मंगलवार, 18 नवंबर 2014

प्रदेश चर्चा
पंजाब : युवाआें में बढ़ती नशाखोरी
भारत डोगरा
    पंजाब में बढ़ती नशाखोरी दांवानल की तरह फैल रही है । इसके परिणामस्वरूप दहेज और कन्या भ्रूणहत्या की समस्या पुन: सिर उठाने लगी हैं । राजनीति का बढ़ता अपराधीकरण इन स्थितियों के लिए जिम्मेदार हैं । इन परिस्थितियों के  निपटने के लिए सामाजिक जागरूकता की आवश्यकता है । इन समस्याओं की अन्य राज्यों में भी फैलने की आशंका व्यक्त  की जा रही है ।
    पंजाब को देश के सबसे समृद्ध राज्यों में गिना जाता है । खेती का खर्च बहुत बढ़ जाने के कारण व अनुचित तकनीकों के प्रसार के कारण छोटे किसानों के कर्ज व आर्थिक तनाव बहुत बढ़ गए हैं । इन बढ़ते आर्थिक तनावों के बीच कुछ सामाजिक समस्याएं भी इतनी तेजी से बढ़ी हैं  कि अनेक परिवारों के लिए स्थिति असहनीय हो गई है । इनमें तरह-तरह के नशे का प्रसार सबसे गंभीर समस्या है ।
     अमृतसर में गुरु नानक देव विश्वविद्यालय के एक अध्ययन से सामने आया है कि पंजाब के ७० प्रतिशत युवक शराब या नशीली दवाओं का सेवन करते हैं । इस आंकड़े पर थोड़ी-बहुत बहस हो सकती है । भिन्न-भिन्न स्थानों की स्थिति कुछ अलग हो सकती है, पर इसमें कोई संदेह नहीं कि हाल के समय में तरह-तरह के नशे की समस्या तेजी से बढ़ी है, फिर चाहे वह शराब का नशा हो या विभिन्न तरह की नशीली दवाओं का । प्रति व्यक्ति शराब की खपत पंजाब में सबसे अधिक बताई जाती है । वर्ष २००९-१० में पंजाब में २९ करोड़ बोतल शराब की खपत हुई । अवैध शराब व बाहर से मंगाई गई शराब इससे अलग है ।
    समय-समय पर ऐसे आरोप लगते रहे हैं कि राजनीतिक दृष्टि से प्रभावशाली व्यक्ति व अधिकारी भी नशे के विभिन्न कारोबारों से बहुत आर्थिक लाभ प्राप्त करते रहे हैं । शराब के व्यापार में यह खुलेआम होता है तो नशीली दवाओं के अवैध कारोबार में यह चोरी-छिपे होता है । यह राजनीति के  अपराधीकरण का केवल एक पक्ष है । राजनीति के अपराधीकरण होने से अपराधियों के हौसले बहुत बढ़ गए   हैं। राजनीति से जुड़े प्रभावशाली व्यक्ति कई स्तरों पर हिंसा व अपराधों को बढ़ावा देते हैं या ऐसे हिंसक तत्वों को अपना समर्थन देते हैं जिनकी गतिविधियों   से समाज बहुत असुरक्षित हो गया    है ।
    समाज व राजनीति का बढ़ता अपराधीकरण पंजाब में इस कारण और खतरनाक हो जाता है । यह राज्य कुछ वर्षों पूर्व आतंकवाद के ऐसे खतरनाक दौर से गुजर चुका है जिसे सीमा पार से भी बहुत समर्थन प्राप्त था । ऐसी स्थिति में समाज और राजनीति के बढ़ते अपराधीकरण को समय रहते नियंत्रित करना और भी जरूरी हो गया है ।
    नशे के तेज प्रसार के साथ महिलाओं के विरुद्ध कई तरह की हिंसा और यौन अपराध भी बढ़े हैं । इसके अतिरिक्त नशे पर अधिक खर्च के कारण अनेक महिलाओं को परिवार के लिए जरूरी खर्च उपलब्ध नहीं हो रहा है । बच्चें को प्राथमिकता देते     हुए महिलाएं अपने पोषण व    स्वास्थ्य के खर्च में पहले कटौती करती हैं । 
    परंपरागत तौर पर पंजाबी समाज में बेटी के जन्म को अच्छा नहीं समझा जाता था । कुछ स्थानों पर कन्या शिशु की हत्या भी की जाती थी । धीरे-धीरे इस स्थिति में सुधार आया था, परंतु नई तकनीकों ने समस्या को और बिगाड़ दिया व यहां कन्या भ्रूण हत्या बड़े पैमाने पर होने लगी । इस पर कानूनी प्रतिबंध लगने से कुछ राहत मिली, पर कानून का उल्लंघन आज भी होता है । पंजाब में लिंग अनुपात वर्ष २०११ की जनगणना में भी बहुत प्रतिकूल पाया गया (८९३) । हालांकि २००१ के  बाद स्थिति में थोड़ा सुधार हुआ । नवांशहर जैसे स्थानों पर कन्या भ्रूण हत्या के विरुद्ध चले अभियान का अच्छा असर देखा गया ।
    दहेज की समस्या भी यहां पर परंपरागत तौर पर भी मौजूद थी । उपभोक्तावाद के प्रसार के दौर में दहेज समस्या पहले से कहीं विकट हो गई है । निर्धन परिवार को भी यदि दहेज व विवाह के अन्य खर्च पर तीन-चार लाख रुपए खर्च करने पड़े तो यह निर्धन परिवारों के कर्ज का एक बड़ा कारण बन जाता है ।       इस कारण बेटी के जन्म के विरुद्ध जो पंरपरागत मान्यता थी वह और भी दृढ़ होती जाती है । रंजना पाधी के हाल के अध्ययन में जिन कर्जग्रस्त परिवारों से बातचीत की गई, उनमें से लगभग आधे परिवारों ने ऋण से प्राप्त धन को विवाह पर खर्च किया । इनमें औसत कर्ज २ लाख से कुछ अधिक ही रहा । गांवों में किसानों व खेत-मजदूरों  दोनों में दहेज व विवाह के लिए कर्ज लेने की मजबूरी देखी गई ।
    अधिक दहेज देने के बावजूद विवाह के बाद दहेज के लिए सताया जाना भी पंजाब की एक बड़ी समस्या है । वर्ष २०१३ में महिलाओं के  विरुद्ध हिंसा की दर्ज शिकायतों के तिमाही आकलन से पता चला कि पुलिस हेल्पलाइन की नई सेवा के अंतर्गत तीन महीनों में दहेज प्रताड़ना के २०५ मामले दर्ज हुए जबकि अन्य घरेलू हिंसा के ६२४ मामले दर्ज हुए । इसी दौरान बलात्कार के ७६ मामले दर्ज हुए । इन तीन महीनों में हेल्पलाइन में पंजाब में महिलाओं के विरुद्ध अपराध के ३३३९ मामले दर्ज हुए ।
    आत्महत्याओं की बढ़ती प्रवृत्ति के कारण अनेक परिवारों की जिम्मेदारी महिलाओं पर आ गई है जबकि बहुत कम आय के साथ कर्ज का बोझ पहले से था । इन महिलाओं के लिए कठिनाईयां संभवत: सबसे अधिक हैंजबकि उन तक बहुत कम सहायता पहुंची है । तेज मशीनीकरण के दौर में महिला खेत मजदूरोंके  लिए खेती से रोजगार के अवसर पहले से और कम हो गए हैं ।  अनेक गांवों में पेयजल बुरी तरह प्रदूषित हो गया है और कैंसर जैसी गंभीर बीमारियां तेजी से फैल रही हैं । इस तरह अनेक तरह की विकट समस्याओं को एक साथ संभालने में अनेक महिलाओं की समस्याएं असहनीय हद तक बढ़ गई हैं । 
    पंजाब के महिला संगठनों व यहां के समाज-सुधार आंदोलनों के सामने बहुपक्षीय चुनौतियां हैं। सामाजिक बदलाव को ऐसी सार्थक दिशा देना जरूरी है जिसने महिलाओं और लड़कियों से होने वाला भेदभाव अन्याय और विभिन्न तरह की हिंसा दूर हो । ऐसी हिंसा के विरुद्ध समाज में व्यापक मान्यता बनेे और इसे रोकने के लिए गांव व मोहल्ले स्तर पर समाज सक्रिय हो । इसके साथ नशे जैसी अन्य समस्याओं के विरुद्ध महत्वपूर्ण कदम उठाना जरूरी है जिनके कारण महिलाओं की समस्याएं तेजी से बढ़ रही हैं ।
    अनेक क्षेत्रांे में पनप रहे नए सामाजिक तनावों जैसे दलित व गैर-दलित तबकांे में बढ़ते अलगाव को भी समय रहते सुलझाना जरूरी है, और यह समाधान न्याय आधारित होना चाहिए । दलित समुदाय में ही  भूमिहीन मजदूर सबसे अधिक हैं जो ग्रामीण समाज का सबसे वंचित तबका रहे   हैं । नई तकनीक आने के बाद उनके रोजगार के अवसर और कम हुए हैं  जबकि उन्हें व प्रवासी मजदूरों दोनों को नई तकनीकों व विशेषकर कीटनाशक दवाओं व मशीनरी से जुड़े खतरों को अधिक सहना पड़ा है । ग्रामीण क्षेत्रों के अनेक विकास कार्यो में सबसे मेहनतकश दलित समुदाय की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है । अत: अलगाव को दूर कर विभिन्न समुदायों के सहयोग के अवसर न्याय व समता आधारित समाधानों से प्राप्त करने चाहिए ।
    इस तरह आपसी सहयोग व एकता का माहौल बनेगा तो हर तरह की सांप्रदायिकता और भेदभाव को दूर रखना संभव होगा । इस तरह के आपसी एकता के माहौल में ही नशे जैसी सामाजिक बुराईयों के विरुद्ध ग्रामीण समाज मिलकर आपसी एकता व मजबूती से जरूरी कदम उठा सकेंगे ।

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