मालवा में नदी जोड़ योजना से जुड़ी बातें
भारत सरकार की नदी जोड़ने की योजना के अन्तर्गत मालवा क्षेत्र की प्रमुख नदियों पार्वती व कालीसिंध को चम्बल से जोड़ने की योजना है। इस योजना का मुख्य आधार है, जल अतिरेक वाली नदी से जलाभाव नदी में पानी पहुंचाना। इस क्षेत्र में चम्बल की सहायक व छोटी नदियों पर बांध बनाकर उनके पानी को चम्बल नदी में ऊपर की ओर बनें बांधों, गांधीसागर व राणा प्रताप नगर में मिलाया जाना प्रस्तावित है। सवाल यह उठता है कि चम्बल नदी घाटी के निचले व ऊपरी क्षेत्र में जब वर्षा का औसत समान है तो पानी एक जगह से दूसरी जगह ले जाने की क्या वजह है? इस परियोजना के अन्तर्गत पार्वती, नेवज एवं कालीसिंध नदियों पर तीन बांधों के अलावा गांधीसागर के जलग्रहण क्षेत्र में सात बांध बनाए जाने का प्रस्ताव हैं। इन बांधों से डूब में आने वाले १२४ गांवों में से सिर्फ ६५ गांवों के डूब के आंकड़े मौजूद हैं। अन्य ५९ गांव, जो कि गांधीसागर क्षेत्र में प्रस्तावित ७ बांधों एवं नहर क्षेत्र से प्रभावित होंगे, उनके बारे में कोई आंकड़ें मौजूद नहीं हैं। जिन ६५ गाँवों के आंकड़ें मौजूद है, उनके अनुसार ५४११ परिवारों के २७०५५ लोगों की आबादी विस्थापित होंगी। इन गांवों की १७३०८ हेक्टेयर जमीन डूब में आएगी। महत्वपूर्ण बात यह है कि ये आंकड़े सन् २००२-०३ में प्रकाशित किए गए हैं, जबकि जनसंख्या के आंकड़ें १९९१ की जनगणना पर आधारित हैं, प्रस्तावित योजना के अन्तर्गत पाटनपुर, मोहनपुरा एवं कुंडलिया में कुल मिलाकर २००० एमसीए पानी स्थानांतरण के लिए अतिरेक बताया जा रहा है जबकि इस अनुमान में स्थानीय आवश्यकता पर ध्यान नहीं दिया गया है। परियोजना के मूल प्रस्ताव के अलावा शिप्रा नदी को भी उस योजना में शामिल किए जाने की बात की जा रही है। इसके अन्तर्गत इन्दौर, देवास एवं उज्जैन में पेयजल उपलब्ध कराने की बात है। यदि ऐसा किया जाता है तो पानी की मात्रा १००० एमसीएम से काफी कम हो जाएगी और जल अतिरेक नहीं के बराबर होगा। इस क्षेत्र में एक साथ इतने सारे बांध बनाने के लिए जलाशयों के कारण स्थानीय पर्यावरण में काफी बदलाव आने की आशंका है। पर्यावरणीय प्रभावों के अलावा लोगों के विस्थापन के कारण स्थानीय सामाजिक परिस्थिति में भी काफी बदलाव आएंगे। इसके अलावा भूमि के उपयोग में बदलाव आने एवं रोजगार के साधन में बदलाव के कारण सामाजिक स्थिति पर विपरीत प्रभाव पड़ने की आशंका है। मालवा क्षेत्र में स्थानीय आवश्यकता को पूरा किए बगैर पानी के स्थानांतरण से क्षेत्रीय विषमता काफी बढ़ेगी। इसलिए आवश्यकता है कि गांधी सागर के न भर पाने की विकृतियों को पूरा किया जाए एवं चम्बल में नीचे मिलने वाली नदियों के पानी को ऊपरी चम्बल में मिलाने की कोई जरुरत नहीं है। यदि सदियों पुरानी परम्परागत जल व्यवस्था को पुन: विकसित किया जाए तो ऐसी महाकाय योजनाआें की जरुरत ही नहीं पड़ेगी, साथ ही पूरे इलाके को भावी पर्यावरणीय व सामाजिक संकट से बचाया जा सकेगा।
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