इस अंक से पर्यावरण डाइजेस्ट अपने प्रकाशन के २१ वें वर्ष में प्रवेश कर रही है। प्रकाशन यात्रा के दो दशक में पत्रिका को अपने पाठकों, लेखकों एवं सहयोगियों का निरंतर स्नेह मिला। इसी स्नेह की ऊर्जा से इस छोटे से संकल्प का सातत्य बना रहा।
पिछले दो दशकों का समय हिन्दी पत्रिकाआें के लिए सर्वाधिक दुर्भाग्यपूर्ण और चुनौती भरा रहा है। इसी काल खण्ड में हिन्दी की प्रतिष्ठित और बड़ी-बड़ी पत्रिकायें एक-एक कर बंद हो गयी। देश में स्वतंत्रता के बाद से साठ बरसों में ऐसा समय कभी नहीं आया, जब इतनी संख्या में हिन्दी पत्रिकाआें का प्रकाशन बंद हुआ हो।
पिछले बीस वर्षो में हमने देखा कि व्यवसायिक पत्रिकाआें की बढ़ती भीड़ में रचनात्मक सरोकारों की पत्रिका को जिंदा रखना संकटपूर्ण तो है, लेकिन असंभव नहींं। पर्यावरण डाइजेस्ट का यह छोटा सा दीप अनेक झंझावातों के बावजूद शिशु मृत्यु के कठिन समय को पार कर यहां तक पहुंच पाया है तो इसके पीछे हमारे पाठको की पर्यावरण प्रेमी शक्ति का संबल था। यह सबल ही वर्तमान और भविष्य की हमारी यात्रा की गति एवं शक्ति का आधार है।
पिछले दो दशकों में पर्यावरण डाइजेस्ट ने कभी किसी सरकार, संस्थान या आंदोलन का मुखपत्र बनने का प्रयास नहीं किया, पत्रिका की प्रतिबद्धता सदैव सामान्य पाठक के प्रति रही है। इसी प्रतिबद्धता के संकल्प को आज हम फिर एक बार दोहराना चाहते हैं।
पत्रिका के प्रकाशन और निरंतरता में जिन मित्रों का सहयोग और समर्थन मिला उन सभी के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हुए आशा करते है कि भविष्य में भी इसी प्रकार का स्नेह और सहयोग मिलता रहेगा।
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