मंगलवार, 18 नवंबर 2014

सामाजिक पर्यावरण
भ्रष्टाचार में फंसे शौचालय
अमिताभ पाण्डेय

    मध्यप्रदेश में स्वच्छता के लिए चलाये गये अभियान को भ्रष्टाचार की बुरी नजर लग गई  है । इसका परिणाम यह हुआ है कि स्वच्छता के लिए स्वीकृत की गई राशि भ्रष्ट कर्मचारी हजम कर रहे  हंै । निर्मल भारत अभियान से लेकर स्वच्छता अभियान तक के नाम पर बड़ी रकम केन्द्र और राज्य शासन की ओर से स्वीकृत की गई थी । परन्तु गॉव शहर के गली मुहल्लों से लेकर पाठ शाला तक हर तरफ आज भी पर्याप्त साफ सफाई नजर नहीं आ रही है ।
 

    प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का स्वच्छता अभियान २ अक्टूबर के दिन देश भर में खूब चर्चित हुआ लेकिन अगले ही दिन से गंदगी व कचरा पहले ही तरह देखा जा रहा है । साफ सफाई को लेकर जो सक्रियता उस दिन को देखी गई वह अगले ही दिन से गायब सी हो गई । राज्य के  अनेक विद्यालयों में यह भी देखने में आया है कि साफ सफाई बनाये रखने एवं शौचालय निर्माण के लिए जो पैसा सरकार की ओर से स्वीकृत किया गया, उसे शिक्षक, इंजीनियर और अन्य जिम्मेदार कर्मचारी अधिकारी मिल बांटकर खा गये ।
    शौचालय का निर्माण या तो हुआ ही नहीं अथवा हुआ तो ऐसा जिसका उपयोग करना ही विद्यार्थियों के लिए असंभव हो रहा है । मध्यप्रदेश में स्वच्छता अभियान के  लिए बड़ी रकम समग्र स्वच्छता अभियान के अन्तर्गत स्वीकृत की गई । सभी विद्यालयों में बालक बालिकाओं के लिए अलग अलग शौचालय बनाने के लिए प्रत्येक शाला को बजट आवंटित कर दिया गया । इसके बाद भी राज्य के २३ प्रतिशत से ज्यादा स्कूलों में अभी शौचालय की समस्या बनी हुई है ।
    स्वच्छता के नाम पर स्वीकृत राशि में होेने वाली गड़बड़ का खुलासा हाल ही में एकपाठशाला के प्रधानाध्यापक ने किया है । उन्होंने वरिष्ठ अधिकारियों के सामने खुलेआम यह स्वीकार किया कि विद्यालय में शौचालय बनाने के लिए ५६ हजार रुपये की राशि स्वीकृत हुई थी । इसमें से विकासखंड शिक्षा अधिकारी को १५ हजार एवं इंजीनियर को ५ हजार रुपये दिये । लगभग १० हजार रुपये लगाकर तीन तीन फीट की दो दीवारें शौचालय के नाम बना दी गई। इसके बाद जो रकम बची उसे प्रधानाध्यापक ने खुद रख लेने की बात स्वीकार की  है ।
    स्वच्छता के नाम पर शौचालय निर्माण में होने वाले भ्रष्टाचार का यह उदाहरण मध्यप्रदेश के शिवपुरी जिले के बैराड नामक कस्बे के निकट स्थित बरोद गॉव के शासकीय प्राथमिक विद्यालय में देखने को मिला । गांव के विद्यालय का निरीक्षण करने पहुंचे सर्व शिक्षा अभियान के जिला परियोजना समन्वयक शिरोमणि दुबे ने जब शौचालय के नाम पर बनी तीन-तीन फीट की दो दीवारें देखी तो वे खुद आश्चर्य में पड़ गये। उन्होंने प्रधानाध्यापक विष्णु वर्मा से सवाल किया कि शौचालय के लिए स्वीकृत ५६ हजार रुपयों की लागत से, शौचालय के नाम पर यह क्या बना दिया गया है ? तो श्री वर्मा ने बताया कि स्वीकृत बजट में से लगभग १० हजार से अधिक राशि शौचालय के  लिए निर्माण पर खर्च की गई है। इसका का निरीक्षण करने के लिए आये विकासखंड शिक्षा अधिकारी ने १५ हजार रुपये मांगे जो उनको मैनंें दे दिये । कुछ दिनों बाद कार्यपूर्णता प्रमाणपत्र देने से पहले मूल्याकंन के लिए आये ग्रामीण यांत्रिकी सेवा के सब इंजीनियर ने ५ हजार रुपये मांगे । इसके बाद ही उन्होेंने मूल्याकंन प्रमाणपत्र दिया। एक पुराने निर्माण की रिकवरी की रकम भी शौचालय निर्माण के लिए स्वीकृत राशि में से ही जमा कराई गई । यह सब करने के बाद जो ११ हजार बचे वो मैने रख लिये । अब यदि शौचालय  ठीक से नहीं बना तो इसमें मेेरा क्या दोष है ?

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