
उस दिन मानव ने लिखा, अपना उप संहार ।।
अपना उप संहार, कटे जब आम, नीम, वट ।
कटे कदम्ब, पलाश, करौंदा, जामुन, नटखट ।
अब मधुवन की पवन, हंसे किसको सहरा के
जब अशोक तरू जुही, कटे सब वृक्ष धरा के
बर्बादी हंसने लगी, रोने लगा विकास ।
जल ध्वनि, पवन, विनाश का, जब गुंजा कटु हास ।।
जब गुंजा कटु हास, पवन लगती जहरीली
नदी लिए तेजाब, हुई हर लहर विषैली
बढ़ता जाता शोर, बढ़ रही है आबादी
दूषित पर्यावरण, रच रहा है बर्बादी ष्ट ।
पीपर पांती कट गयाी, सूखे कुंज-निकुंज
यमुना-तट से कट गये, श्याम-स्नेह के पुंज
श्याम-स्नेह के पुंजरो रही सुखी यमुना
उठें बगूले गर्म, रेत लावा का झरना
यमुना कुंज कदम्ब कहां? पूछेगा नाती
बाबा कहां विलुप्त् हो गयी पीपर पांती
वन-उपवन, संस्कृति-धरा, जल, नभ, संस्कृतिरूप
सबको देकर यातना, करता मनुज कुरूप,
करता मनुज कुरूप, कांटता है वृक्षों को
सजा रहा है मरे, पादपों से कक्षों को
कल्प वृक्ष को रखता था पावन नन्दन वन
देवों को प्रिय विपिन काटते हम वन-उपवन ।
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