सम्पादकीय -
समुदाय तय करता है पौधे का लिंग
वनस्पति जगत में फर्न पौधों की एक किस्म होती है । इनमें पौधों का लिंग जन्म के साथ तय नहीं होता । हाल ही में प्रकाशित एक शोध पत्र के मुताबिक जापानी लता फर्म लायगोडियम जेपोनिकम में नए फर्न पौधों का लिंग उसके समुदाय के लिंग अनुपात के आधार पर तय होता है ।
फर्न वे पौधे होते हैं जिनमें प्रजनन के लिए बीज नहीं बल्कि बीजांड बनते हैं । इन बीजांड से पूरा पौधा विकसित होता है और यह पौधा नर हो सकता है, मादा हो सकता है या द्विलिंगी भी हो सकता है । इनमें से वह पौधा कौन सा रूप अख्तियार करेगा यह इस बात से तय होता है कि पिछली पीढ़ी में नर और मादा का अनुपात क्या था ।
एक स्थिति यह होती है जब आसपास दूर-दूर तक उस प्रजाति का कोई अन्य पौधा नहीं है । इस स्थिति में नया पौधा द्विलिंगी बनेगा । इसका फायदा यह होता है कि नर व मादा अंग एक ही पौधे पर पाए जाते है और प्रजनन की क्रिया आगे बढ़ सकती है । हालांकि इसमें नुकसान यह होता है कि अगली पीढ़ी में बहुत अधिक विविधता नहीं बचती ।
नगोया विश्वविघालय के माकोतो मात्सुओका ने पाया कि लायगोडियम जेपोनिका के मामले में होता यह है कि पुराने पौधे नए पौधों का लिंग तय करते है । यह प्रक्रिया एक हारमाने जिबरेलिन के माध्यम से चलती है ।
प्रौढ़ फर्न मादा पौधों में से जिबरेलिन उत्सर्जन किया जाता है । विशेषता यह होती है कि इस जिबरेलिन में एक अतिरिक्त एस्टर समूह जुड़ा होता है । जिबरेलिन एस्टर जंगल की मिट्टी में फैलता है । एस्टर समूह जुड़ा होने का फायदा यह होता है कि नए पौधे इसका अवशोषण कर लेते हैं ।
जिबरेलिन -एस्टर के अवशोषण की वजह से नए पौधों में जिबरेलिन बनने लगता है और इसके प्रभाव से पौधा नर बन जाता है । यानी अगर पहली पीढ़ी में मादा पौधे ज्यादा हुए तो जिबरेलिन -एस्टर ज्यादा छोड़ा जाएगा और नए वाले ज्यादा पौधे नर पौधे बनेगे । लिंग अनुपात में नियंत्रण रखने का नायाब तरीका है यह
समुदाय तय करता है पौधे का लिंग
वनस्पति जगत में फर्न पौधों की एक किस्म होती है । इनमें पौधों का लिंग जन्म के साथ तय नहीं होता । हाल ही में प्रकाशित एक शोध पत्र के मुताबिक जापानी लता फर्म लायगोडियम जेपोनिकम में नए फर्न पौधों का लिंग उसके समुदाय के लिंग अनुपात के आधार पर तय होता है ।
फर्न वे पौधे होते हैं जिनमें प्रजनन के लिए बीज नहीं बल्कि बीजांड बनते हैं । इन बीजांड से पूरा पौधा विकसित होता है और यह पौधा नर हो सकता है, मादा हो सकता है या द्विलिंगी भी हो सकता है । इनमें से वह पौधा कौन सा रूप अख्तियार करेगा यह इस बात से तय होता है कि पिछली पीढ़ी में नर और मादा का अनुपात क्या था ।
एक स्थिति यह होती है जब आसपास दूर-दूर तक उस प्रजाति का कोई अन्य पौधा नहीं है । इस स्थिति में नया पौधा द्विलिंगी बनेगा । इसका फायदा यह होता है कि नर व मादा अंग एक ही पौधे पर पाए जाते है और प्रजनन की क्रिया आगे बढ़ सकती है । हालांकि इसमें नुकसान यह होता है कि अगली पीढ़ी में बहुत अधिक विविधता नहीं बचती ।
नगोया विश्वविघालय के माकोतो मात्सुओका ने पाया कि लायगोडियम जेपोनिका के मामले में होता यह है कि पुराने पौधे नए पौधों का लिंग तय करते है । यह प्रक्रिया एक हारमाने जिबरेलिन के माध्यम से चलती है ।
प्रौढ़ फर्न मादा पौधों में से जिबरेलिन उत्सर्जन किया जाता है । विशेषता यह होती है कि इस जिबरेलिन में एक अतिरिक्त एस्टर समूह जुड़ा होता है । जिबरेलिन एस्टर जंगल की मिट्टी में फैलता है । एस्टर समूह जुड़ा होने का फायदा यह होता है कि नए पौधे इसका अवशोषण कर लेते हैं ।
जिबरेलिन -एस्टर के अवशोषण की वजह से नए पौधों में जिबरेलिन बनने लगता है और इसके प्रभाव से पौधा नर बन जाता है । यानी अगर पहली पीढ़ी में मादा पौधे ज्यादा हुए तो जिबरेलिन -एस्टर ज्यादा छोड़ा जाएगा और नए वाले ज्यादा पौधे नर पौधे बनेगे । लिंग अनुपात में नियंत्रण रखने का नायाब तरीका है यह
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