शुक्रवार, 19 जनवरी 2007

सामाजिक पुननिर्माण में प्रौद्योगिकी

डॉ. दिनेश मणि

नि:संदेह, विज्ञान और प्रौद्योगिकी ने मानव-जीवन के विभिन्न में क्रांतिकारी परिवर्तन किए हैं। विज्ञान प्रकृति के गूढ़ रहस्यों को समझने व खोलने के प्रयास करता है, जबकि पौद्योगिकी व्यक्तियों के उपयोग तथा उपभोग के लिए विविध माध्यम व तरीके प्रस्तुत करती है। अब यह माना जा रहा है कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी ही विकास की कुंजी है तथा विकास के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए सभी क्षेत्रों में तीव्र गति से पौद्योगिकी का विकास, पौद्योगिकी का उन्नतिकरण तथा पौद्योगिकी का हस्तांतरण आवश्यक है।

आम आदमी, खासकर गांवों में बसे लागों को पौद्योगिकी-विकास का सक्रिय सहभागी बनने के अवसर देना लोकतांत्रिक मूल्यों और स्वाीधनता पोषक समतापूर्ण विकास का आवश्यक आधार है। परन्तु यह मानना कतई उचित नहीं है कि हमारा देशज तकनीकी ज्ञान और क्षमता शून्य के बराबर है।

हमारे परंपरागत ज्ञान-विज्ञान, खासकर लोगों की जीवन-पद्धति से जुड़ें, उसमें रचे-बसे ज्ञान का उन्नयन करना, उसे आज की जरुरतों के अनुरुप ढालना और इस प्रक्रिया में आधुनिक विज्ञान की उपलब्धियों को खुले दिमाग से पूर्वाग्रह रहित व्यापक मानसिकता और जन सशक्तिकरण पोषक सार्वजनिक नीतियों और संस्थानों के माध्यम से जमी हुई जड़ता और हताशा को तोड़ना भी पौद्योगिकी प्रगति के लिए आवश्यक उपादान है।

औद्योगिक क्रांति तथा उससे जुड़ी नई सामाजिक व्यवस्था ने मानवीय सभ्यता का आद्योपांत काया पलट कर दिया है। आज उसी रुपांतरण के अगले चरण तथा उसके अब तक अछूते या आंशिक रुप से प्रभावित क्रियाकलापों में प्रवेश को प्रगति माना जा रहा है। इस अनवरण प्रक्रिया ने ही पौद्योगिकी प्रगति को मानव-समाज की अनिवार्य नियति मानने वाले विश्वास को जन्म दिया है।

आज संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यू.एन.डी.पी.) जैसे जन सरोकारों से जूझने वाले संस्थान सूचना, संचार तथा जैविक तकनीक के आधार पर मानवीय विकास की नई मंजिलें तय करने के रास्तों पर विचार कर रहे हैं। उनकी सन् २००१ की मानव विकास रिपोर्ट, तकनीकी ज्ञान द्वारा मावन जीवन के सुधारने-संवारने के तौर-तरीकों का विवेचन करती है। इस मानव विकास रिपोर्ट में एक तरफ तो विज्ञान और पौद्योगिकी के चमत्कारी रास्ते की तरफदारी की गई है। वहीं दूसरी ओर इस प्रक्रिया के लिए सार्वजनिक नीतियाँ, गरीबों और आम लोगों के सरोकरों के प्रति संवेदशनशील नीतियों की वकालात भी इसमें की गई हैं।

गांधीजी का मनना था कि ग्रामीण क्षेत्रों के लिए वैसी ही प्रौद्योगिकी होनी चाहिए जो ग्रामीणों द्वारा निर्मित की जा सकें, जिसका उत्पादन स्थानीय कच्चे माल से हो और जिसकी देखभाल और मरम्मत भी ग्रामीण लोग आसाीन से कर सकें। नि:संदेह, ग्रामीण विकास के कई क्षेत्रों में नई प्रौद्योगिकी की जरुरत है। परंपरागत प्रौद्योगिकी को बेहतर बनाने में कई बार नई वैज्ञानिक उपलब्धियों की महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। जरुरत इस बात की है कि हम परंपरागत प्रौद्योगिकी को पिछड़ा मानकर हटाने की सोच न बनाएं, अपितु उसकी उपयोगिता की समझ बनाकर ही नई वैज्ञानिक उपलब्धियों का उपयोग परंपरागत प्रौद्योगिकी को बेहतर बनाने के लिए करें। हमारी पंचायतें आम लोगों में वैज्ञानिक मानसिकता पैदा करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकती है। वैज्ञानिक चेतना आने के बाद ही आम जनता उन्नत प्रौद्योगिकी को अधिक तेजी से अपना सकती है।

यदि हम प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण में देश की भौगोलिक विविधता को नजर अंदाज करेंगे तो हमें इसके गंभीर परिणाम भुगतने पड़ेंगे। पूर्व में ऐसी भूलें हमारे द्वारा हुई हैं। जिसका मुख्य कारण योजनाएं बनाने में अति केन्द्रीकरण रहा है। चूंकि अधिकांश योजनाएं सत्ता के केन्द्रों में ऊपर से बनकर नीचे गांव की ओर भेजी गई अतएव इनमें पारिस्थितिक अनुकूलता की बहुत कमी रही। इसके विपरीत जो योजनाएं विकेन्द्रीकृत रुप से स्थानीय लोगों की भागीदारी से बनाई जाती हैं, उनमें वहां की मिट्टी, पत्थर और पानी का वास्तविक समावेश होने की अधिक संभावना रहती है। स्थानीय ज्ञान और परिस्थितियेां के अनुकूल प्रौद्योगिकी हस्तांतरण यह भी सुनिश्चित कर सकता है कि विकास में प्राकृतिक संतुलन कायम रखते हुए निरंतरता हासिल की जाए।

किसी भी कार्य को अंजाम देने में व्यक्तियों की भागीदारी का सर्वाधिक महत्व है। प्रौद्योगिकी का हस्तांतरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत अधिकारियों, लोक संगठनों, जन-प्रतिनिधियों तथा गांव के लोगों के बीच निरंतर, गहन व पारदर्शी संवाद अति आवश्यक है/अनिवार्य है। इस सभी की इस प्रक्रिया में अहम व अद्वितीय भूमिका है।

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