वनस्पति जगत
फ्लोरीजेन : फूल खिलाने का संदेश
डॉ. किशोर पंवार
पौधों में फूल खिलना कवियों के लिए सुन्दरता का प्रतीक है, वहीं वनस्पति वैज्ञानिकों के लिए कौतूहल का विषय है । कैसे पता चलता है कि किसी पौधे को कि अब फूल खिलाना है ? प्लांट सेल नामक शोध पत्रिका में प्रकाशित यान ए.डी. जीवार्ट के गहन आलेख से आभास होता है कि पिछली लगभग पूरी सदी में कई वैज्ञानिकों द्वारा किए गए प्रयोगों ने अब शायद इस सवाल का तसल्लीबख्श जवाब दे दिया है और कई नए सवाल भी खड़े कर दिए हैं ।
पौधों में फूल खिलना हमेशा से ही एक रहस्य और रोमांच भरी घटना रही है । जिन पत्तियों की कोख से कुछ दिन पूर्व तक नई शाखाएं निकल रही थी । वहीं से अचानक कलियां बनने लगती है । रंग-बिरंगे फूल खिलने लगते हैं और उन पर तितलियां, भंवरे, पक्षी मंडराने लगते हैं ।
फ्लोरीजेन : फूल खिलाने का संदेश
डॉ. किशोर पंवार
पौधों में फूल खिलना कवियों के लिए सुन्दरता का प्रतीक है, वहीं वनस्पति वैज्ञानिकों के लिए कौतूहल का विषय है । कैसे पता चलता है कि किसी पौधे को कि अब फूल खिलाना है ? प्लांट सेल नामक शोध पत्रिका में प्रकाशित यान ए.डी. जीवार्ट के गहन आलेख से आभास होता है कि पिछली लगभग पूरी सदी में कई वैज्ञानिकों द्वारा किए गए प्रयोगों ने अब शायद इस सवाल का तसल्लीबख्श जवाब दे दिया है और कई नए सवाल भी खड़े कर दिए हैं ।
पौधों में फूल खिलना हमेशा से ही एक रहस्य और रोमांच भरी घटना रही है । जिन पत्तियों की कोख से कुछ दिन पूर्व तक नई शाखाएं निकल रही थी । वहीं से अचानक कलियां बनने लगती है । रंग-बिरंगे फूल खिलने लगते हैं और उन पर तितलियां, भंवरे, पक्षी मंडराने लगते हैं ।
इन फूलोंकी सुन्दरता एवं इनके अचानक प्रकट होने में वैज्ञानिकों की हमेशा से ही रूचि रही है । फूलों को लेकर जुलियस सेक्स (१८६५) को इस विचार का जनक माना जा सकता है कि पौधों में एक हारमोन होता है जो उनमें फूल खिलाता है । आंशिक रूप से अंधेरे में रखे गए ट्रोपीओलम मेजस और आयपोमिया परपूरिया के पौधों पर प्रयोग कर उन्होनें निष्कर्ष निकाला था कि धूप में रखे गए पौधों की पत्तियां फूल बनाने वाले पदार्थ बनाती है । ये पदार्थ बहुत ही सूक्ष्म मात्रा में बनते हैं और अंधेरे में रखी गई शाखाआें तक पहुंचकर फूल बनाने का संकेत देते हैं ।
हालांकि फूल बनाने वाले पदार्थ के बारे में ज्यादा दमदार प्रमाण फोटो पीरियॉडिज्म (यानी प्रकाश के साथ आवर्ती परिवर्तन) की खोज के बाद ही संभव हो पाया । फोटो-पीरियॉडिज्म की खोज गार्नर और एलार्ड ने १९२० में की । उन्होनें बताया कि पौधों को फूलने के लिए तैयार होने में दिन और रात की एक सापेक्ष लम्बाई जरूरी होती है । फोटो पीरियॉडिज्म दर्शाने वाले पौधों के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण बात यह पता चली है कि उनमें दिन और रात की अवधि का लेखा-जोखा तो पत्तियों द्वारा रखा जाता है जबकि फूल शाखाआें के सिरों पर बनते हैं । अर्थात पत्ती से तने के शीर्ष तक एक संदेश पहुंचता है । लिहाजा इस संकेत को पुष्पन-हारमोन कहा जा सकता है क्योंकि हारमोन भी एक स्थान पर बनते हैं और दूसरे सथान पर जाकर कार्य करते हैं । इस बात को कलम लगाने के प्रयोगों से भी बल मिला जिसमें एक फूल रहे पौधे की कलम एक ऐसे पौधे में लगाई गई जिसमें फूल नहीं आ रहे थे, तो वह भी फूलने लगा । इससे स्पष्ट है कि कोई एक ऐसा पदार्थ है जो फूलने वाले पौधे से दूसरे पौधे में जाता है और उसे फूलने का संदेश देता है । चेलाख्यान नामक वैज्ञानिक ने पहली बार इस पदार्थ के लिए फ्लोरीजेन शब्द का उपयोग किया था और बताया था कि इसकी भूमिका नियमन की है ।
मिलती-जुलती मगर अलग-अलग फोटोपीरियॉडिक चक्र वाली प्रजातियों पर किए गए ग्राफ्िटंग प्रयोगों से पता चलता है कि एक ही पदार्थ जो विभिन्न प्रजातियों में पुष्पन का नियमन कर सकता है । जैसे क्रेसुलेसी कुल में पुष्पन के लिए छोटे दिन की दरकार वाले पौधे (शॉर्ट डे प्लांट-डऊझ), लम्बे दिन चाहने वाले पौधे (लॉन्ग डे प्लांट - ङऊझ) और ऐसे पौधे भी हैं जिन्हें फूलनेके लिए शुरूआत में लम्बे दिन और बाद में छोटे दिन (ङडऊझ) की जरूरत होती है । इन सबकी आपस में कलम लगती है और एक पौधे का पुष्प उद्दीपन दूसरे से काम कर सकता है ।
इन प्रयोगों से यह पता चलता है कि फ्लोरीजेन सार्वभौमिक है । कम से कम एक ही प्रकार, कुल या वंश के पौधों में जिनकी फोटोपीरियड जरूरतें भले ही अलग-अलग हो । जैसे एक लांग डे प्लांट को पूरी प्रकाश अवधि मिलने पर वह फूलना शुरू कर देता है । ऐसे पौधे की टहनी काट कर एक शॉर्ट डे प्लांट पर लगा देते हैं तो वह भी फूलना शुरू कर देता है ।
तमाम कोशिशों के बाद भी फ्लोरीजने को रासायनिक रूप से प्राप्त् करने की कोशिशें नाकाम रही हैं । अत: अब तक फ्लोरीजेन परिकल्पना कमजोर पड़ गई । इसके विरोधी मानने लगे कि पौधों में पुष्पन कुछ ज्ञात हारमोन और कुछ अन्य पदार्थो के विशिष्ट अनुपात के कारण होता है ।
जब पौधों में पुष्पन की प्रक्रियाको समझने के कार्यिकी एवं जैव रासायनिक तरीकों की सीमा सी आ गई थी तब आणविक आनुवांशिकी का पदार्पण हुआ जिसने समस्या के समाधान की एक नई राह दिखाई । इसमें उत्परिवर्तित एरोबिडॉप्सिस पौधों का उपयोग होता है और बात जीन्स के स्तर पर होती है ।
प्रकाश अवधि में जुड़े दो जीन्स इस संदर्भ में सामने आए हैं । एरेबिडॉप्सिस एक लॉन्ग डे प्लांट है । इसके उत्परिवर्तित रूप जल्दी या देर से फूल देते हैं विभिन्न पौधों की तुलना के आधार पर पुष्पन को नियंत्रित करने वाले चार रास्ते खोजे गए हैं - प्रकाश अवधि, तापमान नियंत्रण, स्वायत्त और जिबरेलिन आधारित । एरोबिडॉप्सिस में दो जीन्स पुष्पन क्रिया के लिए जिम्मेदार पाए गए हैं - उज एवं ऋढ । इनसे से उज नामक जीन एक प्रोटीन का निर्माण करता है । उज द्वारा बनाया गया प्रोटीन ऋढ को प्रेरित करता है कि वह आरएएफ-काइनेज नामक एजाइम की क्रिया को बाधित करने वाला प्रोटीन बनाए।
इनमें से कोई भी जीन तने के शीर्ष पर अभिव्यक्त नहीं होता । तने के शीर्ष पर विभाजित होती कोशिकाआें (मेरिस्टेम) में उज उत्प्रेरक की अभिव्यक्ति से फूल नहीं खिलते । परन्तु यदि शॉर्ट डे प्लांट के मेरिस्टेम में ऋढ ज्यादा अभिव्यक्त हो जाए तो वह फूलने की क्रिया को जल्दी शुरू कर देता है । पौधों की फ्लोएम कोशिकाआें में उज की अभिव्यक्ति एक चलित संदेश पैदा करने के लिए पर्याप्त् पाई गई है । यह चलित संदेश या तो ऋढ द्वारा बनाया गया प्रोटीन स्वयं है या फिर ऋढ उस पदार्थ के संश्लेषण का नियंत्रित करता है जो फूलने का संदेश देता है।
पौधों में फूल खिलने की प्रभावित करने वाला दूसरा कारक है तापक्रम । कुछ पौधे ऐसे हैं जिनको जब तक बहुत कम तापमान नहीं मिलता वे नहीं फूलते । सेब और चेरी ऐसे ही पौधे हैं । यदि फूलने के लिए कोई हारमोन है तो वह सभी पौधों में होना चाहिए चाहे वे प्रकाश अवधि से प्रभावित होते हो या फिर कम तापक्रम से । ऐसे पौधों में ऋङउ नामक जीन ज्यादा अभिव्यक्त होता है और उसके द्वारा बनाया गया प्रोटीन ऋढ जीन की अभिव्यक्ति को रोक देता है । लम्बे समय तक कम तापमान ऋङउ जीन को दबा देता है और इस तरह ऋढ जीन की अभिव्यक्ति पुन: शुरू हो जाती है जो फूल खिलने के लिए उद्दीपन का काम करता है ।
यह उम्मीद की जाती थी कि कार्यिकी जैव रसायन और आणविक आनुवांशिकी मिल-जुलकर फूल खिलाने की क्रिया का एक एकीकृत सिद्धांत प्रस्तुत करेंगे । और ऐसा हुआ भी । फ्लोरिजेन के पक्ष में पहली बात तो यही रही कि उज द्वारा निर्मित प्रोटीन ऋढ की क्रिया शुरू करवाता है तो एक चलित संदेशवाहक रसायन पैदा करता है । हुआंग और साथियों ने चलित संदेश के रूप में ऋढ द्वारा निर्मित आरएनए (ऋढाठछअ) की भूमिका की संभावना पर प्रयोग किए हैं । यह पत्ती में बनता है और वहां से तने के शीर्ष पर पहुंचता है और उसकी आमद फूल बनने की शुरूआत से मेल खाती है । इस तरह ऋढाठछअ फ्लोरीजन की परिभाषा पर फिट बैठता है । यह भी संभव है कि ऋढाठछअ और उससे बना ऋढ प्रोटीन दोनोंपत्ती से तने के शीर्ष तक पहुंचकर फूल खिलाने का उद्दीपन बनते हों ।
कुछ पौधों में फ्लोरीजने का उत्पादन प्रेरक प्रकाश अवधि हटा लिए जाने के बाद तक चलता रहता है । ऐसा लाल पेरिला में देखा गया है जो एक शॉर्ट डे प्लांट है । ये पौधे प्रकाश अवधि को छोटे दिन से बदलकर लम्बे दिन की करने के तीन महीने बाद तक प्रभावी बने रहते हैं ।अर्थात् उनकी कलम लम्बे दिन वाले पौधों पर लगा दी जाए तो वे फूलने लगते है । गोखरू तथा एक प्रकार के पत्थर चट्टा में देखा गया है कि इन पर कलम लगाने के बाद इनके तने के शीर्ष खुद अन्य पौधों में पुष्पन प्रेरित करने में सक्षम हो जाते है । इसे परोक्ष प्रेरण कहते हैं । इससे पता चलता है कि फ्लोरीजेन एक बार बन जाए तो खुद को बार-बार बना सकता है ।
फ्लोरीजने फ्लोएम में अन्य पदार्थो के साथ गति करता है । एरोबिडॉप्सिस में ऋढाठछअ की गति १.२ से ३.५ मि.मी. प्रति घंटा नापी गई है । यह एक पौधे फार्विटिस में नापी गई फ्लोरिजेन की गति के लगभग बराबर है । तुलना के लिए देखे कि शर्करा की गति ५०-१०० सेंटीमीटर प्रति घंटा है ।
ऋढाठछअ और संबंधित प्रोटीन का फ्लोएम के माध्यम से आवागमन अब एक स्थापित सत्य है । ऋढाठछअ पत्तियोंमें फ्लोएम की सखी कोशिकाआें में बतना है और फिर वहां से चालनी कोशिकाआें से होता हुआ तने के शीर्ष पर पहुंचकर पुष्पन का प्रेरण करता है । एक बार बनने के बाद ऋढाठछअस्वयं नियंत्रित तरीके से बार-बार बनता रहता है और उसकी मात्रा बढ़ती रहती है ।
फ्लोरीजेन परिकल्पना का मूल भाव यह है कि यह पुष्पन हारमोन सभी पौधों के लिए एक ही है, चाहे वे लम्बे दिन, छोटे दिन या दिन निरपेक्ष हो । कलम लगाने के प्रयोगों से तो यही पता चलता है । यहां तक कि कलम दूसरी प्रजाति के पौधों पर लगाएं तो उनमें भी फूल आने लगते हैं । इससे तो लगता है कि शॉर्ट डे प्लांट्स और लॉन्ग डे प्लांट्स में मुख्य अंतर उद्दीपक पदार्थ का नहीं बल्कि यह है कि इस उद्दीपन का जवाब देने वाले जीन्स कौन से हैं और कैसे कार्य करते हैं ।
अभी तक यह माना जाता रहा है कि फ्लोरीजेन एक ख्याली हारमोन है । परन्तु हाल के कुछ वर्षो में हुए शोध से यह स्पष्ट हो गया है कि यह ख्याली पुलाव नहीं, एक ठोस वास्तविकता है ।
२००७ में प्रो. शिमाटो ने पाया कि फ्लोरीजने एक प्रोटीन है जिसे कव३र के नाम से जाना जाता है । शिमाटो एवं अन्य वैज्ञानिकों में देखा कि फ्लोरीजेन कव३र एक प्रोटीन से जुड़ता है और यह प्रोटीन बहुत से पौधों में खोजा जा चुका है । यह ऋढ से जुड़कर फ्लोरीजेन एक्टीवेशन काम्पलेक्स बनाता है । तो चेलाख्यान ने जो सपना १९३६ में देखा था वह २०११ में शिमोटो ने पूरा किया ।
हालांकि फूल बनाने वाले पदार्थ के बारे में ज्यादा दमदार प्रमाण फोटो पीरियॉडिज्म (यानी प्रकाश के साथ आवर्ती परिवर्तन) की खोज के बाद ही संभव हो पाया । फोटो-पीरियॉडिज्म की खोज गार्नर और एलार्ड ने १९२० में की । उन्होनें बताया कि पौधों को फूलने के लिए तैयार होने में दिन और रात की एक सापेक्ष लम्बाई जरूरी होती है । फोटो पीरियॉडिज्म दर्शाने वाले पौधों के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण बात यह पता चली है कि उनमें दिन और रात की अवधि का लेखा-जोखा तो पत्तियों द्वारा रखा जाता है जबकि फूल शाखाआें के सिरों पर बनते हैं । अर्थात पत्ती से तने के शीर्ष तक एक संदेश पहुंचता है । लिहाजा इस संकेत को पुष्पन-हारमोन कहा जा सकता है क्योंकि हारमोन भी एक स्थान पर बनते हैं और दूसरे सथान पर जाकर कार्य करते हैं । इस बात को कलम लगाने के प्रयोगों से भी बल मिला जिसमें एक फूल रहे पौधे की कलम एक ऐसे पौधे में लगाई गई जिसमें फूल नहीं आ रहे थे, तो वह भी फूलने लगा । इससे स्पष्ट है कि कोई एक ऐसा पदार्थ है जो फूलने वाले पौधे से दूसरे पौधे में जाता है और उसे फूलने का संदेश देता है । चेलाख्यान नामक वैज्ञानिक ने पहली बार इस पदार्थ के लिए फ्लोरीजेन शब्द का उपयोग किया था और बताया था कि इसकी भूमिका नियमन की है ।
मिलती-जुलती मगर अलग-अलग फोटोपीरियॉडिक चक्र वाली प्रजातियों पर किए गए ग्राफ्िटंग प्रयोगों से पता चलता है कि एक ही पदार्थ जो विभिन्न प्रजातियों में पुष्पन का नियमन कर सकता है । जैसे क्रेसुलेसी कुल में पुष्पन के लिए छोटे दिन की दरकार वाले पौधे (शॉर्ट डे प्लांट-डऊझ), लम्बे दिन चाहने वाले पौधे (लॉन्ग डे प्लांट - ङऊझ) और ऐसे पौधे भी हैं जिन्हें फूलनेके लिए शुरूआत में लम्बे दिन और बाद में छोटे दिन (ङडऊझ) की जरूरत होती है । इन सबकी आपस में कलम लगती है और एक पौधे का पुष्प उद्दीपन दूसरे से काम कर सकता है ।
इन प्रयोगों से यह पता चलता है कि फ्लोरीजेन सार्वभौमिक है । कम से कम एक ही प्रकार, कुल या वंश के पौधों में जिनकी फोटोपीरियड जरूरतें भले ही अलग-अलग हो । जैसे एक लांग डे प्लांट को पूरी प्रकाश अवधि मिलने पर वह फूलना शुरू कर देता है । ऐसे पौधे की टहनी काट कर एक शॉर्ट डे प्लांट पर लगा देते हैं तो वह भी फूलना शुरू कर देता है ।
तमाम कोशिशों के बाद भी फ्लोरीजने को रासायनिक रूप से प्राप्त् करने की कोशिशें नाकाम रही हैं । अत: अब तक फ्लोरीजेन परिकल्पना कमजोर पड़ गई । इसके विरोधी मानने लगे कि पौधों में पुष्पन कुछ ज्ञात हारमोन और कुछ अन्य पदार्थो के विशिष्ट अनुपात के कारण होता है ।
जब पौधों में पुष्पन की प्रक्रियाको समझने के कार्यिकी एवं जैव रासायनिक तरीकों की सीमा सी आ गई थी तब आणविक आनुवांशिकी का पदार्पण हुआ जिसने समस्या के समाधान की एक नई राह दिखाई । इसमें उत्परिवर्तित एरोबिडॉप्सिस पौधों का उपयोग होता है और बात जीन्स के स्तर पर होती है ।
प्रकाश अवधि में जुड़े दो जीन्स इस संदर्भ में सामने आए हैं । एरेबिडॉप्सिस एक लॉन्ग डे प्लांट है । इसके उत्परिवर्तित रूप जल्दी या देर से फूल देते हैं विभिन्न पौधों की तुलना के आधार पर पुष्पन को नियंत्रित करने वाले चार रास्ते खोजे गए हैं - प्रकाश अवधि, तापमान नियंत्रण, स्वायत्त और जिबरेलिन आधारित । एरोबिडॉप्सिस में दो जीन्स पुष्पन क्रिया के लिए जिम्मेदार पाए गए हैं - उज एवं ऋढ । इनसे से उज नामक जीन एक प्रोटीन का निर्माण करता है । उज द्वारा बनाया गया प्रोटीन ऋढ को प्रेरित करता है कि वह आरएएफ-काइनेज नामक एजाइम की क्रिया को बाधित करने वाला प्रोटीन बनाए।
इनमें से कोई भी जीन तने के शीर्ष पर अभिव्यक्त नहीं होता । तने के शीर्ष पर विभाजित होती कोशिकाआें (मेरिस्टेम) में उज उत्प्रेरक की अभिव्यक्ति से फूल नहीं खिलते । परन्तु यदि शॉर्ट डे प्लांट के मेरिस्टेम में ऋढ ज्यादा अभिव्यक्त हो जाए तो वह फूलने की क्रिया को जल्दी शुरू कर देता है । पौधों की फ्लोएम कोशिकाआें में उज की अभिव्यक्ति एक चलित संदेश पैदा करने के लिए पर्याप्त् पाई गई है । यह चलित संदेश या तो ऋढ द्वारा बनाया गया प्रोटीन स्वयं है या फिर ऋढ उस पदार्थ के संश्लेषण का नियंत्रित करता है जो फूलने का संदेश देता है।
पौधों में फूल खिलने की प्रभावित करने वाला दूसरा कारक है तापक्रम । कुछ पौधे ऐसे हैं जिनको जब तक बहुत कम तापमान नहीं मिलता वे नहीं फूलते । सेब और चेरी ऐसे ही पौधे हैं । यदि फूलने के लिए कोई हारमोन है तो वह सभी पौधों में होना चाहिए चाहे वे प्रकाश अवधि से प्रभावित होते हो या फिर कम तापक्रम से । ऐसे पौधों में ऋङउ नामक जीन ज्यादा अभिव्यक्त होता है और उसके द्वारा बनाया गया प्रोटीन ऋढ जीन की अभिव्यक्ति को रोक देता है । लम्बे समय तक कम तापमान ऋङउ जीन को दबा देता है और इस तरह ऋढ जीन की अभिव्यक्ति पुन: शुरू हो जाती है जो फूल खिलने के लिए उद्दीपन का काम करता है ।
यह उम्मीद की जाती थी कि कार्यिकी जैव रसायन और आणविक आनुवांशिकी मिल-जुलकर फूल खिलाने की क्रिया का एक एकीकृत सिद्धांत प्रस्तुत करेंगे । और ऐसा हुआ भी । फ्लोरिजेन के पक्ष में पहली बात तो यही रही कि उज द्वारा निर्मित प्रोटीन ऋढ की क्रिया शुरू करवाता है तो एक चलित संदेशवाहक रसायन पैदा करता है । हुआंग और साथियों ने चलित संदेश के रूप में ऋढ द्वारा निर्मित आरएनए (ऋढाठछअ) की भूमिका की संभावना पर प्रयोग किए हैं । यह पत्ती में बनता है और वहां से तने के शीर्ष पर पहुंचता है और उसकी आमद फूल बनने की शुरूआत से मेल खाती है । इस तरह ऋढाठछअ फ्लोरीजन की परिभाषा पर फिट बैठता है । यह भी संभव है कि ऋढाठछअ और उससे बना ऋढ प्रोटीन दोनोंपत्ती से तने के शीर्ष तक पहुंचकर फूल खिलाने का उद्दीपन बनते हों ।
कुछ पौधों में फ्लोरीजने का उत्पादन प्रेरक प्रकाश अवधि हटा लिए जाने के बाद तक चलता रहता है । ऐसा लाल पेरिला में देखा गया है जो एक शॉर्ट डे प्लांट है । ये पौधे प्रकाश अवधि को छोटे दिन से बदलकर लम्बे दिन की करने के तीन महीने बाद तक प्रभावी बने रहते हैं ।अर्थात् उनकी कलम लम्बे दिन वाले पौधों पर लगा दी जाए तो वे फूलने लगते है । गोखरू तथा एक प्रकार के पत्थर चट्टा में देखा गया है कि इन पर कलम लगाने के बाद इनके तने के शीर्ष खुद अन्य पौधों में पुष्पन प्रेरित करने में सक्षम हो जाते है । इसे परोक्ष प्रेरण कहते हैं । इससे पता चलता है कि फ्लोरीजेन एक बार बन जाए तो खुद को बार-बार बना सकता है ।
फ्लोरीजने फ्लोएम में अन्य पदार्थो के साथ गति करता है । एरोबिडॉप्सिस में ऋढाठछअ की गति १.२ से ३.५ मि.मी. प्रति घंटा नापी गई है । यह एक पौधे फार्विटिस में नापी गई फ्लोरिजेन की गति के लगभग बराबर है । तुलना के लिए देखे कि शर्करा की गति ५०-१०० सेंटीमीटर प्रति घंटा है ।
ऋढाठछअ और संबंधित प्रोटीन का फ्लोएम के माध्यम से आवागमन अब एक स्थापित सत्य है । ऋढाठछअ पत्तियोंमें फ्लोएम की सखी कोशिकाआें में बतना है और फिर वहां से चालनी कोशिकाआें से होता हुआ तने के शीर्ष पर पहुंचकर पुष्पन का प्रेरण करता है । एक बार बनने के बाद ऋढाठछअस्वयं नियंत्रित तरीके से बार-बार बनता रहता है और उसकी मात्रा बढ़ती रहती है ।
फ्लोरीजेन परिकल्पना का मूल भाव यह है कि यह पुष्पन हारमोन सभी पौधों के लिए एक ही है, चाहे वे लम्बे दिन, छोटे दिन या दिन निरपेक्ष हो । कलम लगाने के प्रयोगों से तो यही पता चलता है । यहां तक कि कलम दूसरी प्रजाति के पौधों पर लगाएं तो उनमें भी फूल आने लगते हैं । इससे तो लगता है कि शॉर्ट डे प्लांट्स और लॉन्ग डे प्लांट्स में मुख्य अंतर उद्दीपक पदार्थ का नहीं बल्कि यह है कि इस उद्दीपन का जवाब देने वाले जीन्स कौन से हैं और कैसे कार्य करते हैं ।
अभी तक यह माना जाता रहा है कि फ्लोरीजेन एक ख्याली हारमोन है । परन्तु हाल के कुछ वर्षो में हुए शोध से यह स्पष्ट हो गया है कि यह ख्याली पुलाव नहीं, एक ठोस वास्तविकता है ।
२००७ में प्रो. शिमाटो ने पाया कि फ्लोरीजने एक प्रोटीन है जिसे कव३र के नाम से जाना जाता है । शिमाटो एवं अन्य वैज्ञानिकों में देखा कि फ्लोरीजेन कव३र एक प्रोटीन से जुड़ता है और यह प्रोटीन बहुत से पौधों में खोजा जा चुका है । यह ऋढ से जुड़कर फ्लोरीजेन एक्टीवेशन काम्पलेक्स बनाता है । तो चेलाख्यान ने जो सपना १९३६ में देखा था वह २०११ में शिमोटो ने पूरा किया ।
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