बाल जगत
थर्ड वर्ल्ड नेटवर्क
संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा विश्व में बच्चों की स्थिति नामक रिपोर्ट में बताया गया है कि बच्चों के अवैध व्यापार अथवा उन्हें बलपूर्वक घरेलू नौकर बनाने के कारण लाखों बच्चे ओझल हो चुके हैं। इसके अलावा गलियों में आवारा धूमने वाले बच्चे दिखाई तो देते हैं, मगर वे भी मूलभूत सेवाआें और सुरक्षा के दायरे से कमोवेश बहिष्कृत हो चुके हैं।
इन बच्चों को न सिर्फ अत्याचार भोगना पड़ता है, बल्कि वे उनकी वृद्धि एवं विकास के लिए आवश्यक शिक्षा, स्वास्थ्य एवं अन्य मुख्य सेवाआें से भी वंचित हो गये हैं। इन बच्चों के स्वास्थ्य एवं सुरक्षित बचपन के अधिकार की रक्षा करना अत्यन्त कठिन है, क्योंकि वर्तमान में ये बच्चे सार्वजनिक चर्चा तथा कानूनी प्रावधानों से लेकर आंकड़ों और खबरों तक से बाहर हकाल दिये गये हैं।
यह रपट इस बात पर बल देती है कि विशेष ध्यान दिये बगैर उपेक्षा और शोषण के चक्र में उलझे और समाज द्वारा भुला दिये गये इन लाखों बच्चों के साथ-साथ स्वयं समाज को भी भविष्य में इसके घातक परिणाम भुगतने होंगे। रिपोर्ट का तर्क है कि अपने बच्चों के कल्याण और स्वयं अपने भविष्य के प्रति जिस समाज को रुचि होगी, वह ऐसा कदापि नहीं होने देगा।
यूनिसेफ के कार्यकारी निदेशक एन.एम.विनमेन कहते हैं, समूचे विकासशील जगत में इन संकटग्रस्त बच्चों तक पहुंचे बगैर सहस्त्राब्दि विकास लक्ष्य की प्राप्ति नहीं की जा सकती है। अगर सर्वाधिक अभावग्रस्त, गरीब, संकटग्रस्त, शोषित एवं पीड़ित बच्चों की उपेक्षा जारी रही तो टिकाऊ विकास सम्भव ही नहीं हैं।
इसके पूर्व यूनिसेफ अपनी एक अन्य विशेष रिपोर्ट में बता चुका है कि गरीबी, एच.आय.वी/एड्स एवं शस्त्र संघर्ष बचपन को कैसे खोखला बना देते हैं। इसने अपनी हाल की रपट बहिष्कृत और उपेक्षित में बताया है कि कैेसे ये कारण और इनके साथ-साथ कमजोर शासन एवं भेदभाव, बच्चों को शोषण और दमन से बचाने में नाकाम होते हैं।
साथ ही जो बच्चे मूलभूत सुविधाआें से वंचित और गरीबी से त्रस्त होते हैं, वे सहज ही शोषण का शिकार बन जाते हैं। इसकी वजह है कि उन्हें अपनी सुरक्षा के विषय में बहुत कम जानकारी होती है। सशस्त्र संघर्ष में फंसे बच्चे आमतौर पर बलात्कार एवं अन्य प्रकार की लैंगिक हिंसा का शिकार बनते हैं। ऐसा ही कुछ-कुछ अकेले, असुरक्षित एवं उपेक्षित बच्चों के साथ भी होता है।
इस रिपोर्ट के अनुसार निम्न चार स्थितियों में बच्चों के बहिष्कृत और उपेक्षित होने की संभावना होती है।
औपचारिक पहचान विहीन बच्चे
विकासशील विश्व (चीन के अलावा) में प्रतिवर्ष जन्म लेने वाले बच्चों में से आधे बच्चों का जन्म-पंजीकरण ही नहीं होता, अर्थात् प्रतिवर्ष ५ करोड़ बच्चे नागरिक के रुप में औपचारिक स्वीकृति मिलने के अपने प्राथमिक जन्मसिद्ध अधिकार से वंचित रहते हैं।
पंजीकृत पहचान के अभाव में बच्चों को शिक्षा, अच्छी स्वास्थ्य सेवाएं तथा उनके बचपन तथा भविष्य को बेहतर बनाने वाली अन्य बुनियादी सुविधाएं मिलने की कोई निश्चितता नहीं होती। सीधे शब्दों में कहा जाए तो जिन बच्चों के पास औपचारिक पहचान नहीं है, वे किसी गिनती मे नहीं हैं, इसलिए उनकी और किसी प्रकार का ध्यान भी नहीं दिया जाता है।
अभिभावकों के प्यार से वंचित बच्चे
सड़कों पर आवारा फिरने वाले और जेलों (सुधार गृह) में बंद लाखों बच्चे अभिभावको और परिवार की स्नेह भरी देखभाल के अभाव जी रहे हैं। इन विपरीत परिस्थितियों में फंसे बच्चों को अक्सर बच्चा नहीं माना जाता। विकासशील देशों में लगभग १.४३ करोड़ बच्चे, अर्थात् प्रत्येक १३ में से १ बच्चा, अपने माता या पिता में से किसी एक की मौत का दुख झेल रहा होता है। अत्यधिक गरीबी में गुजर-बसर कर रहे बच्चों के अभिभावकों में से यदि किसी एक, विशेष रुप से यदि माता की मृत्यु हो जाए तो उनकी शिक्षा और स्वास्थ्य खतरे में पड़ जाता है।
दुनिया में ऐसे करोड़ों बच्चे अपने बचपन का एक बड़ा हिस्सा सड़क किनारे फुटपाथ पर बिताते हैं, जहां उनका हर तरह से शोषण और दमन किया जाता है।
इस लाख से अधिक बच्चे छोटे-मोटे अपराध में पकड़े जाकर मुकदमों की प्रतीक्षा में हिरासत में रहते हैं। इनमें से अधिकांश बच्चे उपेक्षा, हिंसा और मानसिक कष्ट का शिकार होते हैं।
वयस्कों की भूमिका में बच्चे
रिपोर्ट में बताया गया है कि बचपन के स्वाभाविक विकास के महत्वपूर्ण चरण को दरकिनार करके बच्चों को वयस्कों की भूमिका निभाने के लिए बाध्य किया जाता है। सशस्त्र संघर्ष में शसस्त्र समूहों के लिए लाखों बच्चों को सैनिक, संदेश वाहक, भार वाहक, रसोईया और वैश्यावृत्ति जैसे काम करने के लिए बाध्य किया जाता है। अधिकांश मामले में इन बच्चों का बलपूर्वक अपहरण कर उन्हें ऐसे कामों में लगा दिया जाता है।
अनेक देशों में बाल विवाह के खिलाफ कानून होने के बावजूद कई विकासशील देशों में ८ करोड़ के अधिक बालिकाएं १८ वर्ष की उम्र से पहले ही ब्याह दी जाती है।
एक अनुमान के अनुसार १.७१ करोड़ बच्चे कारखानों, खदानों और खेती से जुड़े खतरनाक कामों से जुड़े हैं।
शोषित बच्चे :-
ऐसे बच्चे भी बहुत अधिक संख्या में हैं जिन्हें स्कूल और अन्य सेवाआें से वंचित कर दिया जाता है और वे अदृश्य शोषण का शिकार हैं। इनकी संख्या का पता लगाना और उनका जीवन बचाना अत्यन्त कठिन है।
इनमें से लगभग ८४ लाख बच्चे वैश्यावृत्ति से लेकर कर्ज की एवज में बंधुआ रखे जाने तक के सर्वाधिक बुरे किस्म के बाल मजदूर हैं, जहां उनका गुलामों की तरह शोषण होता है। लगभग २० लाख बच्चे जबरदस्ती वैश्यावृत्ति में लगे हुए हैं, जहां उन पर रोजाना यौन व शारीरिक अत्याचार होते हैं।
एक अनुमान के मुताबिक प्रतिवर्ष लाखों बच्चे तस्करी के माध्यम से भूमिगत और अनेक गैर-कानूनी गतिविधियों जिनमें वैश्यावृत्ति एवं अन्य अनैतिक कार्य शामिल हैं, में लगा दिये जाते हैं। घरेलू नौकर के रुप में काम कर रहे असंख्य बच्चों की संख्या और स्थिति का पता लगाना तो और भी दुष्कर कार्य है। अनेक बच्चों को स्कूल से निकाल दिया जाता है, उन्हें शारीरिक प्रताड़ना दी जाती है और साथ ही कम भोजन देकर उनसे अधिक काम कराया जाता है।
रिपोर्ट जोर देकर कहती है कि बच्चों को मूलभूत सेवाएं नही दे सकने वाले या ऐसा करने के अनिच्छुक देशों में रहने वाले लाखों-लाख बच्चे तो वास्तव में अदृश्य ही हैं। लिंग, जातीयता अथवा अपंगता के आधार पर विभेद भी बच्चों की उपेक्षा का एक प्रमुख कारण है।
अनेक देशों में लड़कियों को स्कूल नहीं भेजा जाता। जातीय अल्पसंख्यकों और आदिवासियों के बच्चो को भी मूलभूत सेवाआें से वंचित किया जाता है। रिपोर्ट का दावा है रोजमर्रा किये जाने वाले भेदभाव के कारण विश्व में आज की स्थिति में १५ करोड़ विकलांग बच्चों को शिक्षा, स्वास्थ्य और पर्याप्त पोषण नहीं मिल पा रहा है।
विश्व में बच्चों की स्थिति २००६ के अनुसार नाजुक स्थिति में फंसे बच्चों का विकास सुनिश्चित करने के लिए संपूर्ण विश्व को विकास के वर्तमान प्रयासों के अतिरिक्त भी बहुत कुछ करना होगा। इन बच्चों तक पहुंचने के लिए सर्वप्रथम संबंधित सरकारों को ही कदम उठाने होंगे वे निम्नलिखित चार दिशाआें में काम कर सकती हैं।
अनुसंधान निगरानी और रिपोर्टिंग :-
उपेक्षित और अदृश्य बच्चों तक पहुंचने और उन पर हो रहे अत्याचार रोकने के लिए उनकी जानकारी एकत्रित करने और रिपोर्टिंग की व्यवस्था बनाना जरुरी है।
कानून :-
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बच्चों के मान्य अधिकारों के अनुरुप राष्ट्रीय कानून होना आवश्यक है। कानून के माध्यम से भेदभाव को पूर्णत: समाप्त किया जाना चाहिए। बच्चों को नुकसान पहुंचाने वालों के प्रति कानून लागू करने में सख्ती बरतनी चाहिए।
वित्तीय सहायता और क्षमता विकास :-
बाल केन्द्रित बजट बनने चाहिए एवं बच्चों की सेवा में लगी संस्थाआें को कानून और अनुसंधान में सहयोग करना चाहिए।
कार्यक्रम :-
अनेक देशों और समाजों में बच्चों को मूलभूत सेवाआें की प्राप्ति में बाधा बनने वाली व्यवस्थाआें में तत्काल सुधार की आवश्यकता है। जन्म प्रमाण-पत्र की अनिवार्यता समाप्त किये जाने से ज्यादा संख्या में बच्चे स्कूल पहुँचे सकेंगें। ***
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