मंगलवार, 18 नवंबर 2014

पर्यावरण परिक्रमा
गाय के लिए भी कृत्रिम पैर
    कृत्रिम पैर के लिए मशहूर जयपुर में गौवंश के भी कृत्रिम पैर लगाए जाते है । जयपुर के एक डॉक्टर ने यह काम शुरू किया है और वे अब तक १२ गोवंश को कृत्रिम पैर लगा चुका हैं । उनके बाद यही काम जयपुर फुट बनाने वाली संस्था महावीर विकलांग समिति भी कर रही है ।
    गायों के लिए कृत्रिम पैर कृष्णा बनाने वाले डॉक्टर तपेश माथुर एक सरकारी गौशाला में कार्यरत हैं । वे बताते हैं कि जब वे सरकारी पशु चिकित्सालय में थे तो दुर्घटना के शिकार कई जानवर उनके पास आते थे । इनमें गायों की संख्या ज्यादा होती थी, क्योंकि गाय  बहुत तेजी से भागकर अपने को बचा नहीं पाती । इन दुर्घटनाग्रस्त पुशआें के पैर काटने के अलावा हमारे पास कोई इलाज नहीं था और पैर कटने के बाद अक्सर इनकी मौत हो जाती थी ।
    इसी को देखते हुए उन्हें इनके कृत्रिम पैर बनाने पर विचार आया । इस तकनीक पर काम किया और करीब साल भर पहले गौशाला में दुर्घटनाग्रस्त होकर आए एक बछड़े कृष्णा को उन्होनें यह कृत्रिम पैर लगाया । लगभग १५ दिन तक रोज दो घंटे तक इसकी फिजियोथैरेपी की ओर अब कृष्णा बिल्कुल सामान्य बछड़े की तरह चलता है । इस सफलता के बाद ही कृत्रिम पैर का नाम कृष्णा  रखा ।
  
होगा सफाई अभियान पर हाइटेक सेंसर रखेंगे नजर

    मोदी सरकार ने गंगा की सफाई के लिए हाईटेक संेंसरों के जरिए इस योजना पर काम करने की तैयारियां की है । इसके तहत् आने वाले ६ महीनों में गंगा समेत ७०० प्वाइंट्स पर सेंसर लगाए जाएंगे । २५१० किलोमीटर लंबी गंगा को साफ करने में जुटी सरकार का इस दिशा में यह पहला चरण होगा  । ये सेंंसर कारखानों के कचरे और प्रदूषकों को अपने आप नापेगा और गंगा में पहंुचने वाले प्रदूषकों के बारे में रियल टाइम डेटा अपडेट करेगा । ये रियल टाइम आंकड़े एक सर्वर पर पहुंचेगे और इन आंकड़ों का एक तय पैमाने से अधिक होने पर खुद-ब-खुद अलर्ट जारी हो जाएगा ।
    गंगा भारत की सबसे लंबी नदी है और हिन्दुआें की आस्था मानी जाती है । इसके अलावा गंगा से प्रभावित और आश्रित रहने वाली जनसंख्या का आंकड़ा भी बहुत अधिक है । लेकिन फिलहाल स्थिति यह है कि लगभग १८१ कस्बों से निकलने वाला सीवेज में से केवल ११ बिलियन लीटर यानी सिर्फ ४५ प्रतिशत कचरे को ही साफ किया जा सका है । इस मामले मेंकानपुर शहर पर भी ध्यान दिया गया । क्योंकि कानपुर वह हिस्सा है जो उत्तरी गंगा को सबसे अधिक प्रदूषित करता है । यहां लगभग ३७ से ज्यादा तो सिर्फ चमड़ा साफ करने वाले कारखाने ही है ।

अब बिना जमीन के उगेगा हरा चारा
    खेती के लिए जमीन घटती जा रही है । ऐसे में पशुआें के लिए हरा चारा कहा से आए । इस समस्या का हल तलाश किया है आयुर्वेद रिसर्च फाउडेंशन ने । उन्होनें बिना जमीन के चारा उगाने की तकनीक विकसित की है ।
    आयुर्वेद रिसर्च फाउंडेशन की शोधकर्ता डॉ. दीिप्त् राय के अनुसार इससे कई फायदे हैं । इस तकनीक के परीक्षण कालेज ऑफ वेटरनरी साइंसेज उदयपुर और बीकानेर, आनंद स्थित अमूल समेत कई जगह चल रहे हैं । उन्होनें बताया कि इस मशीन की लागत अभी १८ लाख रूपये के  करीब है । मगर सहकारी समितियों के जरिये किसानों को उपलब्ध कराने में वे बेहद कम कीमत पर चारा पैदा कर सकते है ।
    रेगिस्तानी इलाकों में हरे चारे की समस्या दूर होगी । गर्मियों में हरा चारा मिल सकेगा । चारे के लिए कृषि भूमि क्का इस्तेमाल नहीं करना   पडेगा । इसे ज्यादा पोषक बनाना भी संभव है ।
    इस तकनीक में एक वाहननुमा मशीनी ढांचे में पांच परतों में ट्रे में चारा उगाया जाता है । जिस हिस्से में चारा उगाया जाता है, उसका तापमान मशीन से नियंत्रित होता है । लंबी ट्रे में पानी भरा जाता है जिसमें उर्वरक डाले जाते हैं ।

हमारे देश में मरते हैं सबसे ज्यादा नवजात
    दुनिया में सबसे ज्यादा नवजात बच्चें की मौत भारत में होती है । केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार देश में हर साल सात लाख ६० हजार बच्च्ें २८ दिन की उम्र से पहले ही दम तोड़ देते हैं ।
    यह संख्या दुनिया भर में नवजात बच्चें की होने वाली मौत का २७ प्रतिशत है । पिछले २४ साल के दौरान  नवजात बच्चें की मौत का आकड़ा लगभग आधा करने के बावजूद अभी इस दिशा में काफी कुछ किया जाना बाकी है । वर्ष १९९० में जहां देश भर में १३ लाख नवजात बच्चें की मौत हो जाती थी वहीं वर्ष २०१२ में यह संख्या घटकर सात लाख ६० हजार पर आ गई । इसके बावजूद यह संख्या दुनिया के किसी भी देश से ज्यादा है ।
    इनके अलावा उत्तरप्रदेश (३७), राजस्थान (३५), छत्तीसगढ़ (३१) और जम्मू-कश्मीर (३०) ऐसे राज्य है जहां नवजात मृत्यु दर राष्ट्रीय औसत से अधिक है । वहीं केरल के अलावा तमिलनाडु (१५), दिल्ली (१६), पंजाब (१७) और महाराष्ट्र १८ ऐसे राज्य हैं जहां यह दर २० से कम है ।
    शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में भी नवजात मृत्यु दर में बड़ा अंतर देखने को मिला है ।
    शहरी क्षेत्रों में यह दर १६ प्रति हजार है जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में यह ३३ प्रति हजार है । संख्या के आधार पर सात लाख ६० हजार नवजात मौतों में उत्तरप्रदेश में २७ प्रतिशत, मध्यप्रदेश और बिहार में १०-१० प्रतिशत, राजस्थान में आठ प्रतिशत और आंध्रप्रदेश तथा गुजरात में पांच-पांच प्रतिशत मौंते होती हैं ।
    जन्म के पहले चार सप्तह के दौरान मरने वाले सात लाख ६० हजार बच्चें में ७२.९ प्रतिशत तो जन्म के पहले सप्तह में ही दम तोड़ देते हैं जबकि १३.५ प्रतिशत दूसरे सप्तह में और शेष १३.५ प्रतिशत तीसरे तथा चौथे सप्तह में काल के शिकार हो जाते है । देश में बाल मृत्यु (पांच साल तक के बच्चें की मौत) की दर ५२ प्रति हजार है । इसमें ५६ प्रतिशत (या २९ प्रति हजार) बच्च्े २८ दिन की उम्र से पहले ही दम तोड़ देते हैं ।
    आंकड़ों के मुताबिक देश के अलग-अलग राज्यों में नवजात मृत्युदर में काफी भिन्नता है । सबसे अच्छी स्थिति केरलमें है ।  जहां यह दर सात प्रति हजार है ।
दुनिया की सबसे बड़ी दूरबीन का निर्माण शुरू
    हवाई द्वीप में १.४७ अरब डॉलर में बनने वाली दुनिया की सबसे बड़ी दूरबीन का निर्माण शुरू हो गया है ।  मालूम हो इस अति महत्वपूर्ण अन्तर्राष्ट्रीय परियोजना का हिस्सा भारत भी है । परियोजना में अमेरिका, चीन, जापान और कनाड़ा अपना सहयोग दे रहे है । प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अमेरिकी दौरे दौरान विज्ञान के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने के लिए किए गए करारों में यह प्रोजेक्ट पहला क्रियान्वयन है । इसके बाद भारत को भी इसमें शामिल कर लिया गया    था । थर्टी मीटर टेलिस्कोप (टीएमटी) कोसोटियम प्रोेजेक्ट नामक इस योजना के ७ अक्टूबर को हवाई के मौना में हुए समारोह में भारतीय प्रतिनिधिमण्डल ने अमेरिका, चीन, कनाड़ा, जापान के १०० खगोलविद व अन्य अधिकारियों के साथ शिरकत की थी ।
    भारतीय छोर पर इस प्राजेक्ट पर विज्ञान एवं प्रौघोगिक विभाग, परमाणु ऊर्जा विभाग संयुक्त रूप से काम करेगा । इसके साथ ही बैगलुरू की इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स नैनिताल की आर्यभट्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ ओबसरवेशनल साइंसेस, पूणे स्थित इंटर यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स भी अपना सहयोग टीएमटी प्रोजेक्ट में देंगे ।
    इस परियोजन से वैज्ञानिक पृथ्वी से कोसो दूर बसी छोटी वस्तुआें का अध्ययन कर ब्रह्माण के विकास के प्रारंभिक दौरे की जानकारी जुटाने में सफल होंगे । विश्व स्तरीय, अन्तर्राष्ट्रीय वैज्ञानिकों के इस समूह के महत्व को स्वीकारते हुए भारतीय कैबिनेट ने इस प्रोजेक्ट में २०१२ से २०२३ तक २१२ मीलियन डॉलर की भारतीय सहयोग को मंजूरी दी ।
    प्रोजेक्ट का संस्थापक सदस्य होने के नाते भारत का हिस्सा १० प्रतिशत रहेगा जबकि भारत के सहयोग का ७० प्रतिशत हिस्सा दुनिया की भलाई में इस्तेमाल होगा । टीएमटी पर भारतीय वैज्ञानिक हर साल २०-३० रातों का अवलोकन कर सकेंगे ।
गंगा में प्रदूषण के कारणों को खोजेंगे 
    प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की गंगा को प्रदूषण मुक्त बनाने की महात्वाकांक्षी योजना को साकार करने के लिए सरकार २५ विशेष टीमों का गठन करेगी । यह विशेष टीम गंगा में प्रदूषण के स्त्रोतों का पता लगाएगी और उसके बाद अपेक्षित कार्यवाही के साथ ही उन पर अंकुश लगाने का काम करेगी । जल संसाधन मंत्रालय विश्ेाष टीम का खाका तैयार कर रहा है । यह दल प्रदूषण की पहचान करेगा और उसे रोकने के उपाय सुझाएगा ।

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