कविता
व्न्ृक्ष हमारे हिय के
श्रीमती रजनी सिंह
ऊँची एेंड़ औ रचना प्रभ लगते बहुत अनूठे ।
तने खड़े सैनिक बन घर के ये दो वृक्ष पाम के । ।
कभी न लगते फूल न देते फल खट्टे या मीठे ।
पर हैं ये दो वृक्ष शान-सम्मान हमारे घर के ।।
हर कोई का ध्यान खींचते खींच न चुप रह जाते ।
शब्दों के सुरभित पुष्पों से सींचे औ सराहे जाते ।।
रेगिस्तानी उपज वंश वंशज इनके कम जल पीते ।
इसीलिए ये अमर ज्योति बन जन-जन मन जीत ।
बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर सुनावत ।
पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर कहावत ।।
असरहीन हो गई देख छटा पाम की न्यारी ।
चार पंाच पत्ती कलात्मक तना लगे सन्यासी भारी ।।
त्याग-तपस्या है अजोड़ इंद्रिय वशीमंत्र चाबी थामी ।
सागर की गहराई नापें अंतरिक्ष सीमा व्यापी ।।
तने खड़े सैनिक बन गृह के ये दो वृक्ष पाम के ।
ये दो वृक्ष शान-सम्मान-मान हमारे गृह के ।।
व्न्ृक्ष हमारे हिय के
श्रीमती रजनी सिंह
ऊँची एेंड़ औ रचना प्रभ लगते बहुत अनूठे ।
तने खड़े सैनिक बन घर के ये दो वृक्ष पाम के । ।
कभी न लगते फूल न देते फल खट्टे या मीठे ।
पर हैं ये दो वृक्ष शान-सम्मान हमारे घर के ।।
हर कोई का ध्यान खींचते खींच न चुप रह जाते ।
शब्दों के सुरभित पुष्पों से सींचे औ सराहे जाते ।।
रेगिस्तानी उपज वंश वंशज इनके कम जल पीते ।
इसीलिए ये अमर ज्योति बन जन-जन मन जीत ।
बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर सुनावत ।
पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर कहावत ।।
असरहीन हो गई देख छटा पाम की न्यारी ।
चार पंाच पत्ती कलात्मक तना लगे सन्यासी भारी ।।
त्याग-तपस्या है अजोड़ इंद्रिय वशीमंत्र चाबी थामी ।
सागर की गहराई नापें अंतरिक्ष सीमा व्यापी ।।
तने खड़े सैनिक बन गृह के ये दो वृक्ष पाम के ।
ये दो वृक्ष शान-सम्मान-मान हमारे गृह के ।।
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